आन बान शान : बदल रहा है देश

⚫ बदल रहा है देश
बदल रहा परिवेश है
तिरंगा आन,बान.और
शान से फहर रहा
देश-विदेश है ⚫

डॉ. नीलम कौर

बदल रहा है देश
बदल रहा परिवेश है
तिरंगा आन,बान.और
शान से फहर रहा
देश-विदेश है

कायाकल्प हो रहा
मातृ भू का
नित-नूतन विकास
से हो रहा श्रृंगार
मातृ भू का
शिव,राम,कृष्ण बैठ
निजधाम दे रहे
आशीर्वाद हैं

लहरा रहीं घटाओं-
सी काली कजरारी
नागिन-सी बलखाती
सड़कें
रेत,जल ओ’ पर्वतों पर
पथ आकाश का भी
सुसज्जित
उड़नदस्तों से
तमगे कई मिले हैं
समुंद्र के सीने को
शीतल चँद्रमा से गले
मिल
संतापित क्यों है
सूरज भाई
पूछने लगे हैं।

प्रतिस्पर्धियों से
खचाखच भर रहे
मैदान हैं,
शिक्षा के केंद्रों
में चहकते
बालवृंद नानाविध संस्कारों से
अलंकृत हो भविष्य
की ओर बढ़ रहे
समाजोपयोगी, रोजगरोपयोगी
शैक्षणिक परिवेश
हैं बन रहे।

आतंकियो के सितारे
डूबने लगे हैं
नारियों को उनके
हक-अधिकार
मिलने लगे हैं
व्यभिचार, भ्रष्टाचार
चोर और कालाबाजारी
डर से थर्राने लगे हैं

बदल रहा है देश…
अन्नदाताओं के
गोदाम भी अन्न से
भरने लगे
छत महलों की बनाने
वाले भी
अपनी छत पाने लगे हैं
भेद छोटे-बड़े के
कम हुए
सत्ता के मंदिर में
हर वर्ग के कदम
कमलचरण बनने लगे हैं।

डॉ. नीलम कौर

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