ऐसे हैं रतलामी : सामाजिक सरोकारों में ऐसा जोश, जुनून, उत्साह की रक्तदान, नेत्रदान, देहदान में कोई नहीं रतलामी का सानी

नए साल के 3 माह बेमिसाल

देश प्रदेश में हो रही है रतलामियों की चर्चा

बचा रहे हैं जिंदगियां

कर रहे हैं जीवन में उजियारा

डॉक्टर को ज्ञान देने में दे रहे अनमोल योगदान

हरमुद्दा
रतलाम, 25 मार्च। देश प्रदेश में रतलाम की चर्चा इसलिए हर दिन हो रही है क्योंकि सामाजिक सरोकारों में यहां के लोग जोश,  जुनून और उत्साह के साथ शामिल हो रहे हैं। छोटे-मोटे दान तो हर कोई कर देता है मगर रक्तदान, नेत्रदान देहदान के माध्यम से अनमोल दान कर रहे हैं।

वास्तव में 2024 नए साल का 25% सफर इतना अनुकरणीय और प्रेरणादायक रतलामियों ने साबित कर दिया कि देश- प्रदेश में चर्चा होने लगी है। रक्तदान के बाद नेत्रदान और देहदान की होड़ मची हुई है।

समाजसेवी एवं शतकवीर रक्तदानी गोविंद काकानी

समाजसेवी एवं शतकवीर रक्तदानी गोविंद काकानी ने बताया कि रक्तदान के माध्यम से जहां जीवनदान दे रहे हैं, वहीं नेत्रदान के माध्यम से जिंदगी में उजाला भी फैला रहे हैं। इतना ही नहीं डॉक्टर बनने के ज्ञान में अपनी देह समर्पित कर अमूल्य योगदान दे रहे हैं। शहर की हर कॉलोनी, मोहल्लों, बाजारों में ऐसे दानियों की चर्चा सरेआम हो रही है। ऐसी दानी लोग अनुकरणीय प्रेरणा का संदेश दे रहे हैं, जिससे हर कोई ऐसा करने के लिए प्रेरित कर रहा है और उनकी बातें मानी भी जा रही है।

जाते-जाते  दूसरों के लिए दान कर गए प्रेम

श्री प्रेमचंद बाफना

गौशाला रोड निवासी प्रेमचंद पिता मांगीलाल बाफना (72) का  स्वर्गवास होने पर परिवार जन उनकी इच्छा अनुरूप नेत्रदान के लिए मानव सेवा समिति के राजकुमार सुराना एवं शैलेंद्र अग्रवाल को बताया।  उन्होंने तत्काल मेडिकल कॉलेज के नेत्रदान विभाग प्रभारी डॉक्टर रशेद्र सिसोदिया से संपर्क कर नेत्रदान हेतु प्रयास शुरू किया। समय बहुत कम था और व्यवस्थाएं करने में बहुत अधिक परेशानी होने के पश्चात भी  अंतिम यात्रा शाम 6  त्रिवेणी मुक्तिधाम पहुंचने पर प्रसिद्ध सर्राफा व्यवसायी प्रेमचंद  की अंतिम इच्छा अनुसार पंचतत्व में विलीन होने के पहले वह दो व्यक्तियों के लिए अपना प्रेम नेत्र स्वरूप दान कर गए।

परिजनों को नेत्रदान पत्र देते हुए

मानव सेवा समिति के पूर्व कोषाध्यक्ष राजकुमार सुराणा ने जानकारी देते हुए बताया की प्रेमचंद जी के परिवार में तीनों सुपुत्री श्रीमती चांदनी ( अमीषा) पति कुशल कुमार आचलिया निवासी बड़नगर, श्रीमती सोनम पति आशीष दासोद निवासी जावरा एवं  श्रीमती हीना पति मितेश कर्णावत निवासी लिमडी (गुजरात) ने पूज्य पिताजी को अग्नि देने के पूर्व स्वयं खड़े होकर त्रिवेणी मुक्तिधाम पर ही नेत्रदान डॉ लक्ष्मी नारायण पांडे मेडिकल कॉलेज के नेत्र विभाग सदस्य विनोद कुशवाह व हैप्पी पीटर द्वारा करवा कर समाज में नेत्रदान के प्रति जागरूकता का संदेश दिया। मुक्तिधाम  में प्रेमचंद जी को बड़ी संख्या में उपस्थित समाजजन, मानव सेवा समिति के पदाधिकारी एवं सदस्य, स्वर्णकार समाज एवं क्षेत्रवासी ने श्रद्धांजलि अर्पित की।

श्रीमती संतोष ने भी किया ने नेत्रदान

श्रीमती संतोष दख

इसी तरह श्रीमती संतोष दख (52)का निधन होने पर उनके भाई  अशोक भानावत ने मानव सेवा समिति के शैलेन्द्र अग्रवाल से  संपर्क किया और मध्य रात्रि 2:30 बजे नोलाईपुरा निवास स्थान पर डॉक्टर ददरवाल  बड़नगर के सहयोग से नेत्रदान हुआ।

परिजनों को नेत्रदान पत्र देते हुए

प्रेरित करने के लिए देते हैं सम्मान पत्र

श्री काकानी का  कहना है कि रतलामवासियों  के इस प्रकार के दान के आगे सम्मान पत्र तो कुछ नहीं है, मगर यह सम्मान पत्र औरों को प्रेरित करता है ताकि यह प्रवृत्ति हर घर परिवार में पनप जाए। किसी प्रकार की दिक्कत ना हो।  जिनके जीवन में रोशनी नहीं है, उनको रोशनी मिल जाए। इससे बड़ी समाज सेवा दुनिया में कुछ नहीं हो सकती। देश प्रदेश में इस प्रकार की समाज सेवा का और कोई शहर सानी नहीं है। जो देहदान,  नेत्रदान और रक्तदान का सिलसिला चल रहा है वह वाकई में काबिले तारीफ है।

रक्तदान

शतकवीर रक्तदानी श्री काकानी बताया कि मानव रक्त का कोई विकल्प नहीं है। अतः रक्त की पूर्ति केवल रक्त से ही हो सकती है। आप रक्त दान ऐसे किसी भी ब्लडबैंक या रक्तदान शिविर, अस्पताल आदि में कर सकते हैं, जो तय मानक का पालन करते हों। कोई भी 18 वर्ष से 65 वर्ष के बीच की आयु का व्यक्ति तीन महीने के अन्तराल में कभी भी रक्तदान कर सकता है। व्यक्ति का वजन 45 किलो से अधिक होना चाहिए वह रक्तदान कर सकता है।

नेत्रदान

एक मृत व्यक्ति के नेत्रों का कोर्निया निकालकर दो या उससे अधिक नेत्रहीन व्यक्तियों में प्रत्यारोपण कर उन्हें नई दृष्टि (जिंदगी) प्रदान कर दी जाती है। मृत्यु के आठ घंटे तक नेत्रदान किया जा सकता है।

अंगदान / देहदान

संभागीय ऑर्गन प्रत्यारोपण प्राधिकार समिति सदस्य श्री काकानी ने बताया कि आज विज्ञान ने इतनी उन्नति कर ली है कि हड्डिया, त्वचा, कुछ मुलामय टिश्यूज, गुर्दा, जिगर, दिल, फेफड़े, पैनक्रियाज आदि महत्वपूर्ण अवयवों को आसानी से प्रत्यारोपित किया जा सकता है। एक मृत व्यक्ति के विभिन्न अंगों का दान, कई जरूरतमंद मरीजों के लिए चिकित्सा का काम आसान कर देता है।

अंगदान, मस्तिष्क मृत्यु (ब्रेन डेथ) होने पर ही किया जा सकता है। मस्तिष्क मृत्यु अर्थात् जब मनुष्य का समस्त शरीर जीवित रहता है, परन्तु मस्तिष्क व्यावहारिक एवं तकनीकी रूप से बिल्कुल निष्क्रिय हो जाता है, तो उसे मृत करार दे दिया जाता है।

मेडिकल कॉलेज और अस्पतानों में मृत्यु के बाद मृत शरीर का देहदान भी कर सकते हैं। यह देहदान चिकित्सकों एवं चिकित्सा विज्ञान के छात्रों को व्यावहारिक शिक्षा के काम आता है। कुछ विशेष जीवन रक्षक यंत्रों, वेंटिलेटर आदि की सहायता से इस अवस्था को काफी लम्बे समय तक रखा जा सकता है। मस्तिष्क मृत्यु को डाक्टरों की विशेष टीम द्वारा निश्चित समय अंतराल पर दो बार जांच करके प्रमाणित किया जाता है।

जीते जी भी कर सकते हैं पांच विशेष दान

श्री काकानी ने बताया कि व्यक्ति जीवन काल के दौरान ही रक्त, किडनी, लिवर, चमड़ी और बोन मैरो दान कर सकते हैं इससे मनुष्य के शरीर में कोई परेशानी नहीं होती है। यह दान भी जिंदगी बचाने में मददगार साबित होता है। यह पांच विशेष दान भी व्यक्ति को महान बनाते हैं।

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