जयंती पर विशेष : भारतीय परिवारों की आत्मीय कथाकार पद्मश्री मालती जोशी

संस्कारों और मूल्यों की वह थाती जो कहीं बिसराई जा रही है। नारेबाजियों से अलग ताकतवर स्त्रियों पात्रों के माध्यम से पारिवारिक मूल्यों की स्थापना उनके जीवन का ध्येय रहा है। उनकी रचनाएं लंबे समय तक भारतीय परिवारों को उनकी शक्ति, जिजीविषा और आत्मीय  परिवेश की याद दिलाती रहेंगीं।

प्रो.संजय द्विवेदी

ख्यातिनाम कथाकार ,उपन्यासकार श्रीमती मालती जोशी के निधन की सूचना ने साहित्य जगत में जो शून्य रचा है, उसकी भरपाई संभव नहीं है।गत 15 मई, 2024 को उन्होंने अपनी नश्वर देह त्याग दी। अपनी रचनाओं के माध्यम से भारतीय परिवारों के रिश्तों, संवेदनाओं, परंपराओं, मूल्यों की कथा कहने वाली मालती जोशी अपने तरह की विलक्षण कथाकार हैं। उनकी परंपरा में हिंदी साहित्य में कथाकार शिवानी के अलावा दूसरा नाम भी नहीं मिलता।

पद्मश्री से अलंकृत मालती जोशी को पढ़ना विरल सुख देता रहा है। सरलता,सहजता से कथा बुनती ताई अपने कथारस में बहा ले जाती थीं और रोप जाती थीं। संस्कारों और मूल्यों की वह थाती जो कहीं बिसराई जा रही है। नारेबाजियों से अलग ताकतवर स्त्रियों पात्रों के माध्यम से पारिवारिक मूल्यों की स्थापना उनके जीवन का ध्येय रहा है।


लीक तोड़कर लिखने और अपार लोकप्रियता अर्जित करने के बाद भी मालती जोशी हिंदी साहित्य आलोचना में हाशिए पर हैं। इसका कारण बहुत स्पष्ट है। उनकी रचनाएं भारतीय विचार और भारतीय परिवार के मूल्यों को केंद्र में रखती हैं। वे साहित्य सर्जना में चल रही खेमेबाजी, गुटबाजी से अलग अपनी राह चलती रही हैं। साहित्य क्षेत्र में चल रहे वाम विचारी संगठनों और उनकी अतिवादी राजनीति से उन्होंने अपनी दूरी बनाए रखी। इसके चलते उनके विपुल लेखन और अवदान पर साहित्य के मठाधीशों की नजर नहीं जाती। अपने रचे मानकों और तंग दायरों की आलोचना द्वारा मालती जी की उपेक्षा साधारण नहीं है। यह भारतीय मन और विचार के प्रति मालती जी प्रतिबद्धता के कारण ही है। अपनी लेखन शैली से उन्होंने भारतीय जनमन को प्रभावित किया है,यही उनकी उपलब्धि है। क्या हुआ जो आलोचना के मठाधीशों द्वारा वे अलक्षित की गयीं। सही मायनों में रचना और उसका ठहराव ही किसी लेखक का सबसे बड़ा सम्मान है। परंपरा, भारतीय परिवार, संवेदना और मानवीय मूल्यों की कथाएं कहती हुई मालती जोशी अपने समय के कथाकारों बहुत आगे नजर आती हैं। उनकी अपार लोकप्रियता यह प्रमाण है कि सादगी से बड़ी बात कही जा सकती है। इसके लिए मायावी दुनिया रचने और बहुत वाचाल होने की जरूरत नहीं है। अपनी जमीन की सोंधी मिट्टी से उन्होंने कथा का जो परिवेश रचा वह लंबे समय तक याद किया जाएगा।

अप्रतिम लोकप्रियता

हिंदी वर्तमान परिदृश्य पर बहुत कम कथाकार हैं, जिन्हें पाठकों की ऐसी स्वीकार्यता मिली हो। औरंगाबाद(महाराष्ट्र) के मराठी परिवार 4 जून 1934 को जन्मीं मालती जोशी के न्यायाधीश पिता मध्यप्रदेश में कार्यरत थे, इससे उन्हें इस प्रांत के कई जिलों में रहने और लोकजीवन के करीब से देखने का अवसर मिला। 1956 में उन्होंने इंदौर के होलकर कालेज से हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। किशारावस्था में ही लेखन का शुरूआत कर मालती जी जीवन के अंतिम समय तक लेखन को समर्पित रहीं। उनका प्रारंभिक लेखन तो गीत के माध्यम से हुआ, बाद में वे बाल साहित्य भी लिखती रहीं फिर कहानी विधा को समर्पित हो गईं। उनके कथा लेखन को राष्ट्रीय पहचान ‘धर्मयुग’ पत्रिका से मिली और भारतीय परिवारों की चर्चित लेखिका बन गयीं। ‘धर्मयुग’ में आपकी पहली कहानी ‘टूटने से जुड़ने तक’ 1971 में छपी और तब से उन्होंने मुड़कर नहीं देखा। देश की चर्चित पत्रिकाओं कादम्बिनी,साप्ताहिक हिंदुस्तान, नवनीत, सारिका, मनोरमा के माध्यम से वे पाठकों की  बड़ी दुनिया में अपनी जगह बना चुकी थीं। 60 से अधिक कृतियों की रचना कर मालती जी ने भारतीय साहित्य को समृध्द किया है। उनकी सतत रचनाशीलता ने उन्हें भारतीय साहित्य का अनिवार्य नाम बना दिया है।

परिवार और संवेदना के ताने बाने

मालती जोशी मूलतः रिश्तों की कथाकार हैं। निजी जीवन में भी उनकी सरलता, सहजता और विनम्रता की यादें सबकी स्मृति में हैं। पारिवारिक, सामाजिक, घरेलू दायित्वों को निभाती हुई एक सरल स्त्री किंतु ताकतवर स्त्री उनकी निजी पहचान है। जिसने साहित्य सृजन के लिए कोई अतिरिक्त मांग नहीं की। किंतु जो किया वह विलक्षण है। परिवार और बच्चों के दायित्वों को देखते हुए अपने लेखन के लिए समय निकालना, उनकी जिजीविषा थी। आखिरी सांस तक वे परिवार की डोर को थामें लिखती रहीं। लिखना उनका पहला प्यारथ था । इंदौर, भोपाल, दिल्ली, मुंबई उनके ठिकाने जरूर रहे किंतु वे रिश्तों,संवेदनाओं और भारतीय परिवारों की संस्कारशाला की कथाएं कहती रहीं। 90 साल की उनकी जिंदगी में बहुत गहरे सामाजिक सरोकार हैं। उनके पति श्री सोमनाथ जोशी , अभियंता और समाजसेवी के रूप में भोपाल के समाज जीवन में ख्यात रहे। सन् 1981 से वे ज्यादातर समय भोपाल में रहकर निरंतर पारिवारिक दायित्वों और लेखन,सृजन में समर्पित रहीं। 2001 में पति के निधन के बाद उन्होंने खुद को और परिवार को संभाला। उनके सुपुत्र डा.सच्चिदानंद जोशी संप्रति अपनी मां की विरासत का विस्तार कर रहे हैं। वे न सिर्फ एक अच्छे कथाकार और कवि हैं, बल्कि उन्होंने संस्कृति और रंगमंच के कलाक्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। उनकी पुत्रवधू श्रीमती मालविका जोशी भी कथाकार और रंगमंच की सिद्ध कलाकार हैं।

मध्यवर्गीय भारतीय परिवार उनकी कथाओं में प्रायः दिखते हैं। संस्कारों से रसपगी भारतीय स्त्री के सौंदर्य,साहस और संवेदना की कथाएं कहती हुए मालती जोशी बड़ी लकीर खींचती हैं। वर्गसंघर्ष की एक जैसी और एकरस कथाएं कहते कथाकारों के बीच मालती जोशी भारतीय परिवारों और उनके सुंदर मन की आत्मीय कथाएं लेकर आती हैं। अपनी सहज,सरल भाषा से वे पाठकों के मनों और दिलों में जगह बनाती हैं। उनको पढ़ने का सुख अलग है। उनकी कहानियां बेहद साधारण परिवेश से निकली असाधारण नायकों की कहानियां हैं। जो जूझते हैं, जिंदगी जीते हैं किंतु कड़वाहटें नहीं धोलते। बहुत सरल, आत्मीय और हम-आपके जैसे पात्र हमारे आसपास से ही लिए गए हैं। कथा में जीवन की सरलता-सहजता की वे वाहक हैं। मालती जी के पात्र बगावत नहीं करते, झंडे नहीं उठाते, नारे नहीं लगाते। वे जिंदगी से जूझते हैं, संवेदना के घागों से जुड़कर आत्मीय,सरल परिवेश रचते हैं। मालती जी की कथाओं यही ताकतवर स्त्रियां हैं, जो परिवार और समाज के लिए आदर्श हो सकती हैं। जो सिर्फ जी नहीं रहीं हैं, बल्कि भारतीय परिवारों की धुरी हैं।

स्त्री के मन में झांकती कहानियां

मालती जोशी ने अपनी कहानियों में स्त्री के मन की थाह ली है। वे मध्यवर्गीय परिवारों की कथा कहते हुए स्त्री के मन, उसके आत्मसंर्घष, उसकी जिजीविषा और उसकी शक्ति सबसे परिचित कराती हैं। संवेदना के ताने-बाने में रची उनकी रचनाएं पाठकों के दिलों में उतरती चली जाती हैं। पाठक पात्रों से जुड़ जाता है। उनके रचे कथारस में बह जाता है। अनेक भारतीय भाषाओं में उनकी कृतियों के अनुवाद इसलिए हुए क्योंकि वे दरअसल भारतीय परिवारों की कथाएं कह रही थीं। उनके परिवार और उनकी महिलाएं भारत के मन और संस्कारों की भी बानगी पेश करती हैं। भारतीय परिवार व्यवस्था वैसे भी दुनिया के लिए चिंतन और अनुकरण का विषय है। जिसमें स्त्री की भूमिका को वे बार-बार पारिभाषित करती हैं। उसके आत्मीय चित्रण ने मालती जोशी को लोकप्रियता प्रदान की है। उनकी कहानियां आम आदमी, आम परिवारों की असाधारण कहानियां हैं। औरत का एक सामाजिक और मनोवैज्ञानिक विषय दोनों है। इस अर्थ में मालती जी विलक्षण मनोवैज्ञानिक कथाकार भी हैं। उनके पात्र समाज के सामने समाधानों के साथ आते हैं। सिर्फ संकट नहीं फैलाते। उनकी भाषा में जहां प्रसाद और माधुर्य के गुण हैं वहीं वे आवेग और आवेश की धारा से जुड़ जाती हैं। संकेतों में वे जो भाव व्यक्त कर देती हैं वह सामान्य लेखकों के लिए विस्तार की मांग करता है।

मालवा की मीरा और कथाकथन की शैली

मालती जोशी के प्रमुख कहानी संग्रहों में पाषाण युग, मध्यांतर, समर्पण का सुख, मन न हुए दस बीस, मालती जोशी की कहानियां, एक घर हो सपनों का, विश्वास गाथा, आखिरी शर्त, मोरी रंग दी चुनरिया, अंतिम संक्षेप, एक सार्थक दिन, शापित शैशव, महकते रिश्ते, पिया पीर न जानी, बाबुल का घर, औरत एक रात है, मिलियन डालर नोट आदि शामिल हैं। मालती जोशी ने केवल कविताएं या कहानियां ही नहीं बल्कि उपन्यास और आत्म संस्मरण भी लिखे हैं। उपन्यासों में पटाक्षेप, सहचारिणी, शोभा यात्रा, राग विराग आदि प्रमुख हैं। वहीं उन्होंने एक गीत संग्रह भी लिखा, जिसका नाम है, ‘मेरा छोटा सा अपनापन’। उन्होंने  ‘इस प्यार को क्या नाम दूं? नाम से एक संस्मरणात्मक आत्मकथ्य भी लिखा। उनकी एक और खूबी रही कि उन्होंने कभी भी अपनी कहानियों का पाठ कागज देखकर नहीं किया, क्योंकि उन्हें अपनी कहानियां, कविताएं जबानी याद रहतीं थीं। मराठी में ‘कथाकथन’ की परंपरा को वे हिंदी में लेकर आईं। उनके कथापाठ में उपस्थित रहकर लोग कथा को सुनने का आनंद लेते थे। इन पंक्तियों के लेखक को भी उनके कथाकथन की शैली के जीवंत दर्शन हुए थे। बिना एक कागज हाथ में लिए वे जिस तरह से कथाएं सुनातीं थी वह विलक्षण था। दूरदर्शन उनकी सात पर कहानियों पर श्रीमती जया बच्चन ने ‘सात फेरे’ बनाया। इसके अलावा गुलजार निर्मित ‘किरदार’ में भी उनकी दो कहानियां थीं। आकाशवाणी पर उनकी अनेक कहानियों के प्रसारण हुए। जिसने कथाकथन की उनकी शैली को व्यापक लोकप्रियता दिलाई।

इसके साथ ही मालती जोशी ने कई बालकथा संग्रह भी लिखे हैं, इनमें, दादी की घड़ी, जीने की राह, परीक्षा और पुरस्कार, स्नेह के स्वर, सच्चा सिंगार आदि शामिल हैं। उनके निधन पर मध्यप्रदेश के अखबारों ने उन्हें ‘मालवा की मीरा’ कहकर प्रकाशित संबोधित किया। इसका कारण यह है कि लेखन के शुरुआती दौर में मालती जोशी कविताएं लिखा करती थीं। उनकी कविताओं से प्रभावित होकर उन्हें मालवा की मीरा नाम से भी संबोधित किया जाता था। उन्हें इंदौर से खास लगाव था। वे अक्सर कहा करती थीं कि इंदौर जाकर मुझे सुकून मिलता है, क्योंकि वहां मेरा बचपन बीता, लेखन की शुरुआत वहीं से हुई और रिश्तेदारों के साथ ही उनके सहपाठी भी वहीं हैं। यह शहर उनकी रग-रग में बसा था। खुद अपनी आत्म कथा में मालती जोशी ने उन दिनों को याद करते हुए लिखा है, ‘मुझमें तब कविता के अंकुर फूटने लगे थे, कॉलेज के जमाने में इतने गीत लिखे कि लोगों ने मुझे ‘मालव की मीरा’ की उपाधि दे डाली।’ कथाकथन के तहत उनकी अनेक कहानियां यूट्यूब पर उपलब्ध हैं। इसकी सीडी भी उपलब्ध है।

देह के विमर्श में परिवार की कहानियां

मालती जोशी की कहानियां इस अर्थ में बहुत अलग हैं कि वे परिवार और सामाजिक मूल्यों की कहानियां हैं। उनके पात्र अपनी सीमाओं का अतिक्रमण नहीं करते और मूल्यों की स्थापना में सहयोगी हैं। वे परंपरा के भीतर रहकर भी सुधार का आग्रह करते हैं। मालती जी ने एक इंटरव्यू में स्वयं कहा था- “हिंदी साहित्य में स्त्री देह का विमर्श और बोल्डनेस बढ़ गया है किंतु मैं पारिवारिक कहानियां कहती हूं।” उन्होंने कहा था कि “ मेरी कहानियों में आपको कहीं बेडसीन नहीं मिलेगा। मैं जितना परहेज अपने बहू-बेटे के कमरे में जाने से करती हूं, उतना ही अपने पात्रों के बेडरूम में जाने से करती हूं।” वे साफ कहती थीं कि नारीवाद के नाम पर हमेशा नारेबाजी के बजाए विनम्रता से भी स्त्रियों का पक्ष रखा जा सकता है। इन अर्थों में मालती जी कहानियों के पात्र अलग तरह से प्रस्तुत होते हैं। वे पितृसत्ता के साथ टकराते हैं, नये विचारों से भरे-पूरे हैं, किंतु नारे नहीं लगाते। वे बदलाव के नायक और साक्षी बनते हैं। अपने निजी जीवन में भी इसे मानती हैं। इसी इंटरव्यू  में उन्होंने बताया है कि पारंपरिक मराठी परिवारों शादी के बाद बहू का नाम बदलने की परंपरा है। जब उनसे पति ने पूछा कि आपको क्या नाम पसंद है। तो उनका कहना था मेरे नाम में क्या बुराई है। वे बताती हैं कि मैंने न अपना नाम बदला न बहुओं का नाम बदलने दिया। वे मानती थीं कि नाम बदलने से स्त्री की पूरी पहचान बदल जाती है। उन्होंने एक अन्य इंटरव्यू में कहा है कि वे स्त्रियों की स्वतंत्रता की पक्षधर हैं किंतु स्वच्छंदता की नहीं।
उनकी रचना प्रक्रिया पर दीपा लाभ ने लिखा है- “मालती जोशी की भाषा-शैली बेहद सरल, सुगम और सहज है। उनके सभी पात्र आम जीवन से प्रेरित हमारे-आपके बीच के क़िरदार हैं। अधिकतर कहानियाँ स्त्री-प्रधान हैं किन्तु न तो वे दबी-कुचली अबला नारी होती है और ना ही शहरी, ओवरस्मार्ट कामकाजी लडकियाँ – उनके सभी पात्र यथार्थ के धरातल से निकले वास्तविक-से प्रतीत होते हैं। उनकी कथाओं से सकारात्मकता का संचार होता है जो स्वतः ही दिल की गहराइयों में उतरता चला जाता है। पुरुष पात्रों को भी निरंकुश या अहंकारी नहीं बनाकर उन्होंने कई दफ़े उनके सकारात्मक पक्षों को उजागर किया है। मध्यम-वर्गीय परिवारों की आम समस्याएँ, दैनिक जद्दोजहद और मन के भावों को बहुत संवेदनशील अंदाज़ में संवाद रूप में प्रस्तुत करना।”

सर्जना का सम्मान

राष्ट्रपति सम्मानित करते हुए

साहित्य के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन का भवभूति अंलकरण, मध्यप्रदेश सरकार का साहित्य शिखर सम्मान, ओजस्विनी सम्मान, दुष्यन्त कुमार सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, दिनकर संस्कृति सम्मान,माचवे सम्मान, महाराष्ट्र शासन द्वारा सम्मान, वनमाली सम्मान, मारीशस में विश्व हिन्दी सम्मेलन में पुरस्कृत होने के साथ साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिये भारत सरकार द्वारा 2018 में पद्मश्री सम्मान से भी नवाजा जा चुका है।


उनकी कथा संवेदना बहुत व्यापक है। इसीलिए वे पाठकों के बीच समादृत हैं। जयप्रकाश पाण्डेय लिखते है- “मालती जोशी अपनी कहानियों से संवेदना का एक अलग संसार बुनती हैं, जिसमें हमारे आसपास के परिवार, उनका राग और परिवेश जीवंत हो उठते  हैं।  उनकी कहानियां संवाद शैली में हैं, जिनमें जीवन की मार्मिक संवेदना, दैनिक क्रियाकलाप और वातावरण इस सुघड़ता से चित्रित हुए हैं कि ये कहानियां मन के छोरों से होते हुए चलचलचित्र सी गुजरती हैं. इतनी कि पाठक कथानक में बह उनसे एकाकार हो जाता है।” हिंदी साहित्य जगत पर अमिट छाप छोड़ने वाली मालती जोशी की मराठी में भी ग्यारह से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. उनकी कहानियों का मराठी, उर्दू, बंगला, तमिल, तेलुगू, पंजाबी, मलयालम, कन्नड भाषा के साथ अँग्रेजी, रूसी तथा जापानी भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है।


अब जबकि 90 साल की सक्रिय जिंदगी जीकर 15 मई,1924 को वे हमें छोड़कर जा चुकी हैं, उनकी स्मृतियां ही हमारा संबल हैं। हमारे जैसे न जाने कितने लोग इस बात का जिक्र करते रहेंगें कि उन्होंने मालती ताई को देखा था। एक लेखिका, एक मां, एक सामाजिक कार्यकर्ता और प्रेरक व्यक्तित्व की न जाने कितनी छवियों में वे हमारे साथ हैं और रहेंगीं। उनकी रचनाएं लंबे समय तक भारतीय परिवारों को उनकी शक्ति, जिजीविषा और आत्मीय  परिवेश की याद दिलाती रहेंगीं। भावभीनी श्रद्धांजलि!


प्रो.  संजय द्विवेदी
47, शिवा रायल पार्क, सलैया,
निकटःआकृति ग्रीन्स, भोपाल-462047 (मध्यप्रदेश)
मोबाइल-9893598888

⚫ परिचयः प्रो.संजय द्विवेदी, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालयष भोपाल के जनसंचार विभाग में आचार्य हैं। आप भारतीय जनसंचार संस्थान,नई दिल्ली के महानिदेशक रहे हैं।

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