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शख्सियत : 90 बरस की उम्र में भी कविताओं की बारिश, कविताएं बनी जीवन का पर्याय

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जीवंत रचनाकार डॉ. दुर्गा प्रसाद झाला

मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन व्दारा नवाजा जा चुका भवभूति अलंकरण

नरेंद्र गौड़

90 बरस की उम्र में आम तौर पर अनेक बीमारियां घेर लेती हैं और मजबूरन व्यक्ति बिस्तर पकड़ लेता है, उसका जीवन अनेक तरह की दवाएं खाते हुए नाती पोतों के हवाले हो जाता है। जो भी हो इस उम्र में कविता लिखना तो किसी भी तरह असंभव है, लेकिन शाजापुर के डॉ. दुर्गा प्रसाद झाला के मामले में यह तमाम बातें एकदम झूठ साबित होती हैं। उम्र के इस पड़ाव पर भी वे सप्ताह में कम से कम एक दो कविताएं तो लिख ही लेते हैं और इस हिसाब से हर साल उनका एक नया संकलन विगत दस वर्षो से छपता आ रहा हैै।

लेखन के मामले में युवाओं को मात

लेखन के मामले में डॉ. झाला युवाओं भी मात दे रहे हैं। उन्हें कोई बीमारी है न तिजारी। उन्हें छोटे-बड़े अनेक पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है, इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण है मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन व्दारा ’भवभूति अलंकरण’ प्रदान किया जाना।  हाल ही में झाला जी का नया कविता संकलन ’सपनों की बारिश‘ प्रकाशित हुआ है और इसके चंद माह पूर्व इनके साहित्यिक अवदान को लेकर प्रकाशकांत के संपादन में एक किताब ’डॉ. दुर्गा प्रसाद झाला एक सुदीर्घ काव्य यात्रा’ छप चुकी है।

लेखन कर्म बना जीने की अनिवार्यता

18 जनवरी 1933 को जिला देवास के गंधर्वपुरी में जन्मे झाला जी हिंदी में पीएचडी हैं और वर्ष 1960 से 1993 तक शासकीय सेवा में रहे। आप अनेक वर्षों तक शाजापुर के ’नवीन शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय’ में हिंदी विभागाध्यक्ष रहने के बाद इन दिनों स्वतंत्र रूप से लेखन में व्यस्त हैं। जाने माने कवि, पत्रकार तथा म.प्र. सरकार से शिखर सम्मान प्राप्त विष्णु नागर, डॉ. जगदीश भावसार, कवि बृजकिशोर शर्मा, श्रीमती संतोष शर्मा, कविता पुणताम्बेकर, कैलाश गौड़, दिवंगत जयप्रकाश आर्य तथा अरूण व्यास, सहित अनेक रचनाशील लोग इनके शिष्य रहे हैं। झाला जी का कहना है कि ’यदि वह नहीं लिखेंगे तो डिप्रेशन सहित विभिन्न बीमारियों के शिकार हो सकते हैं, क्योंकि वर्तमान समय में व्यवस्था ने मनुष्य का जीवन बहुत कठिन कर दिया है, ऐसे में संवेदनशील व्यक्ति बहुत छटपटाहट का अनुभव कर रहा है। इसलिए उनके लिए लेखन कर्म जीवन की अनिवार्यता है।’

सच्चे मनुष्य का बोध कराती कविताएं

कहानीकार तथा चर्चित पत्रिका ’पहल’ के संपादक ज्ञानरंजन ने झाला जी की कविताओं को लेकर कहा है कि ’शाजापुर से उपजी यह कविताएं बहुत अच्छी हैं। इनमें अनगिनत ऐसी पंक्तियां हैं जिनसे झाला जी के सच्चे मनुष्य होने का बोध होता है। आप से मेरा संबंध होना एक दुर्लभ घटना है। मैं आपको न केवल पहचान रहा हूं, बल्कि आपसे कृतज्ञता का रिश्ता महसूस करता हूं। आपकी कविताएं मुझे तन्मय और लीन करती हैं। बार-बार पुराने समय में पढ़ी हुई देश विदेश की बहुतेरी कविताएं याद आती हैं। कविता और उसका ऐसा समय छूट रहा है। बाजार घिर आया है। शायद दुनिया को यही मंजूर है। मैं अपना सारा काम करते हुए भी सोचता हूं कि समाधि की तरफ जा रहा हूं। जबरदस्त अकेलापन है। कुछ दोस्त हैं। कुछ कविताएं हैं जो बची हुई हैं।’

रचनाकर्म पर केंद्रित पुस्तक

झाला जी के रचनाकर्म पर केंद्रित पुस्तक ’दुर्गा प्रसाद झाला एक सुदीर्घ काव्य यात्रा’ में अनेक महत्वपूर्ण रचनाकारों के झाला जी पर एकाग्र पत्र तथा टिप्पणियों का समावेश किया गया है। इस किताब में इनकी चुनिंदा कविताएं  और आलेख भी हैं। इस पुस्तक के साथ ही इनका कविता संकलन ’सपनों की बारिश’ भी प्रकाशित हुआ है। इसकी कविताएं पढ़कर लगता है कि उनमें बढ़ती उम्र की तमाम मजबूरियां लाचारियों को लांघते हुए एक युवा का उत्स है। झाला जी को पढ़ना एक लिक्खाड़ कवि के रचनाधर्म से होकर गुजरना है जो किसी किस्म की बैसाखी को थामने के बजाए कविता की दुनिया में डूबा है। कविता ही उनके लिए जीवन मरण है और वही उनके लिए प्राणवायु है। झाला जी के लिए कविता हवा पानी है जिसका वितान चारों दिशाओं फैला हुआ है। झाला जी का कवि आत्मलीन नहीं है, वरन वह अपने समय की नब्ज को भी टटोलता है। उसे पता है कि व्यवस्था ने मुनष्य का जीवन कितना कठिन बना दिया है और राजनीति की हालत क्या है।

राजनीति अब शतरंज का
खेल हो गई है
प्यादा पिट रहा है
बादशाह अपने घर में
मौज मजे में है।

यथार्थ का उद्घाटन करती कविताएं

संकलन ’सपनों की बारिश’ में सामाजिक यथार्थ को उद्घाटित करती 70 से अधिक कविताएं हैं। झाला जी की अधिकांश कविताएं गुस्से, खीज, करूणा, स्मृतियों और हमारे समय की बेचैनियों से बनी कविताएं हैं। इनमें गहरी हताशा के स्वर हैं तो कहीं उसी के बीच से कौंधती उम्मीद की रौशनी भी मौजूद है। यहां रौशनी की एक बूंद को अपनी मुट्ठी में बंद कर लेने का खेल है तो यह प्रश्न भी कि आजाद चीजों को कैद करने का ऐसा खेल क्यों होता है। इन कविताओं में बेबसी के स्वर के बजाए तेजी से बदलते शहर, आदमी का स्वभाव और गतिशील जीवन की स्थितियां हैं। यह कविताएं अपनी बात कहने के लिए किसी कविताई कौतुक, अलंकारिकता या भाषाई बंतुपन का आसरा नहीं ढूंढती। झाला जी का कोई भी संकलन उठा लीजिए आप कविताओं में दोहराव नहीं पाएंगे। साथ ही आप इन्हें पढ़कर विचलित हुए बिना भी नहीं रहंेगे। अनेक कविताएं और अनेक पंक्तियां आपके मन में उतरकर आपकी स्मृति का हिस्सा हो जाएंगी।

झाला जी की प्रकाशित पुस्तकें

डॉ. झाला की पुस्तकों की लिस्ट कोई छोटी नहीं है। अगर सभी किताबों की चर्चा और उन्हें लेकर टिप्पणी की जाए तो एक पुस्तिका अलग से तैयार हो सकती है। इसलिए यहां महत्वपूर्ण पुस्तकों की चर्चा की जा रही है, इनमें प्रमुख हैं- प्रगतिशील हिंदी कविता (शोध प्रबंध), रचना की अंतर्यात्रा (समीक्षा), हमारे आधुनिक कवि (समीक्षा), चेतना के स्वर (कविता), यात्रा जारी है (कविता), बहती है एक नदी (कविता), अक्षर और आदमी का रिश्ता (कविता), धूप और छॉव के रंग (कविता), बच्चे की हॅसी (कविता),  कालयात्रा (कविता), अपनी जमीन से गुजरते हुए (कविता), संवेदना का थरथराता जल (कविता), प्रश्नों की सलीब पर (एक लम्बी कविता), समय और समय (प्रतिनिधि कविताएं), सृजन यात्राः डॉ. दुर्गा प्रसाद झाला ( संपादनः डॉ. दिनकर पेंढ़ारकर), डॉ. दुर्गा प्रसाद झाला एक सुदीर्घ काव्य यात्रा (संपादनः प्रकाश कांत), अपने समय से गुजरते हुए, जलती रेत पर नंगे पांव, सही शब्द की तलाश में, हर पल एक प्रतीक्षा, अभी बहुत कुछ बचा है (सभी कविता संकलन), संपादित कृतिः कविश्री बच्चन, कवि महेंद्र भटनागर। डॉ. झाला को अनेक छोटे-बड़े सम्मान मिल चुके हैं। इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण है मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन व्दारा ’भवभूति अलंकरण’ प्रदान किया जाना।

चुनिंदा कविताएं

सपना

मैंने हमेशा चाहा
सूरज मेरी आंखों में रहे
और चांद मेरे दिल के अंदर

धरती मुझे अपनी गोद में
पालती रहे
और फूल महकाते रहें
मेरी देह ही नहीं
मेरी आत्मा को भी

यह मेरा सपना है
जो हमेशा
एक पंछी की तरह
अपने पंख फैलाए
धरती से आकाश तक
और आकाश से धरती तक
अपनी उड़ान भरता रहता है।

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तुम हत्या नहीं कर सकोगे

तुम हत्या नहीं कर सकोगे
हमारी आत्मा की
तुम कुचल नहीं सकोगे
हमारे सपनों को

तुम मिटा नहीं सकोगे
हमारे शब्दों को

तुम रौंद नहीं सकोगे
हमारे विचारों को

तुम कितनी भी कोशिश करो
तुम्हारी तलवार
काट नहीं सकेगी
हमारी मुक्ति की
दिशा को।

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रामदास

रामदास उदास है
कहता है-
भूखे पेट गाता हूं
भूखे पेट बांसुरी
बजाता हूं
भूखे पेट बाजार
जाता हूं
भूखे पेट वापस
आ जाता हूं
झोली अपनी हमेशा
खाली पाता हूं।

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मुझे भरोसा है

मुझे भरोसा है
अभी उम्र बाकी है
और लिखना शेष है

मुझे भरोसा है
अभी सूरज चांद
उग रहे हैं
और उनकी रोशनी में
नहाना शेष है

मुझे भरोसा है
अभी नदी बह रही है
और उसके गीतों में
बहना शेष है

मुझे भरोसा है अभी
अपने पैर
मैं चल रहा हूं
और मंजिल पाना
शेष है।

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