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साहित्य सरोकार : मै मजदूर हूँ

ज्योति रेबेटा “युवी”

मजबूर हूँ  साब,
दो वक्त रोटी के लिए,
क्योंकि मैं मजदूर हूँ,

कभी खींचता गाड़ा,
कभी ईंटो,पत्थरों को,
सर पर ढोता,
थोड़े से रुपयों से,
मै अपना घर चलाता,
मेरे भी बच्चे है,
प्रेम प्यार से उन्हें भी संभालता

क्योंकि मै मजदूर हूँ साब
नेता हो या आम आदमी
सबने मेरी बस इतनी कीमत जानी,
जहाँ जब जैसा मौका हो,
वही मै इस्तेमाल हो जाता,
सबके मै काम ही आता,


मेरे बच्चे तरस जाते पढ़ाई को,
सड़क की रोशनी में पढ़ाई करवाता,
मेरा बच्चा भी आगे बढे,
ये सपना में रोज देखता
मजबूर बहुत हूँ साब,
क्योंकि मजदूर हूँ


ज्योति रेबेटा “युवी”
इंदौर (मध्यप्रदेश)

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