साहित्य सरोकार : नाटक लोकरंजन नहीं लोककल्याण की कला

वरिष्ठ रंगकर्मी युसूफ जावेदी ने कहा

जनवादी लेखक संघ द्वारा रतलाम के रंगकर्म पर परिचर्चा

रतलाम ने उस समय नाटकों के माध्यम से अपनी पहचान स्थापित की, जब देशभर के प्रमुख बड़े निर्देशकों का था बोलबाला : प्रो. रतन चौहान

नई पीढ़ी के सामने मजबूत विकल्प मौजूद नहीं : दशोत्तर

हरमुद्दा
रतलाम, 21 जुलाई। नाटक जन कल्याण की बात करता है । जनरुचि के विषयों को उठाता है और सवाल करता है । रतलाम के रंगकर्म ने भी नाटक को लोक रंजन का नहीं लोक कल्याण का माध्यम बनाया । यहां मंचित नाटकों ने प्रदेश और देश भर में अपनी छाप छोड़ी । इस समृद्ध परंपरा को पुनः स्थापित करने के लिए शीघ्र ही नाट्य मंचन की रूपरेखा बनाई जाएगी।


यह विचार जनवादी लेखक संघ द्वारा ‘रतलाम के रंगकर्म ‘ विषय पर आयोजित परिचर्चा में वरिष्ठ रंगकर्मी युसूफ जावेदी ने व्यक्त किए।  सुषमा साहित्य काव्य संस्थान परिसर में आयोजित परिचर्चा में श्री जावेदी ने कहा कि रंगकर्म मनुष्य को अनुशासन सिखाता है। जीवन जीने की कला भी सिखाता है और विपरीत परिस्थितियों का मुकाबला करने का साहस भी प्रदान करता है। रतलाम के कलाकारों ने 80 और 90 के दशक में प्रो. हेमेंद्र शुक्ला , चंद्रकांत देवताले , हरीश पाठक, शरद पगारे ,  जयकुमार जलज, रतन चौहान जैसे मार्गदर्शकों के सान्निध्य में रंगकर्म को आगे बढ़ाया । रतलाम में युगबोध, जन नाट्य मंच , रंग चेतना जैसी संस्थाओं ने अपनी प्रस्तुतियों द्वारा देश के बड़े निर्देशकों को भी प्रभावित किया । इस समृद्ध परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए आगामी समय में कार्य योजना बनाकर इसे मूर्त रूप प्रदान किया जाएगा।

रतलाम ने उस समय नाटकों के माध्यम से अपनी पहचान स्थापित की, जब देशभर के प्रमुख बड़े निर्देशकों का था बोलबाला

संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि, अनुवादक एवं नाट्य लेखक प्रो. रतन चौहान ने कहा कि रतलाम ने उस समय नाटकों के माध्यम से अपनी पहचान स्थापित की जब देशभर के प्रमुख बड़े निर्देशकों का बोलबाला था। यहां की प्रस्तुतियों ने अपनी एक अलग पहचान कायम की और यह संदेश भी दिया कि रतलाम में नाटक जन पक्षधरता, जनकल्याण और जन भावनाओं को पोषित करते हैं। इसी परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए रतलाम के युवा कलाकारों को आगे आना आवश्यक है। पिछले कुछ समय से युगबोध द्वारा बच्चों का ग्रीष्मकालीन बालनाट्य शिविर आयोजित हो रहा है , जिसके माध्यम से बच्चों में नाटकों की प्रति चेतना जागृत हुई है। इस सिलसिले को युवा पीढ़ी तक लाने की आवश्यकता है। इसमें सभी रंगकर्मियों और नाट्य प्रेमियों का सहयोग अपेक्षित है।

नई पीढ़ी के सामने मजबूत विकल्प मौजूद नहीं : दशोत्तर

संचालन करते हुए आशीष दशोत्तर ने कहा कि रतलाम में नाट्य गतिविधियां निरंतर जारी रहे इसके लिए सभी को मिलकर कार्य करना आवश्यक है । आज भी नई पीढ़ी के लोग इस क्षेत्र में आना चाहते हैं मगर उनके सामने कोई मज़बूत विकल्प मौजूद नहीं है। एक बार नाट्य मंचन की शुरूआत हो जाएगी तो कई कलाकार यहां पर पुनः मंच से जुड़ेंगे।

इन्होंने भी सहभागिता की परिचर्चा में

परिचर्चा में विष्णु बैरागी, पद्माकर पागे,  इंदु सिन्हा, आशा श्रीवास्तव, संजय परसाई ‘सरल’ , जितेंद्र सिंह पथिक,  हीरालाल खराड़ी, सिद्दीक़ रतलामी, अब्दुल सलाम खोकर, सुभाष यादव, मांगीलाल नगावत एवं उपस्थितजनों ने सहभागिता की। संस्था सचिव सिद्दीक़ रतलामी में आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर शहर के सुधिजन मौजूद थे।

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