सामाजिक सरोकार : समाज की गतिविधियों से ही सीखते हैं हमारे बच्चे
⚫ महिला एवं बाल विकास विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी रजनीश सिंहा ने कहा
⚫ “लैंगिक संवेदनशीलता सप्ताह” जागरूकता कार्यक्रम का जिला कार्यालय से शुभारंभ
हरमुद्दा
रतलाम, 6 अगस्त। बच्चे हमारे समाज की गतिविधियों से ही सीखते हैं । जब वह पढ़ते हैं कि मां घर में खाना बना रही है, सीता पानी भर रही है और रामू पतंग उड़ा रहा है तो उसे लगता है कि इसी प्रकार का लिंग आधारित कार्य विभाजन होता है। हमें इसे दूर करने का प्रयास करना है।
यह विचार महिला एवं बाल विकास विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी रजनी सिंहा ने व्यक्त किए। श्री सिंहा “लैंगिक संवेदनशीलता सप्ताह” का शुभारंभ अवसर पर जिला महिला एवं बाल विकास कार्यालय के मीटिंग हॉल संबोधित कर रहे थे
बालक बालिका की परवरिश होनी चाहिए समान रूप से घर पर ही
बालक-बालिका की समान परवरिश घरों से प्रारंभ की जाना चाहिए जिससे लिंग के आधार पर असमानता उत्पन्न ही न हो। इसके लिए जागरूकता की जरूरत है।
⚫ विनीता लोढ़ा, सहायक संचालक महिला में बाल विकास विभाग
स्वभाव के आंकलन का आधार वेशभूषा नहीं हो सकती
समाज में बेटी को बेटा बोला जाता है, लैंगिक असमानता का भाव परिवार द्वारा शुरू किया जाता है जो कि आगे बढ़ता रहता है। कार्यालय में महिला की वेशभूषा से उसका आंकलन कई बार पुरुषों द्वारा किया जाता है जबकि किसी के चरित्र या स्वभाव के आंकलन का आधार वेशभूषा नहीं हो सकती।
⚫ अंकित पण्ड्या, हब नोडल अधिकारी
बचत की आदत पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक
घरों में वित्तीय निर्णय लेने में महिला की पूर्ण भागीदारी ली जानी चाहिए। बचत की आदत पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक होती है।
⚫ कीर्ति जलधारी, सहायक कोषालय अधिकारी
लैंगिक असमानता की शुरुआत घर से ही
लैंगिक असमानता की शुरुआत घर से होती है। जब बच्चा जन्म लेता है तो हॉस्पीटल से लड़का या लड़की नहीं लिखा जाता है। बल्कि ’’बेबी’’ लिखा जाता है। तदोपरांत घर में चर्चा होती है कि लड़के का जन्म हुआ या लड़की का जन्म हुआ।
⚫ नेहा कुआल, शहरी विकास अभिकरण
विभिन्न विभागों के अधिकारी कर्मचारी थे मौजूद
आयोजन के दौरान कलेक्टर कार्यालय के द्वितीय तल के विभिन्न विभागों जैसे जिला कोषालय, श्रम विभाग, उद्यानिकी विभाग, आयुष विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग इत्यादि के अधिकारी और कर्मचारी उपस्थित रहे।