नवजात को समय पर अपना दूध नहीं पिलाती है मां, प्रदेश के अधिकांश जिलों में

हरमुद्दा
रतलाम, 4 अगस्त। कहावत तो यह है कि पूत कपूत हो सकता है, लेकिन माता कुमाता कभी नहीं हो सकती। लेकिन नवजात के मामले में प्रदेश के आंकड़े कुछ ऐसी बात बयां कर रहे हैं कि मां अपने नवजात को समय पर दूध (स्तनपान) नहीं पिलाती है। जन्म के साथ ही पोषण के मामले नवजात का शोषण हो जाता है।

मध्यप्रदेश में 1 से 7 अगस्त तक विश्व स्तनपान सप्ताह मनाया जा रहा है ताकि महिलाओं को जागरूक किया जा सके स्तनपान कराने के लिए। हर साल आयोजन किया जाता है। हालांकि विभाग के लोगों का कहना कि हम तो 12 महीने समझाइश देते रहते हैं कि मां नवजात को स्तनपान जरूर कराएं। लगातार छह माह तक मां को अपना ही दूध पिलाना चाहिए और 6 महीने बाद मां के दूध के साथ पूरक आहार देना चाहिए। कम से कम 3 वर्ष तक मां को दूध पिलाना चाहिए। मगर विभाग का ही मानना है कि माताएं अपने नवजात को समय पर दूध नहीं पिलाती है।

समय पर अपना दूध नहीं पिलाने वाली “मां” के रेड झोन वाले जिले

मध्य प्रदेश में जन्म के बाद 1 घंटे के भीतर अपने नवजात को दूध नहीं पिलाने वाले माताओं के जिलों की फेहरिस्त काफी लंबी है। सूची में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के साथ ही मुख्यमंत्री कमलनाथ का छिंदवाड़ा व महानगरों नाम भी शामिल है। सभी जिले रेड झोन में है।

एक नजर जिलों पर- नीमच, मंदसौर, रतलाम, धार, इंदौर, अलीराजपुर, झाबुआ, देवास, बड़वानी, खंडवा, खरगोन, बुरहानपुर, रायगढ़, शाजापुर, देवास, उज्जैन, सीहोर, भोपाल, हरदा, होशंगाबाद, रायसेन, गुना, सागर, शिवपुरी अशोकनगर, दतिया, ग्वालियर, मुरैना, टीकमगढ़, छिंदवाड़ा, छतरपुर, पन्ना, सतना, सिंगरौली, डिंडोरी, जबलपुर, उमरिया, नरसिंहपुर।

नकारा साबित हुआ है विभाग

“मुद्दे” की बात तो यह है कि महिला एवं बाल विकास विभाग व आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सहित पूरा स्टाफ महिलाओं को यह समझाइश देने में अब तक नकारा साबित हुआ है कि मां का दूध बच्चों के लिए सर्वोत्तम आहार है और जन्म के 1 घंटे के भीतर नवजात को मां का दूध अवश्य पिलाना चाहिए।

सवालिया निशान लगना लाजमी

विभाग पर यह सवालिया निशान लगना लाजमी है कि विभाग आखिर कर क्या रहा है? वह या तो वह ढंग से अपना कार्य नहीं कर रहा है या फिर उनको समझाने का तरीका नहीं आता है। वरना महिलाएं, महिलाओं की बात जरूर सुनती और मानती। आखिर घपला कहां हुआ है, यह भी एक जांच का विषय है। कई बार यह बहाने बना लिए जाते हैं कि पढ़ी-लिखी महिलाएं अपने फिगर को देखती है। इस कारण अपना दूध नवजात को नहीं पिलाती है।

70.60 फीसद साक्षरता के बाद भी नासमझ हैं प्रदेश की माताएं

खास बात तो यह है कि 2011 के आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश में 80.5 फीसद पुरुष साक्षर है तो 60 फीसद महिलाएं पढ़ी लिखी है, फिर भी वे अपने बच्चे को जन्म के बाद अपना दूध नहीं पिलाती है। जबकि आजकल तो गूगल गुरु पर हरेक जानकारी मिल जाती है। अधिकांश के पास एंड्राइड मोबाईल है। फिर भी माताएं नासमझ है, ऐसा विभाग का मानना है।

तब भी सफल नहीं विभाग

उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में शासकीय चिकित्सालय तथा निजी चिकित्सालय में ही अधिकांश प्रसव होते हैं। इसके बावजूद नर्स और स्टाफ उन्हें समझा नहीं पाता है कि 1 घंटे के भीतर मां को अपना दूध नवजात को पिलाना है।

तो भी 19.5 प्रतिशत ही स्तनपान

रतलाम जिले में 85 प्रतिशत से अधिक चिकित्सालयों में प्रसव होने के बावजूद शीघ्र स्‍तनपान की दर केवल 19.5 प्रतिशत ही है। आखिर क्या कारण है की यह आंकड़ा बढ़ नहीं पा रहा है। यह विचारणीय है।

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