कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद ने धारा 370 के तीजे के मौके पर मातम के लिए कश्मीर जाते हुए दिल दु:खाने वाला बयान देकर फिर देशवासियों की गालियां खाने लायक काम किया है। शोपियां में ‘हीलिंग टच’ की कोशिश के बीच खाना खाते समय एनएसए अजीत डोभाल के साथ खड़े स्थानीय कश्मीरियों को भाड़े का बताकर गुलाम ने एक बार फिर अपनी ही पार्टी को पतन से महापतन की ओर उन्मुख करने वाली जुबानी पतवार चलाई है और वतनफरोशी के अपने इरादे ज़ाहिर किए हैं।

कोसने से बाज़ नहीं आ रही अलगाववादी औलादें

कश्मीर में हालात सामान्य करने के प्रयासों को मिलावटी और दुनिया दिखाऊ बताने के बाद गुलाम को आज सुरक्षाबलों द्वारा श्रीनगर एयरपोर्ट पर ही रोक लिए जाने की नौबत आ जाना साबित करता है कि गुलाम नबी आज़ाद भी मेहबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला की तरह कश्मीर के लिए उतने ही अशुभ हैं जितने कि हुर्रियत जमात के अलगाववादी और पाक के पालतू आतंकवादी हैं। जो रिश्ते में सब चोर-चोर मौसेरे भाई और अपने बाप पाकिस्तान के नानाविध घालमेलों की नाजायज़ औलादें हैं। 370 की मौत से ग़मज़दा होकर बौखलाया बाप एक तरफ भारत के ख़िलाफ़ आत्मघाती पाबन्दियाँ ठोके जा रहा है तो दूसरी तरफ अलगाववादी औलादें मोदी सरकार को पानी पी-पीकर कोसने से बाज़ नहीं आ रही है।

देशभक्त देशवासी को कोई ग़लतफ़हमी नहीं

मेहबूबा और उमर के मंसूबों को लेकर किसी भी देशभक्त देशवासी को कोई ग़लतफ़हमी नहीं है। उनका भारतद्रोह, कश्मीर मोह और पाकिस्तान परस्ती जगजाहिर है लेकिन गुलाम नबी आज़ाद जिस तरह आस्तीन के साँप सिद्ध हो रहे हैं, लगता है मानो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने ही ‘मम्मा’ की मूक सहमति से इस मुँह के बवासीर को छुट्टा छोड़ दिया है।

बेवकूफ़ी भरी बेशर्म सुर्री छोड़ दी तीजे पर

पहले दिन राज्यसभा में गुलाम ने कश्मीर की कलंक धारा से आज़ादी पर रोना रोया तो तीजे पर एक निहायत ही बेवकूफ़ी भरी बेशर्म सुर्री छोड़ दी। मानो कांग्रेस न 370 हटने देना चाहती है, न ही हटाए जाने के बाद कश्मीरियों को ‘हीलिंग टच’ देना चाहती है। उसे संविधान की दुहाई देकर लोकतंत्र की जान लेने का इल्ज़ाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह पर मढ़ने में तो मजा आ रहा है मगर नया कश्मीर गढ़ने में मदद की नीयत कतई नहीं है।

गुलाम नबी के सरासर देश विरोधी बोल वचन

गुलाम नबी आज़ाद, डॉ. कर्णसिंह के बाद कश्मीर में कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि नेता हैं। इस लिहाज़ से कहा जा सकता है कि उनका कश्मीर के ताज़ा हाल पर दिया जा रहा हर बयान राहुल गाँधी की सम्मति के बगैर सम्भव नहीं है। अन्यथा राहुल बाबा तो इतने सख्त है कि मोदी को नीच बोलने पर उन्होंने पापा के पक्के दोस्त और सीनियर नेता मणिशंकर अय्यर तक को बाहर का रास्ता दिखा दिया था। फिर गुलाम नबी के सरासर देश विरोधी बोल वचनों पर उन्हें कैसे बख़्श देते!

सिंधिया दलगत राजनीति से ऊपर उठकर देशहित में साथ खड़े

राहुल भी जानते होंगे कि देश की अखण्डता के इस सर्वाधिक अहम मुद्दे पर कांग्रेस भीतर ही भीतर बंट चुकी है। नागपंचमी पर राज्यसभा में चीफ़ व्हिप के इस्तीफे के बाद वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया का सरकार के समर्थन में जारी बयान इसकी बड़ी मिसाल है। आज देशवासियों की निगाह में सिंधिया दलगत राजनीति से ऊपर उठकर देशहित में साथ खड़े होने वाले नेता की तरह स्वीकारे और सराहे जा रहे हैं जबकि राहुल के रुख़ और वतनपरस्ती पर भी शक होने लगा है।

काश! राहुल अपने सखा से कुछ सीख पाते

काश! राहुल अपने सखा सिंधिया से कुछ सीख पाते। अफ़सोस उनकी दोस्ती आँख मारने तक ही रह गई, नाजुक मसलों पर सिंधिया की तरह कठोर निर्णयों में कुर्सी से ‘ऊपर उठकर सोचने’ के ऊँचे स्तर तक न उठ सकी। उन्हीं छिछोरे संस्कारों की प्रतिध्वनि आज गुलाम नबी आज़ाद और बाकियों की आँखों में दिखाई देती हैं जिसमें मोदी की हर कार्रवाई और नीति के प्रति सिर्फ़ संदेह भरा हुआ है। क्या यह बेहतर नहीं होगा कि अपने उत्तराधिकारी के चयन में ‘कस्तूरी मृग’ जैसे भटकते राहुल पार्टी के नए अध्यक्ष के लिए सिंधिया का ही वरण कर लें। पार्टी का तो भला होगा ही, देश और देश की सरकार को प्रमुख विपक्षी दल का ‘एक जिम्मेदार अध्यक्ष’ मिल जाएगा। ताकि जब आने वाले दिनों में मोदी धारा 370 के ख़ात्मे जैसे और धमाके करें तब गुलाम सरीखे गुलाम गुर्राए तो नहीं!

डॉ. विवेक चौरसिया

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *