हमारी थाती : जब कविवर बच्चन ने युवा अज़हर हाशमी की पीठ थपथपाई

प्रसंग हाशमी की के मुख से ही सुना और इसे सुनकर जितना आनंद आया, उससे अधिक गर्व की अनुभूति भी हुई कि हम जिन हाशमी जी का सान्निध्य पा रहे हैं, उनकी पीठ पर अपने समय की कई महत्वपूर्ण शख्सियतों ने हाथ रख और उनकी प्रतिभा को सराहा।

आशीष दशोत्तर

हमारी धरोहर बहुत समृद्ध है। इसके भीतर इतने महत्वपूर्ण संस्मरणों के ख़ज़ाने मौजूद हैं जो हमारे बीते हुए कल के सुनहरे पलों को तो अभिव्यक्त करते ही हैं , साथ ही मौजूदा वक़्त के गर्व और आने वाले वक़्त के विश्वास को भी अभिव्यक्त करते हैं । ऐसा ही एक प्रसंग वरिष्ठ गीतकार प्रो. अज़हर हाशमी के जीवन से जुड़ा है । यह प्रसंग हाशमी की के मुख से ही सुना और इसे सुनकर जितना आनंद आया उससे अधिक गर्व की अनुभूति भी हुई कि हम जिन हाशमी जी का सान्निध्य पा रहे हैं उनकी पीठ पर अपने समय की कई महत्वपूर्ण शख्सियतों ने हाथ रख और उनकी प्रतिभा को सराहा।

यह प्रसंग है वर्ष 64 – 65 का जब श्री अज़हर हाशमी उज्जैन में अध्यनरत थे और अपनी काव्य प्रतिभा के बल पर समूची यूनिवर्सिटी में ही नहीं बल्कि समूचे साहित्य समाज में अपनी  पहचान कायम कर चुके थे। इसी दौरान यूनिवर्सिटी में कविवर डॉ. हरिवंश राय ‘बच्चन‘ का आगमन हुआ।  हाशमी जी डॉ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ के प्रिय विद्यार्थी थे इसलिए बच्चन जी की अगवानी के लिए सुमन जी अपने साथ हाशमी जी और सहपाठी विनोद पाण्डे को ले गए।
बच्चनजी आए। सुमन जी ने बच्चनजी से हाशमी जी का परिचय करवाया। परिचय करवाते हुए कहा, ‘ यह मेरा प्रिय शिष्य अज़हर हाशमी है।

हाशमी जी ने प्रणाम किया, चरण छुए

हाशमी जी ने बच्चन जी को प्रणाम किया। उनके चरण छुए।
सुमन जी ने फिर कहा,’ यह कविता भी करता है। आज विद्यार्थियों के काव्य पाठ में कवि के रूप में शामिल रहेगा।’
इस परिचय के बाद जो हुआ वह महत्वपूर्ण था। सुमनजी से हाशमीजी की काव्य प्रतिभा के बारे में सुनने के बाद बच्चनजी युवा अज़हर हाशमी की तरफ़ ग़ौर से देखने लगे।
हाशमीजी ने तत्काल कहा , ‘ सर जब मैं हायर सेकेंडरी में था तब मैंने अपने दो प्रिय कवियों को तैयार किया था। एक थे डॉ. हरिवंश राय ‘बच्चन’ और दूसरे डॉ. धर्मवीर भारती।’
राजस्थान में उस समय हायर सेकेंडरी स्तर पर एक पुस्तक चला करती थी जिसमें अपने प्रिय कवि पर लिखना पड़ता था। उसी के अंतर्गत हाशमी जी ने बच्चनजी की कविता पर लिखा था।
यह सुनकर बच्चन की तत्काल बोल पड़े , ‘ अच्छा ! कौन सी कविता पर लिखा था ?’
बच्चन जी के सवाल पर सुमन जी चकित भी हुए और सशंकित भी। उन्हें लगा कहीं कुछ उल्टा-सीधा न हो जाए।
बच्चन जी बोलने लगे, ‘ कौन सी कविता पर तुमने लिखा था ? सुनाओगे ! ‘
सुमनजी अपने प्रिय विद्यार्थी की तरफ़ देख रहे थे। बच्चनजी की निगाहें भी उन्हीं पर केंद्रित थीं। हाशमीजी ने तत्काल बच्चनजी की शैली में ही कविता पढ़ना शुरू किया –

अंबर के आनन को देखो ,
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे ।

इन दो पंक्तियों के पढ़ते ही बच्चनजी का चेहरा खिल उठा। हाशमीजी उनके खिल चेहरे को देखकर और अधिक उत्साह से पढ़ने लगे।

अंबर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे ।
जो छूट गए फिर कहाँ मिले।
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है ,
जो बीत गई, सो बात गई ।

यह सुनते ही बच्चनजी ने युवा अज़हर हाशमी की पीठ थपथपाई और यशस्वी होने का आशीर्वाद दिया।
सुमनजी तत्काल कहने लगे,’ तुमको बच्चन का आशीर्वाद मिल गया है। तुम बहुत ऊंचे जाओगे। ‘
फिर जो सुमन जी ने कहा वह संस्मरण का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है। सुमन जी कहने लगे , ‘ बच्चन तो मेरा ‘सहपाठी’ ही नहीं ‘सहखाटी’ भी है।
उल्लेखनीय है कि अध्ययन के दौरान इलाहाबाद में रहते हुए बच्चनजी और सुमनजी एक ही कक्ष में रहा करते थे। इतना सुनते ही बच्चनजी के चेहरे पर भी मुस्कुराहट तैर गई।
एक युवा कवि की पीठ पर रखा बच्चनजी का हाथ उस युवा की काव्य प्रतिभा को इतना ऊंचा ले गया कि आज प्रो. अज़हर हाशमी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पढ़े, सुने और उल्लेखित किए जाने वाले रचनाकार हैं।

12/2, कोमल नगर, रतलाम -457001
मो. 9827084966

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