साहित्य सरोकार : नव सम्वत्सर हो मंगलमय !

फूलों के चेहरे हरषाएं तितली
झूमे, भौरे गाएं खुश खेत और
खलिहान रहें आनंदित सभी
किसान रहें सरिताएँ सदा रहे
जलमय नव सम्वत्सर हो
मंगलमय !
प्रोफेसर अज़हर हाशमी
छल-कपट-कलह-विद्वेष मिटे
महंगाई का अब ग्राफ घटे
हर घर में रोटी-दाल रहे
न कहीं कोई कंगाल रहे
सब हों सुखमय, सब हों शुभमय
नव सम्वत्सर हो मंगलमय !

हो सुलभ सभी को रोजगार
न बन्द कहीं हो कारोबार
शिशु नहीं कुपोषित हो कोई
न श्रमिक ही शोषित हो कोई
नारी-जीवन हो ज्योतिर्मय !
नव सम्वत्सर हो मंगलमय !
फूलों के चेहरे हरषाएं
तितली झूमे, भौरे गाएं
खुश खेत और खलिहान रहें
आनंदित सभी किसान रहें
सरिताएँ सदा रहे जलमय
नव सम्वत्सर हो मंगलमय !

प्रोफेसर अज़हर हाशमी
प्रोफेसर हाशमी के गीत संग्रह “कभी काजू घना, तो कभी मुट्ठी चना” से साभार।
