हे ईश्वर ! तू न देना डॉ. प्रियंका रेड्डी की आत्मा को शांति…
हे ईश्वर ! तू न देना डॉ. प्रियंका रेड्डी की आत्मा को शांति…
शीर्षक पढ़ कर चौंकिए नहीं, इसमें कतई गलती नहीं हुई है। यहां वही लिखा है जो मैं दिल से चाहता हूं। जी हां, मैं चाहता हूं कि डॉ. प्रियंका रेड्डी की आत्मा को शांति न मिले। उसे तब तक चैन न आए, जब तक कि उसका जिस्म नोचने वाले और जिंदा जलाने वाले नरपिशाचों की रूह न कांप जाए।
उसकी आत्मा तब तक बेचैन ही रहे, जब तक कि इस देश की सर्वोच्च संस्था संसद ऐसे दरिदों को चौराहे पर गोली मारने या फिर नपुंसक बनाकर जिंदगी भर के लिए अपने आप पर शर्मिंदा होने के लिए छोड़ने जैसा कानून न बना डाले।
डॉ. प्रियंका रेड्डी मैं तुम्हारी याद में न मोमबत्ती जलाऊंगा न ही तुम्हारी तस्वीर पर फूलों की माला चढ़ाऊंगा, क्योंकि मुझे ऐसा करने का कोई अधिकार ही नहीं है। मैं तो महात्मा गांधी के उन तीनों बंदरों का ही प्रतिरूप हूं जो न तो बुरा होता हुआ देखता है, न ही बुरा सुनता है और न ही बुरा हो जाने पर कुछ कहता है।
तब हिलते मेरे होंठ
मैंने बांध ली है अपनी आंखों पर अनदेखी की पट्टी, ठूंस ली है कानों में उंगलियां और सिल लिए हैं अपने होठ। मेरी आंखें सिर्फ तभी खुलती हैं जब मजहबों की पहचान करनी हो, कान भी तभी सुनते हैं जब राम और रहीम में फर्क करना हो और होंठ भी महात्मा गांधी और नाथूराम गोडसे को सही अथवा गलत ठहराने के लिए ही हिलते हैं।
कल फिर कोई और बनेगी निर्भया
डॉ. प्रियंका रेड्डी मैं तो सोशल मीडिया वीर हूं। मुझे जिसे वाट्सएप, फेसबुक, इंस्टारग्राम और ट्विटर रूपी रणभूमि पर पाकिस्तान पर हवाई टैंकों से जुबानी गोले बरसाना भर आता है। मैं भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर मंदिर बनाने की राह की बाधा दूर करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से तो उत्साहित हूं लेकिन स्त्री की उस मर्यादा की रक्षा करने में सक्षम नहीं हूं जिसे उसी सर्वोच्च न्यायाल ने स्त्री क पवित्र मंदिर बताया है। कल दिल्ली में एक निर्भया हुई थी, आज तुम बन गईं, कल कहीं फिर कोई निर्भया बनेगी। मैं तो बेशर्मी की चादर ओढ़े ही हूं, एक बार फिर से कह दूंगा रेप तो होते रहते हैं, इसमें नया क्या है। रेप उन्हीं लड़कियों के साथ होता है जो कपड़े कम पहनती हैं। मैं लाचार हूं, कमजोर हूं, हालत के आगे मजबूर हूं। मैं सिर्फ बातें कर सकता हूं, दूसरों पर हंस सकता हूं और वक्त आने पर अपनों के लिए रो सकता हूं। इसलिए ईश्वर से प्रार्थना है डॉ. प्रियंका रेड्डी की आत्मा को भटने दो, उसे अपना इंसाफ खुद ही करने दो।
काश ! इंसानी जानवरों का इलाज कर पाती वह
यहां उपयोग किया गया चित्र आपको विचलित कर सकता है, विचलित होना भी चाहिए। इस चित्र को देखकर कल्पना करिए कि यह आप की बहन या बेटी है। कुछ भी कहिए मत, सिर्फ महसूस कीजिए कि हम क्या थे, क्या हो गए हैं। काश ! पशु चिकित्सक डॉ. प्रियंका रेड्डी इंसान के रूप में उसके सामने आए जानवरों का इलाज कर पाती?
नीरज कुमार शुक्ला
(लेखक, पत्रकार है)