धर्म, संस्कृति और अध्यात्म की त्रिवेणी में हुई आनन्दानुभूति
🔳 सांस्कृतिक उल्लास एवं धार्मिक भावनाओं से मनाया गीता जयंती महोत्सव
🔳 भारत के राजदूत का किया सम्मान
🔳 नृत्य की अदभुत प्रस्तुतियों ने किया अभिभूत
हरमुद्दा
सूरीनाम, 9 दिसंबर। दक्षिण अमेरिका के सूरीनाम देश के पारामारिवो में अंतरराष्ट्रीय आचार्य सत्यव्रत शास्त्री के मुख्य आतिथ्य में श्री गीता जयंती महोत्सव सांस्कृतिक उल्लास एवं भक्ति भावना के साथ मनाया गया। आयोजन में कलाकारों ने नृत्य की अदभुत प्रस्तुतियों देकर उपस्थितों को अभिभूत कर दिया। आयोजन में भारत के राजदूत महेंद्र सिंह कन्याल का अभिनंदन भी किया गया। धर्म, संस्कृति और अध्यात्म की त्रिवेणी में आनन्दानुभूति हुई।
संस्था वंदे मातरम के सहयोग से श्री सनातन धर्म गीता परिवार के बैनर तले आयोजित कार्यक्रम में शाम को धर्मालुओं ने श्री कृष्ण का पूजन अर्चन किया। भजन मंडली ने मधुर भजनों की प्रस्तुति देकर उपस्थितों को भाव विभोर कर दिया।
हौसला अफजाई में हुई करतल ध्वनि
“भारत नृत्य सतरंगी” साधना मोहन द्वारा प्रस्तुत कर अपनी कला साधना का परिचय दिया। रितिक की अनुपम प्रस्तुति होने उपस्थितों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
करतल ध्वनि कर कलाकारों की हौसला अफजाई की गई।
जीवन की सार्थकता कर्त्तव्य पालन में है निहित : शास्त्री
उपस्थित धर्मालुओं को संबोधित करते हुए अंतरराष्ट्रीय आचार्य सत्यव्रत शास्त्री ने कहा कि मनुष्य जन्म की सार्थकता कर्तव्य के पालन करने में ही निहित है। जो व्यक्ति अपने कर्तव्य का निर्वाह भली-भांति करता है उसका कल्याण अवश्य होता है। कर्तव्य सभी प्रकार के होते हैं। पारिवारिक, सामाजिक, जनहित, देशहित के होते हैं, उन सब का पालन और निर्वाह करना मनुष्य की सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है। विडंबना यह है कि वर्तमान दौर में मनुष्य “मैं” तक ही सीमित रह गया है। “हम” की भावना खत्म होने लगी है। इसलिए “हम” की भावना सभी में होना चाहिए, तभी हम अपना और अपने समाज का उद्धार कर सकते हैं। अपनी शक्ति और ऊर्जा का उपयोग जनहित में करना ही मानव जीवन की श्रेष्ठता है।
कर्तव्य और निष्ठा की याद दिलाता श्रीमद् भगवत गीता ग्रन्थ
आचार्य शास्त्री ने कहा कि सांसारिक मोह माया और संबंधों के मकड़जाल में फंसते जा रहे मनुष्य के लिए श्रीमद् भगवत गीता ग्रन्थ एक अलौकिक दीपक की तरह है, जो आपको अपने कर्तव्य और निष्ठा की याद दिलाता है और आपके जीवन को सार्थकता प्रदान करता है। सभी मनुष्य को चाहिए कि वह अपने जीवन में ऐसे कार्य करते जाएं, जिनका आने वाली पीढ़ी अनुकरण करती रहे।
सुविधाओं का उपयोग करें अच्छे कार्यों के लिए
आचार्य शास्त्री ने कहा कि हिंसा, नफरत, खुराफाती होना, यह सब बीमारी के लक्षण और इस बीमारी को दूर करने के लिए हमें धर्म के मार्ग पर चलना पड़ेगा। किसी का नुकसान करने के लिए तांत्रिक विद्या या किसी अन्य विद्या से प्रयत्न किया जाता है लेकिन जो धर्म के मार्ग पर चलता है, वहां पर कोई भी तांत्रिक क्रिया कार्य नहीं करती। श्रीराम के पास वैदिक विद्या थी तो रावण के पास तांत्रिक विद्या। इसीलिए उसका विनाश हुआ। आज के युग में वैज्ञानिकों ने हमारी सुविधा के लिए कई ऐसी मशीनरी चीजों का आविष्कार कर दिया है, जिससे हम हमारा विकास कर सकते हैं। जैसे मोबाइल, टीवी, कम्प्यूटर, लैपटॉप बहुत सारी चीजें, लेकिन इसका उपयोग हम अगर गलत काम के लिए करेंगे तो हमारा कभी भी विकास नहीं होगा। इससे तात्पर्य है कि हमें जो भी सुविधा मिलती है, उसका हम इस्तेमाल हमेशा अच्छे कर्मों के लिए करें। मानव जीवन की समस्त समस्याओं का निदान श्रीमद्भागवत गीता में है। भगवान परिस्थितियाें काे बदलने की क्षमता नहीं देते, बल्कि विवेक व सामर्थ्य प्रदान करते हैं।
सम्मान के साथ हुआ समापन
कार्यक्रम में सूरीनाम में भारत के राजदूत महेंद्र सिंह कन्याल का अभिनंदन किया गया। प्रसादी वितरण के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। आयोजन में काफी संख्या में धर्मानुरागी जन उपस्थित थे