गौरवपूर्ण वेधशाला में आकर ज्ञान में वृद्धि करना चाहिए विद्यार्थियों को : कुलपति शर्मा

🔳 प्रत्यक्ष अनुभव हमारे ज्ञान को स्थाई बनाता : उपाध्याय

🔳 जीवाजी वेधशाला में रविवार को मनाया खगोलीय दिवस

🔳 जिले के चुनिंदा विद्यालयों के विद्यार्थियों ने दी खगोलीय ज्ञान परीक्षा

🔳 विजेता विद्यार्थियों को किया अतिथियों ने पुरस्कृत

🔳 सोलर फिल्टर युक्त चश्मे दिए गए विद्यार्थियों को

हरमुद्दा
उज्जैन, 22 दिसंबर। धुनिक यंत्रों से सुसज्जित वेधशाला होना उज्जैन के लिए गौरव की बात है। इसका पूर्ण उपयोग कर अपने ज्ञान में वृद्धि करना चाहिए। इसे दूसरों को भी बताना चाहिए।

यह विचार विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बालकृष्ण शर्मा ने व्यक्त किए। कुलपति श्री शर्मा रविवार को शासकीय जीवाजी वेधशाला में आयोजित खगोलीय दिवस कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे कार्यक्रम की अध्यक्षता संयुक्त संचालक लोक शिक्षण संभाग उज्जैन राजीव उपाध्याय ने की। अतिथियों ने मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम की शुरुआत की। श्री उपाध्याय ने कहा कि वेधशाला में प्रत्यक्ष अनुभव हमारे ज्ञान को स्थाई बनाता है। हमें ऐसे अवसरों का अधिकतम लाभ उठाना चाहिए। वेधशाला अधीक्षक डॉ. राजेंद्र प्रकाश गुप्त ने कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की।

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चयनित 21 विद्यालयों के विद्यार्थी व शिक्षक हुए शामिल

खगोलीय दिवस आयोजन में उज्जैन विकासखंड के चयनित 21 विद्यालयों में से 3-3 विद्यार्थियों और शिक्षकों के साथ आमंत्रित किया गया। इन विद्यार्थियों की खगोलीय ज्ञान परीक्षा लेकर उन्हें प्राचीन यंत्रों, कार्यशील मॉडल एवं पावर पॉइंट प्रस्तुतीकरण द्वारा खगोलीय जानकारी के साथ ही 26 दिसंबर को होने वाले सूर्य ग्रहण के बारे में विस्तार से बताया।

खगोलीय ज्ञान परीक्षा के पुरस्कार किए वितरित

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अतिथियों ने खगोलीय ज्ञान परीक्षा के विजेता विद्यार्थियों को पुरस्कार प्रदान किए। इसके साथ ही 26 दिसंबर को होने वाले सूर्य ग्रहण को देखने के लिए सोलर फिल्टर युक्त चश्मे दिए गए। खगोलीय ज्ञान प्रतियोगिता में प्रथम कुमारी नाज़नीन मंसूरी, द्वितीय कुमारी शिवांगी बुनकर शासकीय उमावि नरवर रही। तृतीय जया वर्मा शासकीय मॉडल उमावि उज्जैन रही।  विजेताओं को नगद पुरस्कार व प्रमाण पत्र दिए गए। खगोलीय ज्ञान परीक्षा का संचालन डॉ. गिरवर प्रसाद शर्मा और दीपक गुप्ता ने किया। कार्यक्रम में राजेश अखंड एवं राजेंद्र श्रीवास्तव ने सक्रिय सहयोग दिया। संचालन डॉ. गिरवर प्रसाद शर्मा ने किया। आभार भरत तिवारी ने माना।

खगोलीय घटना के साक्षी हुए विद्यार्थी और जिज्ञासुजन

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वेधशाला अधीक्षक डॉ. गुप्त ने बताया कि 22 दिसंबर से सूर्य की गति उत्तर की ओर प्रारंभ होती है जिसे उत्तरायण का प्रारंभ कहते हैं। सूर्य की गति उत्तर की ओर होने के कारण उत्तरी गोलार्ध में भी दिन धीरे-धीरे बड़े होने लगते हैं और रात छोटी होने लगती है। इस घटना को शंकु यंत्र के माध्यम से देखा गया। शंकु की छाया सबसे लंबी होकर मकर रेखा पर गमन करती हुई नजर आई। इस घटना को धूप होने पर भी देखा गया। रविवार को हुई खगोलीय घटना के विद्यार्थी और जिज्ञासुजन साक्षी हुए। वेधशाला में सुबह से शाम तक उत्सुक लोगों का जमावड़ा लगा रहा।

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