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स्वार्थी तत्वों द्वारा छिन्न भिन्न किया जा रहा समाज का ताना बाना : डाॅ. कृष्णलता सिंह

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🔳 सामाजिक सरोकार एवं जनजीवन पर अनेक संस्मरणात्मक लिखे आलेख 

हरमुद्दा

शाजापुर। डाॅ. कृष्णलता सिंह हिन्दी की जानी मानी कथा लेखिका है। कथा के साथ आपकी कलम कविताओं के लिए भी चलती हैं। शीघ्र ही इनका नया कहानी संकलन ‘लछमनिया’ रश्मि प्रकाशन से छपकर आ रहा है। 

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लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में जन्मी कृष्णलता जी की रचनाएं विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में विगत अनेक वर्षों से प्रकाशित होती रही है। इनका शोध प्रबंध, चैखम्बा ओरियंटालिया वाराणसी से छप चुका है।

खासी शोहरत मिली ‘मेरे हिस्से का आसमान’ को

आधार प्रकाशन से प्रकाशित इनका कहानी संकलन ‘मेरे हिस्से का आसमान’ हिन्दी साहित्य जगत में खासी शोहरत हासिल कर चुका है। आपने अनेक शहरों की न केवल यात्रा की है वरन् वहां के सामाजिक सरोकार एवं जनजीवन पर अनेक संस्मरणात्मक आलेख लिखे हैं। शोध पत्र, कहानियां एवं आलेखों के क्षेत्र में आपको काफी महारत हासिल है।

मॉरिशस व पैरिस में मिला सम्मान

आपको रचनात्मक योगदान के लिए आधार शिला फाउंडेशन द्वारा मॉरिशस में आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के दौरान हिन्दी गौरव एवं पैरिस में आयोजित सम्मेलन के दौरान महादेवी सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है।

वर्तमान समय में लेखन कार्य अत्यंत कठिन 

इन दिनों आप स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य में जुटी हुई है। अपनी रचनात्मकता के बारे में इनका कहना है कि वर्तमान समय में लेखन कार्य अत्यंत कठिन है। क्योंकि समाज का ताना बाना कतिपय स्वार्थी तत्वों द्वारा छिन्न भिन्न किया जा रहा है।

डॉ. कृष्णलता सिंह की कविताएं

🔳 सत्य

सत्य अच्छी तरह जान चुका है
आज का युग बोध वह नहीं है
सियासी खेल में वह लंगड़ा हो गया है
धर्म के नाम पर गूंगा ही बने रहना है
सबने उसे बहरा करार कर दिया है
चारों तरफ मुनादी भी हो चुकी है
आज से सच बोलना गुनाह कहा जाएगा
सत्य का आईना दिखाना
बगावत का आगाज समझा जाएगा
सत्य के लिए आग्रह करना
हवा के विपरीत जाना समझा जाएगा
निराश हताश खुद पर शर्मसार सत्य
चिल्ला चिल्ला कर पूछ रहा है
– क्यूं लटका रखा है मुझे बेवजह
सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों पर
उतार फैंकां मुझे सब जगह से
मुक्त कर दो मेरी लहुलुहान
आत्मा को
चाहो तो डिलिट कर दो
मुण्डकोपनिषद् का वह पृष्ठ
जिस पर लिखा है पूर्वजों ने
सत्यमेव जयते का उद्घोष
समाप्त कर दो सत्य का ढांग
ले आओ ! अपना युग बोध
जिसमें जीना चाहते हो तुम सब

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🔳 सरहद पर

सरहद पर
दिन ढल गया है
सूर्य बैरकों से,पेड़ों की फुनगियों से,
पहाड़ों से और आकाश से
विदा ले चुका है
रेंगता हुआ काला अंधेरा डरा रहा है-
कुटिल छिपा शत्रु घात में है
वे डर नहीं रहे हैं, ईश्वर साथ में है
तभी तो तिलस्मी सितारों से आकाश
जगमगा रहा है दूर दूर तक
वे महसूस कर रहे है,
हवा में सनसनाते शब्दों को-
एक दिन सब ठीक होगा,
खामोश होंगी बन्दूकें।
शान्ति के साथ विश्राम होगा
इसी विश्वास के साथ
बढ़ते रहते हैं थके कदम
अचानक………….
धांय धांय की गूँज के साथ
गिरते पड़ते शरीरों की छटपटाहट
जमीं पर गरम खून के फव्वारे
धीरे धीरे……….
सपनों की आँख मिचौली
कुछ स्पर्शों की गर्माहट
कुछ उलहनों-मनुहारों के एहसास
कुछ अधूरे काम,कुछ जिम्मेदारियाँ
एक साथ कैद हो गए पथराई दृष्टि में
जमने लगा नसों में दौड़ता लहू
टूटने लगी सांसों की डोर
जाना निश्चित हो गया
मुस्करा पड़े अशक्त होंठ
जाएंगे जरूर जाएंगे
पर गर्व के साथ तिरंगे के साथ
प्रशंसा और धन्यवाद के साथ
सब जाएंगे, सूर्य की रोशनी से
तारों की छाँव से या आकाश के नीचे से
सबका जाना निश्चित है मृत्यु ध्रुव सत्य है।
लेकिन उनका जाना विशेष है,
वे सरहद के पहरेदार है, सरहद से ही जा रहे हैं।

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