चरित्र के दोहरेपन को उजागर करने वाले नाटक ‘‘कुत्ते’’ का मंचन

🔲 हरमुद्दा

सागर, 1 मार्च। सीमित संसाधनों में नाटक की मंचीय प्रस्तुति को किस प्रकार सफलता के शिखर पर पहुंचाया जा सकता है, यह ‘कुत्ते’ नामक नाटक के मंचन को देख कर अनुभव किया जा सकता है। अन्वेषण थिएटर ग्रुप सागर द्वारा स्व. विजय तेंदुलकर लिखित नाटक ‘कुत्ते’ का शनिवार को लगातार दो शो में स्थानीय रवींद्र भवन में मंचित किया गया।

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नाट्य विधा के लिए प्रतिबद्ध अन्वेषण थिएटर ग्रुप का नाटकों के मंचन का अपना एक गरिमापूर्ण रिकाॅर्ड है। वहीं जगदीश शर्मा एक कुशल निर्देशक के रूप में पहले ही अपनी धाक जमा चुके हैं। ‘‘कुत्ते’’ नाटक में मुख्य रूप से दुष्कर्म जैसे अपराध के पीछे के मनोविज्ञान का खुलासा किया गया है। शहर से दूर पिछड़े क्षेत्र में नियुक्त एक सेल्समैन, उसका एक बेहद चतुर-दुनियादार सहायक घोडके, एक प्रौढ़वय स्त्री और उसके कुत्ते। इस नाटक की कथा इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती है। एक कमजोर मानसिक चरित्र का व्यक्ति किस प्रकार स्त्री की सहजता को उसकी स्वीकृति मान बैठता है तथा आत्मनियंत्रण खो देता है, इस नाटक को देख कर भली-भांति समझा जा सकता है। सड़क, बाजार, दफ्तर हर जगह आज स्त्री स्वयं को असुरक्षित पाती है। इस असुरक्षा के कारणों की पर्तें खोलता अन्य नाटकों की तरह विजय तेन्दुलकर के यह नाटक भी मानव-जीवन की विडम्बनाओं और विद्रूपताओं को बड़े कौशल से खोलता है और दर्शक को सोच के एक नए धरातल पर ले जाता है। रंगशिल्प और मंचीय भाषा के लिहाज से भी यह नाटक विशिष्ट है। अपनी नाट्य-विधियों और गतिमयता के कारण यह दर्शकों के लिए जितना रोचक है उतना ही मंचन की दृष्टि से चुनौती भरा है। ‘‘कुत्ते’’ देश के सुविख्यात नाटककार स्व.विजय तेंदुलकर द्वारा लिखा गया नाटक है। इस नाटक का विभिन्न शहरों में अनेक बार मंचन किया जा चुका है। सागर शहर में इस नाटक का प्रथम बार सार्वजनिक मंचन किया गया।

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कलाकारों की मेहनत नजर आई मंच पर

नाटक के निर्देशक जगदीश शर्मा के अनुसार मंचन के पूर्व सभी कलाकारों ने जी-तोड़ रिहर्सल किया। कलाकारों की मेहनत मंच पर स्पष्ट दिखाई थी। संवादों में स्वरों का उतार-चढ़ाव और भाव-भंगिमाएं कलाकारों की कला निपुणता को प्रमाणित करती रहीं। संतोष दांगी सरस, करिश्मा गुप्ता, दीपगंगा साहू, मनोज सोनी, प्रवीण कैम्या और अतुल श्रीवास्तव ने अपने बेजोड़ अभिनय से नाटक की कथावस्तु में जान डाल दी। मंच पर कलाकारों ने जितना कुशल अभिनय किया उतना ही सुंदर प्रभाव देखने को मिला मंच सज्जा, लाईट एण्ड साउण्ड का। जिसके लिए सतीश साहू, राजीव जाट, कपिल नाहर, आकाश विश्व कर्मा, रिषभ सैनी, असरार पिंकी, समता झुडेले, राहुल सेन आदि प्रशंसा के पात्र हैं क्योंकि किसी भी नाटक के थियेटर-मंचन के लिए मंच सज्जा, लाईट एण्ड साउण्ड भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है जितना कि नाटक का कथानक, संवाद और अभिनय।

समाज को संदेश देने में पूर्ण सफल रहे जगदीश शर्मा

एक अच्छी बात यह भी थीकि साउंड इफैक्ट में अनावश्यक शोरगुल वाली ध्वनियों के बदले अत्यावश्यक एवं माईल्ड ध्वनियों का प्रयोग किया गया। पात्रों के वस्त्रविन्यास और मेकअप कथानक के समय और काल को बखूबी रेखांकित किया। इन सारे बिन्दुओं पर खरा उतरते हुए ‘‘कुत्ते’’ नाटक ने जहां एक ओर दर्शकों का मन मोह लिया, वहीं उन्हें यह बताया कि समाज में बढ़ते बलात्कार जैसे घृणित अपराधों के पीछे कैसी विकृत मानसिकता काम करती है। कहना होगा कि निर्देशक जगदीश शर्मा नाटक के माध्यम से समाज को संदेश देने में पूर्ण सफल रहे। नाटक को जिस प्रकार निर्भयाकांड जैसी घटनाओं से को-रिलेट किया गया, उसने इस प्रस्तुति को और अधिक सामयिक बना दिया। इस तरह के नाटकों का मंचन जहां शहर में नाट्यकला के प्रति अभिरुचि बढ़ाने के लिए जरूरी है वहीं अपराधों के विरुद्ध जनजागरूकता लाने के लिए भी आवश्यक है। मानव के दोहरे-तिरहे चरित्र को बारीकी से देखकर और समझ कर उससे दूरी बनाए रखते हुए स्वयं को सुरक्षित रखने का संदेश भी इस नाटक के माध्यम से बखूबी दिया गया।

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