मनुष्यता की चिंता ही रचनाकार को जीवंत बनाती है : प्रो. चौहान
🔲 पाठक मंच के पुस्तक विमर्श कार्यक्रम में हुई सार्थक चर्चा
हरमुद्दा
रतलाम 1 मार्च । अंतर्विरोध ही जीवन और रचनाशीलता को यथार्थ का आधार प्रदान करते हैं। जो भी व्यवस्थाएं आएंगी ,आकार लेंगी विरोध के स्वर उनमें अंतर्निहित होंगे। प्रतिगामी शक्तियों का प्रतिकार होता रहेगा। परंपराओं के रूप में जो मनुष्य की सार्थक अभिव्यक्ति होगी वही जीवित रहेगी। मनुष्य और मनुष्यता की चिंता ही किसी रचनाकार को जीवंत बनाती है। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मनुष्यता का पक्ष लेना एक रचनाकार का दायित्व होता है। मनुष्य ही कवि विष्णु खरे की कविता का केंद्र है और यह उतना ही ठोस है जितनी पृथ्वी।
यह विचार कवि एवं समीक्षक प्रो. रतन चौहान ने मध्य प्रदेश संस्कृति परिषद साहित्य अकादमी द्वारा रतलाम में नवसृजित पाठक मंच के पुस्तक विमर्श कार्यक्रम में व्यक्त किए।
कवि विष्णु खरे के कविता संग्रह “सेतु समग्र ” पर विमर्श
कवि विष्णु खरे के कविता संग्रह “सेतु समग्र ” पर डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन स्मृति संस्थान परिसर में आयोजित पुस्तक विमर्श में अपनी समीक्षात्मक टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि कवि के पास निश्चित ही कल्पना का एक कल्पनातीत विस्तार है। किंतु इसका एकमात्र उद्देश्य मनुष्य की आकांक्षाओं, सफलताओं, सीमाओं, सौंदर्य और विफलताओं का चित्रांकन है। कवि मनुष्य को स्वस्थ और सुंदर देखना चाहता है। वह मृत्यु नहीं जीवन के पक्ष में खड़ा रहता है। काव्य संग्रह पर अपनी विस्तृत टिप्पणी के दौरान प्रो. चौहान ने कहा कि अंतर्वस्तु और काव्य शिल्प की दृष्टि से समकालीन कविता के परिदृश्य में विष्णु खरे ने अनेक काव्य सृजकों, शिक्षकों एवं पाठकों की चेतना को झकझोरा है। उनका काव्य फलक उतना ही बड़ा है जितना उनका विविध धर्मा व्यक्तित्व। एक सजग पाठक ,एक सूक्ष्म दृष्टि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक घटनाओं, उथल-पुथल ,मानवीय मूल्यों के क्षरण, क्रूरता और बर्बरताओं की आहटों को चित्रित करने वाले एक निर्भीक पत्रकार ,एक रचनाकार और एक मनुष्य के रूप में विष्णु खरे अपनी रचनाओं के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। विष्णु खरे की कविताएं काफी बिंबो काव्य रूपकों की मुद्राओं और भंगिमाओं की सृष्टि से भरपूर है।
प्रो. चौहान ने कहा कि कवि ना केवल भाषिक व्यक्तियों और भाषिक परंपराओं संपदाओं को संकेतिक करता है अपितु विरोधियों की एकता भी व्यक्त करता है।
अपने प्रयासों को और निरंतर बढ़ाने की आवश्यकता : जैन
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि प्रणयेश जैन ने कहा कि पाठक मंच द्वारा सत्तर के दशक में रतलाम में निर्मित समीक्षा के वातावरण को पुनर्जीवित करने का प्रयास प्रारंभ किया गया है जो सराहनीय है । उन्होंने कहा कि रचना समीक्षा से पाठकों और श्रोताओं का तादात्म्य स्थापित होना आवश्यक है। इसके लिए हमें अपने प्रयासों को और निरंतर बढ़ाने की आवश्यकता है।
खास यह रहा
पुस्तक विमर्श के दौरान खासियत यह रही कि विष्णु खरे जो स्वयं रतलाम के महाविद्यालय में पदस्थ रहे, वहां उनसे शिक्षा ग्रहण करने वाले प्रोफेसर रतन चौहान ने उनके काव्य संग्रह पर अपनी समीक्षात्मक टिप्पणी प्रस्तुत की। प्रोफेसर चौहान ने विष्णु खरे की कविताओं का अनुवाद भी किया है और उनकी प्रसिद्ध कविता “गुंग महल” का नाट्य रूपांतरण भी किया है, जिसकी प्रस्तुति के दौरान विष्णु खरे स्वयं रतलाम में उपस्थित रहे थे और जिसे उन्होंने काफी सराहा था।
परिचर्चा में सहभागिता रही
परिचर्चा में हरिशंकर भटनागर, अब्दुल सलाम खोकर, लक्ष्मण पाठक, अखिल स्नेही, सिद्दीक रतलामी, डॉ. शोभना तिवारी , कीर्ति शर्मा, रश्मि उपाध्याय सहित उपस्थित साहित्यकारों ने सहभागिता की। स्वागत डॉ.दिनेश तिवारी ने किया। संचालन आशीष दशोत्तर ने किया। आभार डॉ. शोभना तिवारी ने माना।