अनूठी परंपरा : लड्डू मारकर खेलते हैं होली वहां
हरमुद्दा
गुरुवार, 5 मार्च। सामान्यतः होली रंगों से खेली जाती है। रंग अबीर गुलाल उड़ाए जाते हैं। मगर बरसाने में लट्ठ, लड्डू और फूलों से भी होली खेली जाती है। लड्डू मार-मारकर होली खेलने की यह परंपरा काफी अनोखी होती है।
होली तक यानि पूरे आठ दिनों तक ब्रज, मथुरा और वृंदावन में होली खेली जाती है। ब्रज में बसंत पंचमी पर होली का डंडा गाड़ने के साथ ही ब्रज के सभी मंदिरों और गांव में होली महोत्सव की शुरुआत हो जाती है। यह 40 दिनों तक चलता है।खासतौर से यहां होली महोत्सव फाल्गुन शुक्लपक्ष अष्टमी से यानि लड्डू फेक होली से शुरू होती है। होली के त्योहार को गोकुल, वृंदावन और मथुरा में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यहां रंग वाली होली से पहले लड्डू, फूल और छड़ी वाली होली भी मनाई जाती है। ब्रज की होली में शामिल होने के लिए देश और दुनियाभर से श्रद्धालु आते हैं।
लड्डू वाली होली के पीछे है पौराणिक मान्यता
लड्डू होली की परंपरा के पीछे एक पौराणिक कथा है कि द्वापर युग में बरसाने की होली खेलने का निमंत्रण लेकर सखियों को नंदगांव भेजा गया था। राधारानी के पिता बृषभानजी के न्यौते को कान्हा के पिता नंद बाबा ने स्वीकार कर लिया और स्वीकृति का पत्र एक पुरोहित जिसे पंडा कहते हैं उनके हाथों बरसाना भेजा। बरसाने में बृषभानजी ने नंदगांव से आए पंडे का स्वागत किया और थाल में लड्डू खाने को दिया। इस बीच बरसाने की गोपियों ने पंडे को गुलाल लगा दिया। फिर क्या था पंडे ने भी गोपियों को लड्डूओं से मारना शुरू कर दिया।
कब क्या होना है
🔲 6 मार्च को वृंदावन में फूलों की होली खेली जाएगी।
🔲 इस होली में बांके बिहारी मंदिर के कपाट खुलते ही पुजारी भक्तों पर फूलों की वर्षा करते हैं।
🔲 7 मार्च को गोकुल की छड़ीमार होली खेली जाएगी
🔲 गोकुल बालकृष्ण की नगरी है। यहां उनके बालस्वरूप को ज्यादा महत्व दिया जाता है।
🔲 8 मार्च यानि चतुर्दशी से 3 दिन तक रंग वाली होली खेली जाती है