सीधी-सी बात का नया अर्थ खोजती डाॅ. चंचला दवे की कविताएं

🔲 नरेंद्र गौड़

शाजापुर, 6 मार्च। मध्यप्रदेश का सागर जिला साहित्य एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। डाॅ.हरिसिंह गौर, महाकवि पद्माकर से लेकर कांतिकुमार जैन, डाॅ.भगीरथ मिश्र, शिवकुमार श्रीवास्तव आदि अनेक साहित्यकारों ने अपनी लेखनी द्वारा सागर को विशिष्ट पहचान दी है। हालांकि डाॅ.चंचला दवे का जन्म सागर में नहीं हुआ है लेकिन यहां की माटी की तासीर कुछ ऐसी रही कि इन पर यहां की काव्यमयी महक ने इनका दूर तक पीछा नहीं छोड़ा।

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आज डाॅ.दवे खासी प्रतिष्ठित कवियत्री है। इसके अलावा आपका अद्भुत मंच संचालन सुनते और देखते ही बनता है। यही कारण है कि सागर जिले में आयोजित होने वाले विभिन्न साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में आपको काव्यपाठ एवं संचालन के लिए आमंत्रित किया जाता है।

गुलमोहर की छांह और लगातार सृजन यात्रा

हाल ही में इनका पहला कविता संकलन ‘गुल मोहर’ प्रकाशित हुआ है। इसमें आपकी अनेक कविताएं संकलित हैं। कविता में स्वप्न रोजमर्रा की जीवन यत्राएं, पारिवारिक सुख-दुख एवं जीवन की अनेक विसंगतियों के चित्र हैं। आपका कहना है कि ससुर स्व. गंगाशरण दवे की अनुमति से आपने विवाह के पश्चात भी अपनी काव्य यात्रा जारी रखी। आज भी चंचला दवे इस मायने में अपने ससुर की आभारी और कृतज्ञ हैं। इनके पति सुशील दवे भी साहित्यिक रूचि के व्यक्ति हैं। चंचला जी की कविताओं के पहले श्रोता और प्रशंसक वही रहे हैं। चंद्रपुर महाराष्ट्र में जन्मी चंचलाजी ने एमए डाॅ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर से किया और पीएचडी बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय भोपाल। आपका शोध ग्रंथ ‘भवानी प्रसाद मिश्र की कविताओं का अनुशीलन’ खासा चर्चित रहा है।

अनेक पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित

आपकी मातृभाषा गुजराती होने के बावजूद हिन्दी, मराठी, अंग्रेजी और संस्कृत में भी आप खासा दखल रखती हैं। देश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित एवं आकाशवाणी व दूरदर्शन के विभिन्न केंद्रों से प्रसारित होती रही हैं। आपको अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। इनमें हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा महादेवी वर्मा की जन्मशती पर सारस्वत सम्मान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा ही ‘प्रज्ञा भारती की मानद उपाधि महिला सम्मान 2013, जेएमडी पब्लिकेशन नई दिल्ली द्वारा हिन्दी सेवी सम्मान वर्ष 2014, श्यामलम संस्था सागर द्वारा स्व.डाॅ.सरोज तिवारी स्मृति ‘नारी प्रतिभा सम्मान’ 2017 प्राप्त हो चुके हैं।

यहां प्रस्तुत है चुनिंदा कविताएं

मां और करूणा

यह करूणा का घर है
करूणा की गोद में
भीख मांगती
संवेदना
बार-बार हाथ फैलाती
दरवाजों और दीवारों से
टकराती है
मां शिशु की तरह असहाय
अचेतन
अपना कद बढ़ा रही है लगातार।

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घर की देहरी पर

बिना बाप की
बेटी के लिए
चैकसी करती
राह तकती
दरवाजे पर
बाप बनी खड़ी
रहती है मां

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वृक्ष का हिलना

वृक्ष का पहली बार हिला
और बिखरा देना
सारी की सारी
पत्तियां मेरे आंगन में
हरी दूब गीली धरती
और घास के
फूलों पर
औंस बूंदों का दोलना
और सारा का सारा उधेलना मेरे
आंगन में
मुट्ठी भर
आसमान के लिए
हजारों मनौतियां
बारिशी हाथों
हवा बन बरसना
मेरे आंगन में
यह उसकी गलतियों में
नहीं था शामिल
उसकी आदतों में।

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इंद्रधनूष

उसके पैरों की पायल
और उसके बिछुए
तनिक से बजे
और बज उठा
पूरा तानपुरा
छिड़ गए तारसप्तम
और एक बार फिर खिल गया
इंद्रधनुष अपने रंगों के साथ।

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रिश्ते

हमारे पूर्वजों ने
कितनी मुसीबतों से
बनाए होंगे घर
बचाए होंगे रिश्ते
सहन शीलता त्याग और प्रेम से
बचाई होगी अस्मिता
कितनी तेज रफ्तार से
घर बदलते जा रहे
फ्लेट और विशालकाय भवनों में
रिश्ते छूटते जा रहे हैं तेजी से
एक स्याह रंग
हमें समेट रहा है
अपने अंदर लगातार।

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