वेब पोर्टल हरमुद्दा डॉट कॉम में समाचार भेजने के लिए हमें harmudda@gmail.com पर ईमेल करे प्राचीन श्री बर्बरीक खाटू श्याम का देश का दूसरा मंदिर रतलाम के पास -

🔲 1200 साल से है प्राचीन मंदिर

🔲 प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन की उपेक्षा का शिकार

🔲 मालवा में बर्बरीक श्याम पतरे के नीचे हैं विराजित सदियों से

🔲 ठहराव प्रस्ताव पर भी नहीं हुआ है अब तक अमल।

हेमंत भट्ट
रतलाम, 14 मार्च। प्राचीन श्री बर्बरीक श्याम का देश का दूसरा मंदिर रतलाम के समीपस्थ ग्राम बांगरोद में स्थित है। राजस्थान के बाद मध्य प्रदेश का पहला मंदिर है। खाटू श्याम की तरह विश्व विख्यात नहीं हो सका, मगर धीरे-धीरे भक्तों के आने से प्रसिद्धि बढ़ रही है। मनोकामना लेकर देशभर से भक्त दर्शन के लिए आते हैं।

गांव के उम्र दराज लोगों द्वारा प्राचीन श्री बर्बरीक श्याम मंदिर करीब 1200 साल पुराना बताया जा रहा है। प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन की उपेक्षा का शिकार होने के कारण सदियों से पतरे की नीचे विराजित बर्बरीक श्याम मंदिर का विस्तार नहीं हो पाया है।

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विजय स्तंभ

हर एकादशी और रविवार को लगता है भक्तों का मेला

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पुजारी गोपाल दास बैरागी ने बताया कि जहां बाबा विराजित है, वहां पर विजय स्तंभ बना हुआ है जो कि खाटू श्याम में भी नहीं है। वैसे हर दिन 500-700 दर्शनार्थी आते हैं। हर एकादशी व रविवार को देश व प्रदेश के हजारों लोग यहां पहुंचते हैं, वहीं कई लोग दंडवत करते हुए खाटू नरेश के दरबार में हाजिरी देते हैं। बाबा के दरबार में भक्तों का मेला लगता है। बाबा की ज्योत जलती है, जिसमें 10 किलो घी लगता है। भक्तों द्वारा हवन भी किया जाता है। समिति द्वारा खिचड़ी का भंडारा किया जाता है। जिसमें तकरीबन 4 से 5 क्विंटल फलाहारी खिचड़ी का वितरण होता है। समिति के 25 से 30 लोग अपनी सेवाएं देते हैं।

बाबा करते हैं मन्नत पूरी

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मन्नत का लच्छा बांधने वाली महिला एवं बालिका ने नाम नहीं बताते हुए कहा कि हमारी जो भी मन्नत है, वह बाबा को बता दी है। अब बाबा ही इसे पूरा करेंगे। हमने सुना है कि बाबा सबकी मन्नत पूरी करते हैं। हारे के सहारे बाबा श्याम हमारे है। इसलिए हम आए हैं।

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ऐसे भक्त नहीं आए जो बाबा का पक्का मंदिर बनवा दे

ग्रामीणों का कहना है कि बाबा के दरबार में यूं तो हजारों भक्त आते हैं। मन्नत के लच्छे भी बांधते हैं और उनकी मनोकामना पूरी होती है तो वे आते हैं, प्रसाद चढ़ाते हैं। धन्यवाद देते हैं। लेकिन ऐसे भक्त अब तक नहीं आए हैं जो बाबा के लिए पक्की छत बनवा दे। मंदिर क्षेत्र का विकास करवा दें।

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प्रभारी मंत्री से भी किया है निवेदन

पुजारी श्री बैरागी ने हरमुद्दा को बताया कि काफी समय से तो स्वास्थ्य विभाग ने दीवार खड़ी कर रखी थी। स्वास्थ्य विभाग का उपचार केंद्र अन्यत्र निर्माण होने के बाद मंदिर समिति में ठहराव प्रस्ताव बनाकर जिला प्रशासन को दिया है। ताकि पुराने स्वास्थ्य केंद्र का उपयोग भक्तों के निवास के लिए हो सके। समिति ने जिले के प्रभारी मंत्री सचिन यादव मंदिर में आने पर इस ओर ध्यान देने का निवेदन किया है। भक्तों के सहयोग से ही एकादशी एवं रविवार के उत्सव आयोजित किए जा रहे हैं।

कैसे पहुँचें बांगरोद

सड़क मार्ग : इंदौर-नीमच मुख्यमार्ग पर रतलाम से 5 किलोमीटर दूर सेजावता फंटे से करीब 8 किलोमीटर अंदर बांगरोद है।

रेलमार्ग : दिल्ली मुंबई रेल मार्ग का महत्वपूर्ण निकटतम रेलवे स्टेशन रतलाम जंक्शन (13 किलोमीटर) है।

वायुमार्ग : रतलाम से निकटतम हवाई अड्‍डा इंदौर है, जो कि यहाँ से करीब 138 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। भविष्य में शीघ्र ही रतलाम में भी सुविधा शुरू हो सकती है।

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बर्बरीक की पूजा श्याम के रूप

पुजारी श्री बैरागी ने बताया कि किंवदंती के अनुसार खाटू में भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक की पूजा श्याम के रूप में की जाती है। ऐसी मान्यता है कि महाभारत युद्ध के समय भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया था कि कलयुग में उसकी पूजा श्याम (कृष्ण स्वरूप) के नाम से होगी। खाटू में श्याम के मस्तक स्वरूप की पूजा होती है।

खाटू श्याम दरअसल वे भीम के पोते वीर बर्बरीक

खाटू में श्याम के रूप में जिनकी पूजा की जाती है दरअसल वे भीम के पोते वीर बर्बरीक हैं। श्रीकृष्ण के वरदान स्वरूप ही उनकी पूजा श्याम रूप में की जाती है।

तीनों लोकों को जीतने की सामर्थ्य रखते थे बर्बरीक

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खाटू श्याम की कई बार यात्रा कर चुके भक्त शांतु गवली को हरमुद्दा से पता चला तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। श्री गवली ने बताया भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक की माता का नाम कामकटंककटा था, जिन्हें मोरवी के नाम से जाना जाता है। अत: बर्बरीक को मोरवीनंदन भी कहा जाता है। उन्होंने युद्ध कला अपनी मां सीखी। कठोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और तीन अमोघ बाण प्राप्त किए। इसी कारण उन्हें तीन बाणधारी के नाम से भी जाना जाता है। अग्नि देव ने प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किया। बर्बरीक तीनों लोकों को जीतने की सामर्थ्य रखते थे।

वरना कौरव जीत जाते

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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार धर्मनिष्ठ गोविंद रौतेला ने बताया कि कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत युद्ध तैयारियां पूरे जोरों पर थीं। चारों ओर इस युद्ध की चर्चाएं थीं। यह समाचार जब बर्बरीक को मिला तो उनकी भी युद्ध में शामिल होने की इच्छा हुई। वे अपनी मां से युद्ध में शामिल होने की अनुमति लेने पहुंचे। उन्होंने मां से आशीर्वाद लिया और उन्हें वचन दिया कि वे हारे हुए पक्ष का ही साथ देंगे।
वे अपने घोड़े पर सवार होकर तीन बाण और धनुष लेकर युद्धक्षेत्र कुरुक्षेत्र की ओर प्रस्थान कर गए। मार्ग में उन्हें एक ब्राह्मण ने रोका और परिचय पूछा। यह ब्राह्मण और कोई नहीं लीलाधर कृष्ण स्वयं थे। योगेश्वर ने बर्बरीक पर व्यंग्य किया और पूछा क्या वह सिर्फ तीन बाण लेकर युद्ध में सम्मिलित होने आया? इस पर वीर बर्बरीक ने कहा कि शत्रु सेना को धराशायी करने के लिए मेरे तीन बाण ही काफी हैं। उन्होंने कहा कि यदि मैंने तीनों बाणों का प्रयोग कर लिया तो त्रिलोक में हा-हाकार मच जाएगा।
इस पर कृष्ण ने अपनी जगतमोहिनी मुस्कान के साथ बर्बरीक को चुनौती दी और पीपल के एक वृक्ष को संकेत करते हुए कहा कि इसके सभी पत्तों को छेदकर बतलाओ तो जानें। बर्बरीक चुनौती को स्वीकार करते हुए अपने तरकस से एक तीर निकाला और पत्तों की ओर चलाया। क्षणभर में पत्तों को बेध कर बाण कृष्ण के आसपास मंडराने लगा। दरअसल, उन्होंने उस वृक्ष का एक पत्ता अपने पांव के नीचे छिपा लिया था। इस पर बर्बरीक बोला- अपना पांव हटा लीजिए अन्यथा यह तीर आपको भी चोट पहुंचा सकता है। पूरी स्थिति को समझकर कृष्ण ने अपनी वाणी का तीर चलाया और बर्बरीक से पूछा- आखिर तुम किस पक्ष की ओर से युद्ध लड़ोगे। उसने अपनी मां को दिए वचन की बात बताई और कहा जो भी पक्ष इस युद्ध में कमजोर साबित होगा मैं उसकी तरफ से ही युद्ध करूंगा।

जीती हुई बाजी उनके हाथ से निकल सकती

कृष्ण जानते थे यदि बर्बरीक ने कौरवों का साथ दिया तो जीती हुई बाजी उनके हाथ से निकल सकती है। ब्राह्मण वेशधारी कृष्ण ने बर्बरीक से वचन लिया और दान में उसका सिर मांग लिया। बर्बरीक क्षण भर के हतप्रभ रह गए, लेकिन वे वचन दे चुके थे। उससे मुकरना भी नहीं चाहते थे। बर्बरीक ने सोचा कि ये कोई साधारण ब्राह्मण नहीं हैं। अत: ब्राह्मण से अपने वास्तविक स्वरूप में आने की प्रार्थना की। कृष्ण न सिर्फ वास्तविक रूप में प्रकट हुए बल्कि बर्बरीक की इच्छा अनुसार उसे अपने विराट रूप के भी दर्शन कराए।

पहाड़ी से अंत तक देखा बर्बरीक ने युद्ध

बर्बरीक ने उनसे प्रार्थना की कि वह अंत तक युद्ध देखना चाहता है, कृष्ण ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। उनका सिर युद्धभुमि के समीप ही एक पहाड़ी पर स्थापित किया गया, जहां से बर्बरीक सम्पूर्ण युद्ध का जायजा ले सकते थे।

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