थोड़े दिनों की बात है, सब ठीक हो जाएगा

 

🔲 डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला
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कोरोना का भय बैठ गया है हम सबके भीतर। क्या अमीर और क्या गरीब, कोई भी इस भय से बचा हुआ नहीं है। बीसवीं सदी के लोगों ने हैजा, प्लेग, चेचक, अकाल, भुखमरी, दुर्भिक्ष और महामारी के भयावह दिन आँखों से देखे थे, सहे थे, लेकिन इक्कीसवीं सदी के लोगों के लिये यह पहली बार है, जब वे इस अत्यंत भीषण और त्रासद कोरोना का सामना करने के लिये विवश कर दिये गये हैं। यह कहा जा रहा है कि इस वायरस से उत्पन्न रोग का अभी कोई उपचार नहीं है, और दूसरी तरफ यह भी कहा जा रहा है कि आदमी से आदमी की पर्याप्त दूरी ही इसका रामबाण इलाज है।

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आदमी से आदमी की दूरी का मतलब सामाजिक सम्बंधों पर बड़ा भारी वज्रपात। हम भारतीय तो मिलने-जुलने के बहाने ढूँढते फिरते हैं। सुख में भी और अपार दुःख में भी हमें एक-दूसरे से मिलना-जुलना पसंद है। हमारे तीज-त्यौहारों का लम्बा इतिहास दिल खोल कर मिलने-जुलने का इतिहास है, और इसीने हमें मेले दिये, समुदाय के साथ मनाये जाने वाले पर्व दिये, कथा-प्रवचन-सत्संग में शामिल होने के न्यौते दिये। भंडारे, पंगतें और इस तरह के अनगिनत मौके इसलिये बनाये गये कि हम सब एक जाजम पर बैठ कर आपसी रिश्तों को, भाईचारे को, सद्भाव को सींचते रह सकें।

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हम अच्छी तरह जानते और समझते हैं कि सब कुछ सहन किया जा सकता है, लेकिन समाज से अलग-थलग पड़ कर रहा नहीं जा सकता। घर में कैद होकर जीने का यह मतलब लगाया जाता है कि किसी से कोई मतलब नहीं, कोई सरोकार नहीं। बस, साँस चलती रहे और दिन कटते रहें। जो समाज को सबसे ऊपर रखते हैं , उनके लिये घर में कैद होना भयावह है। आदमी को आदमी न दिखाई दे, तो भीतर ही भीतर कुछ मरने लगता है।

इस भीषण दौर में यह कितना अच्छा है कि हमें भले ही अपने घरों में कैद रहने के निर्देश हैं , लेकिन हम सबके हाथों में मोबाइल है। मोबाइल के चाहे जितने दोष गिनाये जाते रहे हों, लेकिन अभी तो हमारे सामाजिक रिश्तों की जान बचाये रखने के लिये एकमात्र मोबाइल का ही सहारा है। अभी यही एक हथियार है , जो बिना आमना-सामना हुए भी आदमी को आदमी से जोड़ कर रख सकता है। वृद्ध माता-पिता अकेले हैं अपने घरों में और उनके बेटे-बेटियाँ परदेश में हैं और वे भी अपने-अपने घर में कैद हैं, लेकिन दोनों तरफ एक-एक मोबाइल है , जो तसल्ली दिलाता है, आशा जगाता है, विश्वास दिलाता है कि बस थोड़े दिनों की बात है, सब ठीक हो जाएगा।

अपने घर पर एकांत में रहने का यह मतलब कतई नहीं है कि अपने प्रियजनों से , बंधु-बांधवों से, रिश्तेदारों और मित्रों से, सहकर्मियों से दूरी बना ली जाए। इन दिनों में हमें एक-दूसरे की कुछ ज्यादा ही जरूरत है। शारीरिक सहायताएँ जो काम नहीं करतीं, वह काम मानसिक सहायताएँ करती हैं। हाथ मिलाते रहने से जो बात नहीं बनती, वह एक ही बार में मन के मिल जाने से बन जाती है। अपने प्रियजनों को मन से याद कीजिए। मोबाइल उठाइए, घंटी बजाइए। सुख-दुःख की चर्चा कीजिए, हाल-चाल लीजिए। सुरक्षित रहने के उपायों पर चर्चा कीजिए , और आश्वस्त कीजिए कि बस थोड़े दिनों की बात है, सब ठीक हो जाएगा।

इस मौके का लाभ उठाइए , और अपने मोबाइल को हथियार की तरह इस्तेमाल कीजिए, लेकिन अफवाह फैलाने के लिये नहीं, डरे हुओं को और डराने के लिये नहीं, अपितु उन्हें डर के जंगल से बाहर निकालने के लिये। अपने परिचितों को, जिनसे आपने बहुत दिनों से बात नहीं की है, आपका एक फोन उन्हें जीवन की मस्ती से लबालब भर देगा, उन्हें आश्वस्त कर देगा कि वे अपने घर पर अकेले नहीं है। मोबाइल पर बात करते हुए आप उन्हें बताइए कि आप क्या-क्या सावधानी बरत रहे हैं , कैसे आप सुरक्षित हैं , और सुदूर भविष्य की सुंदर योजनाओं पर भी उनसे चर्चा कीजिए। इस तरह आप स्वयं भी हँसी-खुशी के संसार में रहेंगे , और अपने परिचितों के लिये भी खुशियों का खजाना खोल देंगे। फोन रखते हुए यह दोहराना कभी न भूलें कि बस थोड़े से दिनों की बात है, सब ठीक हो जाएगा।

भगवान् को धन्यवाद दीजिए कि आपके पास अपने रिश्तों को सींचते रहने के लिये एक सशक्त हथियार के रूप में मोबाइल तो है। जहाँ बहुत घरेलू रिश्ते हों , वहाँ वीडियो काॅल भी जरूर कीजिए। एक-दूसरे को देख कर जो तसल्ली होती है, वह रिश्तों के लिये संजीवनी की तरह है। बातचीत कर लेने, एक-दूसरे के हाव-भाव देख लेने से बहुत राहत मिलती है। भले ही लम्बी-लम्बी बात न हो, लेकिन दो घड़ी का संपर्क भी हमें आपस में जोड़ देता है, हमारे दुःख कम कर देता है , और भीतर ही भीतर मजबूती देता है। फिर जब ये दुर्दिन नहीं रहेंगे और दो यार आपस में गले मिलेंगे, तब रिश्तों में वही गर्माहट होगी, जो पहले थी, शायद उससे कहीं ज्यादा।

भरोसा रखिए। ये दुःख से भरे हुए भयानक दिन हमेशा के लिये बने हुए नहीं रहेंगे। ये दिन फिरेंगे जल्दी ही , और हम सब मिलेंगे यहाँ-वहाँ उत्सव में, समारोह में, मेले में, सत्संग में, मंदिर में, मस्जिद में, रेलों में, बसों में। अभी बहुत शान्ति और धैर्य के साथ अपने घर पर ही रहिए। घर के सदस्यों को वह समय दीजिए, जिसके वे अधिकारी हैं। बस थोड़े से दिनों की बात है। सब ठीक हो जाएगा।

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