साहित्यकार श्री विनम्र का निधन, श्यामलम् द्वारा सोशल मीडिया पर किया गया श्रद्धांजलि सभा का आयोजन
🔲 नवाचार करते हुए ऑनलाइन दी विनम्र जी को श्रद्धांजलि।
हरमुद्दा के लिए डॉ. चंचला दवे
सागर, 11 अप्रैल। वरिष्ठ साहित्यकार, लोकप्रिय कवि, सरलता सहजता की प्रतिमूर्ति श्रृद्धेय दादा नेमीचन्द्र विनम्र के निधन पर श्यामलम् संस्था ने सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि सभा का अभिनव आयोजन किया।
92 वर्षीय श्री विनम्र का बुधवार को दु:खद निधन हो गया था। एक सड़क दुर्घटना के बाद वे विगत 3-4 वर्षों से विश्राम की स्थिति में थे। घर में रहने के बाद भी साहित्यिक गतिविधियों की पूरी जानकारी रखते थे। घर से न निकलने की पीड़ा उनको हर पल सताती थी, पर कुदरत के निर्दय फैसले के सम्मुख विवश थे।
अंतिम यात्रा में न जाने पर सागर का साहित्य समाज व्यथित
पूरा विश्व कोरोना की महामारी से जूझ रहा है। नगर और नागरिक लॉक डाउन हैं। सामाजिक दूरी की आवश्यकता प्रत्येक नागरिक को आ पड़ी है। ऐसे माहौल में सागर का साहित्य समाज पूज्य विनम्र जी की अंतिम बिदाई में न जा पाने को लेकर अति व्यथित है।
नवाचार करते हुए दी ऑनलाइन श्रद्धांजलि
श्यामलम् द्वारा नगर की नामचीन हस्तियों के निधन पर उनकी गरिमा अनुरूप श्रद्धांजलि सभा आयोजित की जाती है किंतु विषम परिस्थितियों को देखते हुए संस्थागत् कार्यक्रम का आयोजन संभव न हो पाने से श्यामलम् ने नवाचार करते हुए श्रद्धांजलि सभा को सोशल मीडिया में करने का निर्णय लिया।
साहित्य को समर्पित जीवन : आचार्य
इस आनलाइन सभा में हिस्सेदारी कर विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए साहित्यकार प्रो.सुरेश आचार्य ने कहा कि विनम्र जी का साहित्य को समर्पित जीवन एक सच्चे तपस्वी की तरह गुज़रा। उनके जाने से हिन्दी साहित्य की अपूरणीय क्षति हुई है।
साहित्य साधना जीवन पर्यंत : ठाकुर
समाजवादी चिंतक रघु ठाकुर ने भोपाल से भेजे अपने शोक संदेश में विनम्र जी के निधन को दु:खद बताते हुए कहा कि वे सागर के साहित्यकारों में सबसे वरिष्ठऔर सम्मानित थे। उनकी साहित्य साधना जीवन पर्यंत जारी रही। वे अपने उपनाम के अनुसार स्वभाव से भी विनम्र थे। महामारी के उपायों की कैद के हम सभी बन्दी हैं। उन्हें उपस्थित होकर श्रद्धाजंलि देने सशरीर नहीं पहुंच पा रहे। शायद वे जाकर भी उसी विनम्रता से कह रहे हैं क्यों परेशान होते हो मैं अब केवल यादों में आऊंगा। मैं भी नियति का बन्दी हूँ।
सुलझे हुए व्यक्ति : निर्मल
वरिष्ठ कवि दादा निर्मल चंद निर्मल ने उन्हें एक अच्छे साहित्यकार, कवि के अलावा एक अच्छे और सुलझे हुए व्यक्ति के तौर पर व्यक्त किया।
सागर के साहित्य पुरोधा : जैन
प्रो.उदय जैन ने उनके निधन को सागर के साहित्य पुरोधा का प्रस्थान कहा।
सामाजिक सरोकारों और हिंदी साहित्य के प्रति समर्पित : चौबे
बुंदेलखंड हिंदी साहित्य एवं संस्कृति विकास मंच के संयोजक मणिकांत चौबे ने उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि विनम्र जी अपनी युवावस्था से ही सामाजिक सरोकारों और हिंदी साहित्य के प्रति समर्पित कलमकार रहे हैं, उन्होंने कभी साहित्य के मापदंडों के बाहर जाकर कोई समझौता नहीं किया। साहित्य का पठन-पाठन और संग्रहणीय होने लायक साहित्य और समाचारों का संकलन जीवन भर किया। साहित्याचार्य डॉ. पन्नालाल जी की स्मृति में लिखे गए अभिनंदन ग्रंथ का संपादन भी किया। साहित्य के क्षेत्र में वह अकेले ऐसे मित्र रहे जो अपनी सामर्थ्य भर बगैर ऊंच-नीच, छोटे-बड़े का आकलन किए सबसे बराबर का व्यवहार निभाते रहे। वे सागर हिंदी साहित्य सम्मेलन की इकाई के लगभग 10 वर्ष अध्यक्ष रहे।
वियोग ही है,सत्य जगत का : डॉ. दवे
कवयित्री डॉ.चंचला दवे ने इन पंक्तियों से उनको स्मृत किया-
मधुर मिलन के स्मृति चिह्नों
कभी न करना मेरी याद।
वियोग ही है,सत्य जगत का
मिलन क्षण भर का उन्माद।।
यथा नाम तथा गुण के पर्याय : सिरोठिया
गीतकार डॉ श्याम मनोहर सिरोठिया ने विनम्र जी को यथा नाम तथा गुण के पर्याय बताते हुए कहा कि उनका जाना उस पीढ़ी के एक ज्योतिर्मय स्तंभ का ढह जाना है जो सामंजस्य, सहयोग, सौहार्द और निश्छल आत्मीय भाव के साथ रिश्तों का निर्वाह करने में विश्वास रखती है।
डॉ. सिंह ने काव्य रचना से किया उन्हें याद
कवयित्री डॉ.वर्षा सिंह ने अश्रुपूरित श्रद्धांजलि में विनम्र जी की काव्य रचना से उन्हें याद किया-
मेरे मित्रो, मेरे मन में मेल नहीं है,
अंतरंग में जलधारा है शैल नहीं है।
सेवा के संकल्प दीप को अधिक जगाया,
मुक्त हृदय पथ टेढ़ी-मेढ़ी गैल नहीं है।
मेरी रचनाधर्मिता को किया प्रोत्साहित : डॉ. सुश्री सिंह
श्रद्धांजलि देते हुए कथाकार डॉ. सुश्री शरद सिंह ने उनसे जुड़े संस्मरण साझा करते हुए कहा कि वे मेरी रचनाएं ध्यान से पढ़ते थे और जब भी मुलाक़ात होती वे उन पर विस्तार से चर्चा करते थे। इस प्रकार मेरी रचनाधर्मिता को प्रोत्साहित करने में उनका जो योगदान रहा, उसके लिए मैं सदा दादा ‘विनम्र’ जी की कृतज्ञ रहूंगी। सागर साहित्य जगत में उनका नाम सदैव स्वर्णिम अक्षरों में अंकित रहेगा।
लोगों से मिलना जुलना अच्छा लगता उन्हें : अनुग्रह
युवा कवि अक्षय अनुग्रह ने कहा कि उन्हें लोगों से मिलना जुलना अच्छा लगता था। उन्हें उनसे शिकायत भी होती थी जो घरों में बंद रहते है। उन्हें इस बात का अपराध बोध होता था कि अब वे स्वास्थ्य के कारण पहले जैसा नहीं आ जा पाते।
बाबूजी ने अपना पूरा जीवन उसूलों के साथ जिया : डॉ. जैन
हिंदी-उर्दू मजलिस के डॉ.अनिल निरंजना जैन ने कहा कि बाबूजी ने अपना पूरा जीवन उसूलों के साथ जिया। वे समय के पाबंद थे।
सरल लोकभाषा के रचयिता : देवलिया
विदिशा से इतिहासविद् गोविंद देवलिया ने श्री विनम्र जी को सरल लोकभाषा का रचयिता बताते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी।
ऐतिहासिक चेतना के पुरोधा : ज्योतिषी
हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष आशीष ज्योतिषी ने उन्हें सागर की ऐतिहासिक चेतना का पुरोधा बताते हुए कहा कि पुराने संबंधो को व्यक्ति के न रहने के बाद भी उसके परिजनों से स्वयं विशेष अवसर पर मिलने को वे अवश्य पहुंचते थे।
इन्होंने भी दी भावांजलि
डॉ.गजाधर सागर, अशोक मिजाज, लक्ष्मीनारायण चौरसिया, केएल तिवारी अलबेला, मुकेश निराला, महिला लेखिका संघ अध्यक्ष सुनीला सराफ, संध्या दरे, डॉ.कविता शुक्ला, देवकी नायक भट्ट, डॉ.अरविंद गोस्वामी, डॉ. नलिन जैन, प्रलेस अध्यक्ष टी.आर. त्रिपाठी,पीआर मलैया, पैट्रिस फुसकेले, डॉ.सतीश पाण्डेय, प्रभात कटारे, लेखक संघ अध्यक्ष वृन्दावन राय सरल, अशोक गोपीचंद रायकवार, वीरेन्द्र प्रधान, ऋषभ जैन, अंबर चतुर्वेदी, डॉ.जी.आर.साक्षी, आर्ष परिषद अध्यक्ष डॉ.ऋषभ भारद्वाज, कवि आर.के. तिवारी, संतोष पाठक, रंगकर्मी अतुल श्रीवास्तव, मुकेश तिवारी, प्रो.नागेश दुबे, संस्कृति संंग्रहालय अध्यक्ष दामोदर अग्रिहोत्री, श्रीराम सेवा समिति अध्यक्ष डॉ.विनोद तिवारी, रंगकर्मी मुकेश सोनी, प्रदीप पाण्डेय, डॉ. अवधेश संडल, हिंदी साहित्य सम्मेलन के सचिव पुष्पेंद्र दुबे, डॉ.अशोक कुमार तिवारी ने भी विनम्र जी के साथ जुड़ी अपनी यादों को साझा किया,साथ ही अपनी भावांजलि और श्रद्धांजलि अर्पित की।
संचालन श्यामलम् अध्यक्ष उमाकान्त मिश्र ने किया। सचिव कपिल बैसाखिया ने आभार माना।