रचनाकार संध्या टिकेकर की दो कविताएं : निश्छल प्यार व आज में जीना
निश्छल प्यार
देख रहा हूं मैं —
झाड़ू बर्तन का काम निपटा कर
सामने के कमरे में
फुल स्पीड पंखे के नीचे
बैठी है मेरी पत्नी .
दो हफ्तों से नदारद है
कामवाली बाई
पर पत्नी के चेहरे पर
कोई शिकन नहीं है
निपटाती रही है वह
उसके भी हिस्से का काम
सहजता से
मानों बरसों से
आदि हो वह इसकी .
देती रही है वह
दो-दो महीने का एडवांस
उस कामवाली को
उसके गाढ़े दिनों में .
गुस्साता हूं मैं
बहुत सिर चढ़ा रखा है
उसे तो एडवांस मिल चुका
फिर तुम्हारी चिंता क्यों कर होगी उसे
पर
रोकती है वह मुझे कि
अनुमान से कुछ भी कहना
ठीक नहीं
मुझ पर और बच्चों पर
निश्छल प्रेम है उसका
रिश्तेदारों को भी उसने
भिगो रखा है अपने प्रेम से .
देख रहा हूं मैं
लौट आई है कामवाली बाई
चेहरे पर उदास ममता लिए.
बेटी को बड़ी माता निकली थी
और अभी भी बहुत कमज़ोरी है उसे.
बड़ी सहजता से
सिर्फ इतना कहती है वह
चलो कोई बात नहीं
फटाफट निपटा लो काम
फिर जल्दी से पहुंचो बिटिया के पास
अभी उसे तुम्हारी ज्यादा जरूरत है.
देख रहा हूं मैं
कामवाली काम निपटा कर
अभी-अभी जा रही है
अपने घर को
और साथ ले जा रही है
मेरी पत्नी से
अपनी बेटी के हिस्से का
थोड़ा सा निश्छल प्यार .
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आज में जीना
अधेड़ दंपत्ति
भली भांति जानते हैं कि
मृत्यु अटल है
कि – उनमें से कोई पहले
तो कोई बाद में
छोड़ेगा यह दुनिया
की – मरण ,जन्म का अटल उत्तरार्ध है
फिर भी
पति को पूरा विश्वास है कि
इस दुनिया से
जाएगा तो पहले वो ही .
फुर्सत में बैठी पत्नी को
एफडीज़, इंश्योरेंस पॉलिसी
और पासबुक दिखाकर
देता है संकेत कि
आगे सब कुछ
तुम्ही को संभालना है.
पर वह पति की बात को
न सुनती है न गुनती है .
उसका भी अपना विश्वास है कि
इस दुनिया से
जाएगी तो पहले वो ही .
अवसर पाकर वह भी
बता देती है कि
उसके बाद
कौन गहने बहुओं को
और कौन बेटियों को जाना है
कि पोतों- नातियों में
कैसा और कितना रुपया बंटना है
कि उसकी तेरहवीं पर खर्च का पूरा पैसा
अनाथ आश्रम को जाना है
कि उसकी देहदान की प्रक्रिया
में पति को बिल्कुल भी
भावुक नहीं होना है .
निश्चिंतता से जीते हैं दोनों
अपने अपने विश्वासों पर
कोई भय नहीं है उनके बीच अगले पलों का .
वे अभी के ,इसी पल में जीते हैं
क्योंकि वे
सिर्फ आज में जीना जानते हैं,
🔲 रचनाकार परिचय : संध्या टिकेकर ,प्रोफेसर शासकीय कन्या महाविद्यालय, बीना (म प्र)