एक मिस कॉल सी हो गई है जिंदगी…

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रतलाम की सड़कें सुनी हो गई है जिंदगी से,
हर चौराहे पर सन्नाटे खड़े हैं जिंदगी के,
लोगों में दुश्मनी से देखे थे, ऐसे फासले
मगर अब दोस्त भी दुश्मनों की तरह पालते हैं ऐसे फासले,
बस एक मिस कॉल सी लग रही है जिंदगी,
खुदा की इबादत करने जाना हो गया है मुश्किल,
और मधुशाला के दरवाजे पर भी ठोक दी है सील,
यार अब सोए तो कब तक और जागे तो कब तक,
डॉक्टर और हकीम न दे रहे हैं दवा, न दे रहे हैं दारू,
बस एक मिस कॉल सी हो गई है जिंदगी ना ठोर ना ठिकाना बस रह गई है बंदगी,

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दुश्मनी और नफरत के बादल बिछड़ गए हैं,
कोरोना के खौफ से दुश्मन के दर्शन भी बंद हो हो गए हैं,
हंसा हंसा करते थे कभी महफिलों में खेत पर,
जिंदगी आ गई है रेगिस्तान की तपती रेत पर,
गहरी नींद और सपने भी बंद हो गए हैं,
मानव जिंदगी के रास्ते दंग रह गए हैं,
कभी गुलजार रहा करते थे मयखाने,
जहां रोज टकराया करते थे पैमाने,
आज मौसम भी बेईमान हो गया है

शायद वह भी कोरोना के संग हो गया है,
बस एक मिस कॉल सी हो गई है

जिंदगी ना ठोर ठिकाना रह गई है बंदगी!

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🔲 वीआईपी नगररतलाम, मध्य प्रदेश

 

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