ऐसे है धरती के भगवान : कोई ऐंठ रहे हैं नोट तो कोई दे रहे हैं मौत

🔲 हेमंत भट्ट

धरतीवासी आमजन जिन चिकित्सकों को धरती का भगवान कहते है। मुद्दे की बात तो यह है कि इंसानियत, मानवीयता, रहमदिल, सहृदयता आदि शब्द उन चिकित्सकों के लिए कोई मायने नहीं रखते हैं, जो केवल रुपयों की भाषा ही जानते हैं। अपनत्व और सरोकार की नहीं। शपथ को तो उसी दिन खूंटी पर टांग देते हैं जिस दिन से वे रुपए कमाने की होड़ में दौड़ लगाना शुरू करते हैं।

IMG_20200524_125957

ये इतने लापरवाह और स्वार्थी हो गए हैं कि उनको किसी की जान की नहीं पड़ी है। चाहे उन्हें जमीन बेचकर पैसे देना पड़े। डिग्री तो उनके पास चिकित्सक की है, लेकिन वह मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव से कमतर नहीं है। कई बड़े-बड़े चिकित्सालय ऐसे ही चिकित्सकों के दम पर चल रहे हैं जो आमजन को भावनात्मक रूप से डराकर लाखों रुपए ऐंठ रहे हैं। उन्हें मोटे मोटे पैकेज इसी बात के दिए जाते हैं कि वे लोगों की जान के साथ खिलवाड़ करें और मरने के लिए छोड़ दें। यह विडंबना किसी एक शहर, एक प्रदेश की नहीं अपितु पूरे देश की है।

लापरवाही की हदें

चिकित्सक लापरवाही की हदें पार कर रहे हैं और लोग जान गंवा रहे हैं। कोरोना काल में चिकित्सकों को योद्धाओं व सैनिकों के नाम से निरूपित किया गया है। ऐसे चिकित्सक इन शब्दों की गरिमा को नेस्तनाबूद कर रहे हैं। लगता है चिकित्सक कौम का जमीर मर गया हैं। इन्हें किसी इंसान ही रिश्ते से कोई मतलब नहीं रह गया है।

घर जाएंगे तो हो जाएगा परीक्षण, लेकिन जिला चिकित्सालय मे ?

शारीरिक पीड़ा में जब इंसान को अस्पताल ले जाया जाता है तो उसे पूरा विश्वास रहता है कि वह ठीक होगा। चिकित्सक उसे देखेंगे। उसका परीक्षण करेंगे उपचार करेंगे लेकिन रतलाम में चिकित्सक ठीक इसके विपरीत व्यवहार कर रहे हैं। खास बात तो यह है कि जिला चिकित्सालय में यह कोई परीक्षण नहीं करेंगे, लेकिन जब घर पर जाएंगे तो मरीज का पूरा परीक्षण करेंगे, तब उनको को कोरोना संक्रमण नहीं होगा।

आमजन को झकझोरती है ऐसी घटनाएं

ताजा घटनाएं अभी हुई है जिसमें मुंबई से आई महिला की मौत इसलिए हो गई कि उसे चिकित्सकों ने वक्त पर देखा नहीं। उसका उपचार नहीं किया। हाल ही में जिला चिकित्सालय के संविदा चिकित्सक को कलेक्टर के आदेश पर नौकरी से हाथ धोना पड़ा। जिला चिकित्सालय में आई प्रसूता को निजी क्लीनिक में बुलाया और राशि वसूल की। निजी चिकित्सालय संचालक द्वारा भी प्रसूता के परिजनों से लगभग दोगुना राशि वसूली, जिसकी शिकायत कलेक्टर को करने के बाद कार्रवाई हुई।आमजन को ऐसी घटनाएं झकझोर देती है।

कलेक्टर की कार्यप्रणाली पर बढ़ता विश्वास आमजन का

चुप रहना किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। कहते हैं बिना रोए तो मां भी बच्चे को दूध नहीं पिलाती है। शिकायत करेंगे तो कार्रवाई की जाएगी। ऐसा विश्वास कलेक्टर रुचिका चौहान ने जिले के रहवासियों में पैदा किया है। चिकित्सा जगत के ही दो ऐसे मामले हैं जिनकी शिकायत हो गई है और कलेक्टर ने जांच उपरांत कार्रवाई भी की है। कलेक्टर की सकारात्मक कार्य प्रणाली को देखते हुए जिलेवासियों का विश्वास हर दिन बढ़ता जा रहा है। चाहे वह अपनी गाड़ी से हम्मालों को नींबू पानी पिलाने का मसला हो या फिर मजदूर के बच्चे के मुंह पर मास्क लगाने का। या फिर मजदूरों को अपने गंतव्य पर पहुंचाने की जिम्मेदारी का निर्वाह हो। कंटेनमेंट क्षेत्रों के रहवासियों को पूरी सुविधाएं उपलब्ध कराने की बात हो। आमजन के लिए जितनी चिंतित और फिक्र मंद कलेक्टर नजर आ रही है, उतने कोई अधिकारी शायद हो।

चिकित्सकों के बचाव की मुद्रा में क्यों है सिविल सर्जन?

सिविल सर्जन की जिम्मेदारी होती है कि अस्पताल में आने वाले मरीजों को समुचित उपचार और सुविधा मिले। सभी चिकित्सक से अपना कार्य ईमानदारी से करवाएं। समय पर चिकित्सक आए और मरीजों का उपचार करें लेकिन जिला चिकित्सालय में ऐसा नहीं हो पा रहा है। चिकित्सक अपनी मनमानी कर रहे हैं और सिविल सर्जन उनके बचाव की मुद्रा में कहते हैं कि ऐसा कुछ भी नहीं है, सब अपने समय चिकित्सालय में आ रहे हैं और कार्य कर रहे हैं। जिला चिकित्सालय के जिस संविदा चिकित्सक को कलेक्टर के आदेश के पश्चात सीएमएचओ डॉ. प्रभाकर ननावरे द्वारा सेवा से बर्खास्त किया गया है। इस प्रकरण में सिविल सर्जन को जिम्मेदारी दी गई थी लेकिन वह स्पष्ट अभिमत देने नकारा साबित हुए। इस पर पुनः कलेक्टर ने निर्देश दिए हैं कि स्पष्ट अभिमत दिया जाए। मतलब साफ है कि कुछ न कुछ गड़बड़ झाला जरूर है। मुद्दे की बात तो यह है कि आखिर चिकित्सकों को क्यों बचाया जा रहा है सिविल सर्जन द्वारा यह तो वे ही जाने ?

और अंत में

लेकिन ऐसे चिकित्सकों की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता है। ऐसे लालची चिकित्सकों की तो मान्यता और पंजीयन ही रद्द करने की कार्रवाई होनी चाहिए, तभी चिकित्सा जगत में आमजन को उपचार मिलेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *