ज़िन्दगी अब- 6 : तस्वीरों का सच : आशीष दशोत्तर
तस्वीरों का सच
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🔲 आशीष दशोत्तर
वे घर में अकेले रहते हैं। पत्नी गुज़र गई। बच्चियां विवाह के बाद ससुराल जा चुकी है। घर में एक ही सदस्य । ‘अपने मन के राजा’ अक्सर खुद के लिए इसी जुमले का इस्तेमाल वे किया करते हैं। अभी उन्होंने सोश्यल मीडिया पर अपनी मुस्कुराती तस्वीर पोस्ट की। तस्वीर में ऐसे शख्स सबसे बेहतर समझे जाते हैं। लेकिन हक़ीक़त कौन जानने की कोशिश करता है।
अकेले हैं इसलिए घर में खाना बनाने इत्यादि की कोई व्यवस्था उन्होंने नहीं कर रखी है। एक दुकान पर काम करते हैं । वहां से जो मासिक वेतन उन्हें मिलता है उससे उनका खर्च आराम से निकल जाता है। सुबह-शाम होटल से टिफिन आ जाता है। सारा समय दुकान पर गुज़र जाता है।
पिछले दो माह से उनकी दिनचर्या पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। वे इस दौरान घर से बाहर नहीं निकले । अपने मन के राजा को पहली बार इस बात का एहसास हुआ कि घर में लोगों का होना कितना जरूरी है । लेकिन क्या करें वे मजबूर थे । अब तक तो घर से बाहर उनका समय गुज़र जाया करता था। यह पहला मौका था जब उन्हें इतने समय घर में अकेले रहना पड़ा। चूंकि उनका सारा काम बाहर से संचालित होना था इसलिए उन्हें इस दौरान काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। घर में भोजन बनाने की कोई व्यवस्था नहीं। आस- पड़ोस से थोड़ी व्यवस्था की और इस दौरान घर में ही कुछ बनाते रहे, खाते रहे। जिस दुकान पर काम किया करते थे, वह पूरी तरह बंद रही। वहां से दो माह में कुछ नहीं मिला। जो कुछ उनके पास इकट्ठा था, वह इन दो माह में खत्म हो गया । उनकी स्थिति इस दौरान अपने मन के नवाब की नहीं रही। इन मुश्किल पलों में वे अकेले रहते हुए वे इतने दुबले हो गए कि कोई पहचान नहीं पाए।
संक्रमण काल के इस दौर में ऐसे कई व्यक्ति मिल जाएंगे जिनका एकाकी जीवन उन्हें बोझ सा प्रतीत हुआ और वह जीते जी ऐसी स्थिति से गुजरे जिसे बड़ा पीड़ादायक कहा जा सकता है। इस दौरान कुछ ऐसे अवसर भी आए जब लोगों ने उन्हें यह सलाह दी कि वे सामाजिक संस्थाओं द्वारा वितरित किए जाने वाले भोजन के पैकेट के लिए सूचना दे दे। क्यों कि वे इतने गए गुज़रे भी नहीं थे इसलिए उन्हें यह ठीक नहीं लगा। उनका मानना रहा कि भोजन के पैकेट ऐसे व्यक्तियों तक जाने चाहिए जिन्हें नितांत इनकी आवश्यकता है। कुल मिलाकर हालत गंभीर रही और आज भी चिंताजनक बनी हुई है। अभी उनकी दुकान पूरी तरह खुली नहीं खुली है तो ग्राहकी नहीं बढ़ी है । ग्राहकी नहीं है तो लगता नहीं कि उन्हें इस माह भी दुकान से कुछ वेतन मिले। लिहाजा उन्हें इसी तरह आधा भूखा रहकर अपना यह समय भी व्यतीत करना है।
देश में इस संक्रमण काल के दौरान तमाम सरकारी दावों, आश्वासनों के बावजूद ऐसे लोगों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है जो इन हालात में भुखमरी के कगार तक पहुंच गए हैं। ऐसे लोग कितने हैं और उनके लिए सरकार द्वारा क्या कुछ किया जाना है यह भी बहुत स्पष्ट नहीं हुआ है मगर सरकारी दावों को मान भी लिया जाए तब भी ऐसे लोगों के लिए अभी संकट का समय मुंह बाए खड़ा है। इस महामारी के कारण देश में एक भयावह तस्वीर उभरी है। अखबारों में हर दिन आ रहे विश्लेषण इस बात की ताईद भी करते हैं और यह आशंका भी व्यक्त कर रहे हैं कि देश में लगभग सवा करोड़ लोगों के सामने भुखमरी की स्थिति बनी है । सीएससी की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में ग़रीबी की दर पिछले 22 वर्षों में पहली बार बढ़ी है। दुनिया की आबादी की पचास प्रतिशत आबादी लाकड़ाऊन में होने से उनकी आमदनी या तो कम हो गई है या उनकी आय का कोई साधन नहीं रहा है। आय का कोई साधन नहीं रहने से लगभग 5 करोड लोग आने वाले समय में गरीबी में अपना जीवन गुज़ारेंगे।
हमारे देश में भी लगभग सवा करोड़ लोग इसी स्थिति से गुज़रेंगे। भुखमरी की स्थिति पहुंचने को हम उस दृष्टि से देखते हैं जबकि कोई भूख से मर जाए। हालांकि देश में कई ऐसे उदाहरण हैं जहां भूख से हुई मौत को भी भूख से हुई मौत नहीं माना गया ,क्योंकि हालात ऐसे नहीं थे।
जैसा कि हमने उपरोक्त उदाहरण में देखा कि जब व्यक्ति की आय का कोई स्रोत नहीं रहता है तो वह अपने आप को इतना असहाय महसूस करता है कि वह न तो किसी से कोई सहायता ले पाता है और न ही वह बिल्कुल ग़रीब की तरह स्वयं को अभिव्यक्त कर पाता है । ऐसी स्थिति में उसके सामने भूख सहन करने के अलावा कोई चारा नहीं बचता है। इस वक्त सभी सरकारों का यह दायित्व है कि वह ऐसे लोगों की सुध लें । कुछ प्रदेशों में यह व्यवस्था की जा रही है कि ग़रीबों को आगामी तीन माह का राशन उपलब्ध हो जाए। लेकिन सिर्फ राशन देने से बात नहीं बनेगी ।जिनकी आय का स्त्रोत ही समाप्त हो चुका है ,उन्हें सिर्फ राशन देने से काम नहीं चलेगा। उन्हें आर्थिक सहायता भी देना होगी। फिर ग़रीब को परिभाषित करना होगा, जो अपने आय के स्रोत को खो चुका है, जिसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है वह भी इस वक्त ग़रीब की श्रेणी में ही माना जाना चाहिए। ऐसे हालात में हर उस आदमी की ख़बर लेना जरूरी है, जो तमाम मुश्किलों को सहते हुए भी हालात से निपटने का जज्बा दिखा रहा है।
🔲 आशीष दशोत्तर