वेब पोर्टल हरमुद्दा डॉट कॉम में समाचार भेजने के लिए हमें harmudda@gmail.com पर ईमेल करे ज़िन्दगी अब-12 : ख़राब टेम : आशीष दशोत्तर -

ख़राब टेम

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🔲 आशीष दशोत्तर

क्या टाईम हो रहा है? यह सवाल उसने हवा में उछाला। इधर से इसने भी जोर से जवाब दिया “बड़ा खराब टेम चल रिया है।” वह इसके जवाब को सुन अपनी गाड़ी पलटा कर इसकी दुकान पर आया। यह एक घड़ीसाज़ की दुकान थी। घड़ी सुधारने और बेचने वाले की सामान्य सी दुकान। यहां मैं अपनी हाथ घड़ी में सेल डलवाने के लिए रुका था। इन दोनों के बीच संवाद ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। शायद यह दोनों दोस्त थे और रोज इसी तरह बात करते रहे होंगे।

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गाड़ी पर जो साथी आया था उसने अपनी गाड़ी खड़ी की और दुकानदार से कहने लगा, ” क्यों भाई , ख़राब टाईम क्या आ गया? घड़ीसाज़ कहने लगा, ख़राब टेम ही तो है। देख नहीं रहा। पूरा बाजार मंदा पड़ा हुआ है। कोई धंधा नहीं। हमारी दुकान में सैकड़ों घड़ियां टंगी हुई है और इनकी टिक-टिक हमारा मुंह चिढ़ा रही है। लगता है यह समय ठहर गया है और पता नहीं कब बदलेगा।

घड़ीसाज़ की आवाज़ में एक उदासी थी और वह दर्द भी जो वह महसूस कर रहा था। उसके साथी ने कहा, “क्या हुआ यार, बड़ा उदास दिखाई दे रहा है?”
घड़ीसाज़ कहने लगा, उदासी की ही तो बात है ।पिछले तीन महीने से घर गृहस्थी की हालत ख़राब है। आमदनी का जरिया यह एक दुकान ही है। ऐसे वक्त में हमारी दुकान और हम आपस में अपना सर फोड़ रहे हैं। पहले ही लोग घड़ी बांधने के आदी नहीं रहे। घड़ियां अब लोग रखते ही नहीं। इस बीच सोशल मीडिया पर जाने कहां से एक संदेश चल गया कि घड़ी बांधने, बेल्ट लगाने कोरोना वायरस फैल सकता है। तो बचे कुचे लोगों ने भी घड़ी बांधना बंद कर दिया। बारिश अलग होने लगी। जो घड़ी बांधते थे वे भी अब नहीं बांध रहे। यानी लोगों के हाथ में घड़ी है ही नहीं तो हमारे पास कौन आए?

घड़ी होगी नहीं तो ख़राब नही होगी। फिर सुधरने क्या आएगी। बड़ी घड़ियां खरीदने के लिए रोज़ लोग आते नहीं। सिर्फ गिफ्ट के लिए लोग घड़ी खरीदने आते थे। अब शादी, ब्याह, जन्मदिन की पार्टी भी नहीं हो रही है, तो गिफ्ट में घड़ी कौन लेगा? ऐसे में कोई ग्राहक नहीं है। मेरी तरफ इशारा करते हुए कहने लगा , यह भाई साहब आए तो 50 रुपए की ग्राहकी भी हो गई, वरना चार दिन से एक ग्राहक भी नहीं आया।

उस घड़ीसाज़ की बातें सुन , मैंने उसके आसपास की दुकानों पर बैठे कई घड़ीसाज़ों के चेहरों पर नज़र घुमाई। सभी के चेहरे इस घड़ीसाज़ की दास्तान को दोहरा रहे थे।

मोटरसाइकिल पर जो साथी आया था वह कहने लगा, तुम्हारी ही नहीं सभी की हालत ख़राब है भाई। लोग अभी बाज़ार में सिर्फ बहुत ज़रूरी सामान ही खरीद रहे हैं। या तो खाने-पीने की चीजें या फिर वह चीजें जिनकी बहुत ज्यादा ज़रूरत है। इसके अलावा सारी दुकानें खुली तो है मगर उन पर कोई ग्राहक नहीं चढ़ रहा है।
लोगों में कोई भय है।हर किसी को यह कहते हुए सुना जा रहा है कि फिर से एक लॉक डाउन हो सकता है। सोशल मीडिया पर भी इस तरह की ख़बरें भी आती है जो हमारी धड़कनें और और बढ़ा देती है। घड़ीसाज़ कहने लगा ,अब तू ही बता यह टेम ख़राब नहीं है तो क्या? खुदा जाने ये टेम कब बदलेगा।

इन दोनों के संवाद में मुझे हर आम इंसान की बात सुनाई देने लगी। एक छोटे शहर के एक छोटे दुकानदार की यह हालत है। वह न तो कमा पा रहा है, न अपना घर चला पा रहा है, न किसी के सामने अपने दिल की बात कह पा रहा है। इस दुकान की घड़ियां भी शायद इस बुरे वक्त की दास्ताँ सुनकर ख़ामोश हैं।

🔲 आशीष दशोत्तर

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