वेब पोर्टल हरमुद्दा डॉट कॉम में समाचार भेजने के लिए हमें harmudda@gmail.com पर ईमेल करे ज़िन्दगी अब- 14 : संदेश का भय : आशीष दशोत्तर -

 संदेश का भय 

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🔲 आशीष दशोत्तर
वे बात ज़रूर मुझसे कर रहे थे, मगर उनकी निगाहें बार-बार उनके हाथ में रखे मोबाइल पर जा रही थी। थोड़ी-थोड़ी देर में मोबाइल खोल कर कुछ पढ़ने की कोशिश कर रहे थे। मुझसे रहा नहीं गया। मैंने कहा, कोई ज़रूरी संदेश मोबाइल में देखना हो तो देख लें, फिर आराम से बात करते हैं। उन्होंने कहा , अब जो संदेश आ रहे हैं वे ज़रूरी कम भय वाले अधिक हैं। मुझे इस बात का आशय भी समझ नहीं आया। वह कहने लगे कंपनी हर दिन नया मैसेज डाल रही है और साथ में भय की श्रंखला में एक कड़ी और जोड़ती जा रही है।

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वे एक प्राइवेट कंपनी में सेल्समैन हैं। अमूमन उनका काम कंपनी उत्पादों के डीलरों से संपर्क कर माल का आदेश लेना और पैसे की वसूली करना है। शहर सहित आसपास के इलाकों और अन्य जिलों को भी वे ही संभालते हैं। इन्हें कवर करने का पूरे सप्ताह का एक कार्यक्रम उनके पास होता है। हर दिन का एक नया टारगेट उनको मिल जाता है, जिसे पूरा करने में वे जुट जाते हैं।

पिछले तीन माह से वे घर पर हैं। शुरुआत में जब लॉकडाउन हुआ, तब कंपनी ने उन्हें घर ही रहने की सलाह दी। उनका निर्धारित वेतन भी जमा किया। लॉकडाउन जब बढ़ा तब कंपनी ने फिर से घर पर रहने की सलाह देते हुए संदेश भेजा। इसके बाद अगले माह उनकी तनख्वाह आधी हो गई।हालांकि इस संबंध में कंपनी ने कोई मैसेज नहीं किया फिर भी वे समझ गए कि जब कंपनी को आय नहीं हो रही है तो वह तनख्वाह पूरी कैसे देगी। उन्होंने आधे वेतन में भी संतोष कर लिया।

जब लॉकडाउन खुला तब उन्हें यह उम्मीद थी कि कंपनी फिर से काम शुरू करने को कहेगी और वेतन भी पूरा मिलने लगेगा। मगर उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया। कंपनी ने फिर संदेश भेजा, अभी आप काम पर न जाएं। यदि काम पर जाते हैं तो आपकी जिम्मेदारी रहेगी। कंपनी खुद डीलरों के संपर्क में है। इस संदेश के बाद तीसरे महीने का जो वेतन उन्हें मिला वह बीस प्रतिशत था। सेल्समैनशिप में उन्हें वेतन के साथ टीए -डीए से काफी सहारा मिल जाता था। इस दौरान वह भी बिल्कुल बंद रहा। घर में आय के वे एकमात्र स्त्रोत हैं और परिवार के छह सदस्यों का गुजारा इतने कम वेतन पर करना मुश्किल था, मगर उन्होंने यह सोच कर संतोष किया कि अब लॉकडाउन खुल गया है , कुछ ही दिनों में स्थिति बेहतर हो जाएगी।

आज जब वे बार-बार मोबाइल में संदेश देख रहे थे तो उनके चेहरे पर मौजूद भय को स्पष्ट पढ़ा जा सकता था। उन्होंने बताया, कंपनी ने कल रात मैसेज कर यह स्पष्ट कर दिया है कि अभी कोई भी काम नहीं करेगा। फील्ड में जाकर काम करने पर यदि कोई अनहोनी होती है तो उसके लिए कंपनी जवाबदार नहीं रहेगी। चूंकि कंपनी को अभी कोई आय नहीं हो रही है इसलिए इस माह का वेतन जो एक तारीख के बाद मिलना है, नहीं दिया जा सकेगा। अलबत्ता आप अपने घरों पर बैठकर डीलरों से संपर्क करें और उन्हें बकाया राशि का भुगतान करने के लिए कहें। बकाया राशि का भुगतान आपके माध्यम से यदि होता है तो कंपनी उस अनुपात में आपको मानदेय देने पर विचार करेंगी। इस संदेश ने उनके पैरों के नीचे की ज़मीन खिसका दी इसके बाद उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें दिखाई दे रही थी। वे बार-बार अपने साथियों से संपर्क कर यह जानने की कोशिश कर रहे थे कि अब क्या होगा। क्या करना है और किस तरह अगले महीने से परिवार का गुज़ारा होगा। लगातार संदेशों की बदलती शैली और उसमें शामिल होते भय से उन्होंने यह अंदाजा तो लगा लिया था कि आने वाले महीनों में कंपनी से कोई ज्यादा उम्मीद रखना व्यर्थ है। बाजार ठंडा पड़ा हुआ है। जिस डीलर से बात करें , वह कोई कमाई नहीं होने की बात कर रहा है। न तो नए माल का ऑर्डर दे रहा है न ही बकाया राशि का भुगतान कर रहा है। ऐसे में भविष्य बिल्कुल अंधकारमय है।

रोजगार छिन जाने और रोजगार के क्षेत्र में मंदी आने संबंधी कई आकलन देश की विभिन्न संस्थाओं द्वारा निरंतर किए जा रहे हैं और सभी में यह चिंता उभर कर आ रही है कि वर्तमान परिस्थितियों में समाज का एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो रोजगार छिन जाने या रोजगार के स्वरूप में बदलाव आने से चिंतित है। अवसाद बढ़ रहा है, चिंताएं गंभीर हो रही हैं। आम आदमी खुद को मुश्किल में पा रहा है। ऐसे कई लोग हैं जो रोज़गार में होते हुए भी इस तरह की बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं। उनके सामने भविष्य को लेकर कोई विकल्प नहीं है, कोई रणनीति नहीं है, क्योंकि जहां वे देख रहे हैं , वहां हताशा और निराशा ही दिखाई दे रही है।

🔲 आशीष दशोत्तर

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