वेब पोर्टल हरमुद्दा डॉट कॉम में समाचार भेजने के लिए हमें harmudda@gmail.com पर ईमेल करे ज़िन्दगी अब-16 : कशमकश : आशीष दशोत्तर -

कशमकश

🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲

🔲 आशीष दशोत्तर

उसके सर पर एक टोकरा था। उस टोकरे में लगभग 15 किलो वजन का एक कद्दू, इतने ही वजन का एक कटहल, दस-बारह लौकी, दोनों हाथों में दो – दो झोले लटके हुए, जिनमें दूसरी सब्ज़ियां थीं। तकरीबन पचास किलो का वजन उठाए हुए वह सब्ज़ी बेच रही थी। रोज़ इसी तरह सब्जियां बेचती है और अपना गुज़ारा करती है।

1591157474801
दोपहर का समय था। वह थक चुकी थी। कुछ पल बैठना चाहती थी। पास ही एक ओटला था। वहाँ से गुज़रते मुझसे बोली, बाबूजी टोकरा उतरवा दो। मैंने हाथ लगाकर उसका टोकरा उतरवाया। टोकरा काफी भारी था। मुझे सहारा देकर उतारने में ही भारी लगा तो यह महिला इसे सर पर रखकर कैसे घूमती होगी और फिर हाथ में चार झोले अलग। यह सोच कर ही मुझे पसीना सा आने लगा ।
उसने अपने हाथ में लटके झोले नीचे रखे और ओटले पर बैठ गई। मैंने पूछा, क्या आज सब्जियां नहीं बिकी? दोपहर होने को आई है और तुम्हारा टोकरा तो भरा हुआ है। सब्ज़ियां भी कुम्हलाने लगी है।

IMG_20200617_090820

वह बहुत उदास थी। अपनी बोली में कहने लगी, लोगों को न जाने क्या हो गया है । कल तक जो बुला -बुला कर सब्जियां लेते थे वे आज दस सवाल करते हैं। कहां से सब्ज़ी लाती हो, कैसे लाती हो, पानी से धोती हो या नहीं, धोती हो तो पानी कहाँ से लेती हो। यह तो फिर भी ठीक है, अब मरी सर्दी का क्या करूं ? मैंने कहा , कौन सी सर्दी। अभी तो मौसम गर्म ही है। वो कहने लगी, अरे बाबूजी, मेरी सर्दी। मुझे सर्दी का कोठा है। साल भर सर्दी रहती है । लेकिन अब जो भी देखता है वह यही कहता है तुम्हें तो सर्दी हो रही है। तुमसे सब्ज़ी लेना ख़तरनाक है।
अब आप बताओ इस सर्दी का करूं तो क्या करूं? दवाई वाले से कहा कि कोई गोली दे दे तो कहने लगा अभी सर्दी, जुकाम, बुखार की गोली हम बिना पर्ची के नहीं दे सकते। पर्ची लिखा कर लाओ। मैंने कहा कि अस्पताल में दिखा दो और दवा ले लो। वह भय से बोली अस्पताल में तो सर्दी वालों को भर्ती ही कर रहे हैं। वहां मैं दिखाने जाऊँ और मुझे भर्ती कर लें तो कमाएगा कौन? मेरा सर्दी का कोठा तो फिर भी खत्म नहीं होगा। अब आप ही बताइए मेरी सब्ज़ी बिके तो कैसे। समझ नहीं आता कि क्या करूं? लोगों के सवालों का जवाब दूं या पहले इस सर्दी का कुछ करूँ। उसने बताया कि उसका परिवार इसी काम पर चलता है। सब्ज़ी मंडी से सब्ज़ियाँ खरीदती है और फिर मोहल्लों में घूम कर बेचती है। बरसों से यही काम कर रही है।

जो भी आय होती है उसमें अपना परिवार पालती है। पति है लेकिन कुछ करता नहीं है। बच्चे छोटे हैं।
मुश्किलों से गुज़रती इस महिला और उसकी ज़िंदगी की कशमकश को देख कई सारे सवाल सामने खड़े हुए। हम इन दिनों जो जीवन जी रहे हैं उसमें भय का समावेश इतना हो चुका है कि हम अपने आपके अतिरिक्त अन्य किसी पर भरोसा करने की स्थिति में नहीं हैं। अपने परिवार, रिश्तेदार, पड़ोसी सभी को हम भय की दृष्टि से देख रहे हैं। अपने जीवन की सुरक्षा के लिए यह एहतियात ज़रूरी भी है मगर ऐसे में कई सारे रिश्ते दरक रहे हैं।

अब यह सब्जी वाली क्या करें जिसको साल भर सर्दी का कोठा रहता है। चाह कर भी वह अपनी सर्दी को खत्म नहीं कर सकती ।यानी जब तक वह ऐसी स्थिति में रहेगी उसका काम धंधा खत्म। कोई सहारा नहीं। कोई उस पर भरोसा भी नहीं करेगा। संक्रमण काल में टूट रहे इस भरोसे को जिंदा रखने के लिए किसी से उम्मीद करने से बेहतर है कि हम खुद ही अपने भीतर के भय को अपनी कमज़ोरी न बनने दें और जिंदगी की कशमकश से गुज़रते ऐसे लोगों के प्रति सहानुभूति रखें। कई सारे किस्से देश भर से सामने आ रहे हैं जो हमारी आंखों को नम कर देते हैं। परिजन अपने परिवार के सामान्य मृत सदस्य की अर्थी को कांधा नहीं लगा रहे हैं ।जो संक्रमित हैं उनसे परिजन संपर्क नहीं कर रहे हैं। ऐसे कई सारे दर्दनाक प्रकरण हैं जो हमारे रिश्तों को तार-तार कर रहे हैं।कशमकश के इस दौर से निकलना बेहद ज़रूरी है।

🔲 आशीष दशोत्तर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *