वेब पोर्टल हरमुद्दा डॉट कॉम में समाचार भेजने के लिए हमें harmudda@gmail.com पर ईमेल करे ज़िन्दगी अब- 18 : वह सुशांत सिंह नहीं : आशीष दशोत्तर -

 वह सुशांत सिंह नहीं 

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🔲 आशीष दशोत्तर

“एक अच्छा कलाकार चला गया।” यह शब्द सुनकर उस तरफ देखा तो एक नौजवान खड़ा था, जो मेरे हाथ में रखे अखबार को पढ़ने की कोशिश कर रहा था। उस दिन अख़बार के मुख्य पृष्ठ पर युवा अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या का समाचार बड़े अक्षरों में छपा था। उस समाचार के शेष भाग को मैं भीतर के पृष्ठ पर पढ़ रहा था और अख़बार इस तरह खुला था कि पहला पृष्ठ उस युवक को साफ-साफ-साफ दिख रहा था। उसने उस समाचार को पढ़कर यह प्रतिक्रिया दी थी।

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मैंने आसपास देखा वहां कोई नहीं था। न कोई वाहन, न कोई ठेला गाड़ी, जिससे यह पता लगाया जा सके कि यह युवक है कौन? जब कहीं कोई संभावना नहीं दिखी तो सीधे पूछने के बजाए उसी से बात करना शुरू किया।
मैंने कहा, यकीनन बहुत अच्छा कलाकार चला गया, लेकिन जीवन से इस तरह निराश नहीं हुआ जाता। कई अच्छी फिल्मों में युवाओं को अच्छा संदेश देने वाला एक अभिनेता जब इस तरह चला जाता है तो कई युवाओं को निराशा होती है। कम से कम ऐसे बड़े लोगों को तो इस बात का ध्यान रखना चाहिए।

मेरी बात सुनकर वह थोड़ा मुस्कुराया और बोला, भैया क्या बड़े और क्या छोटे। दर्द तो एक जैसा होता है, दु:ख तो एक जैसे रहते हैं, कमियां तो सबको एक जैसी ही सहना पड़ती है, मुश्किलें सबके सामने एक जैसी ही आती है। उस अनजान से युवक से इस तरह की बातें सुनकर मुझे थोड़ा आश्चर्य भी हुआ कि आखिर ये नौजवान है कौन?

मैंने उसे अपने करीब ओटले पर बैठने के लिए कहा। वह बैठ गया। फिर उससे पूछा, यहीं रहते हो क्या। उसने कहा यहां तो नहीं ,यहां से दो मोहल्ले आगे। फिर पूछा क्या करते हो? उसने कहा, बस यही सवाल होता है, भैया जो हर बार मेरे जैसे युवा को डिप्रेशन में ले आता है। मैं थोड़ा सचेत हुआ कि कहीं यह युवा डिप्रेशन में तो नहीं है।

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मैंने उसे सहानुभूति पूर्वक टटोला तो कहने लगा कि मैं पढ़ा- लिखा हूं। बड़ी मुश्किल से बी.ए. किया उसके बाद एम.ए. में दाखिला भी लिया, लेकिन उसे पूरा नहीं कर पाया। ज़रूरतें हावी हो रही थी, इसलिए प्राइवेट नौकरी के लिए भटका। बहुत भटकने के बाद कहीं कोई सफलता नहीं मिली तो एक बार मेरे मन में भी यह ख्याल आया कि ऐसी ज़िंदगी से तो मौत बेहतर है। लेकिन पता नहीं फिर क्या हुआ जो मन ने यह कहा कि एक बार फिर से कोशिश करते हैं। फिर कोशिश की तो पास ही के शहर में एक प्राइवेट संस्थान में नौकरी मिल गई। कुछ नहीं से कुछ तो हुआ। थोड़ी-बहुत आय से जीवन को सहारा मिला। यहाँ लगा कि कुछ किया जा सकता है। इसके बाद मैंने एम.ए. भी कर लिया। लगातार नौकरी के लिए आवेदन करने लगा। किस्मत में नहीं थी, नौकरी नहीं मिली। इसी प्राइवेट जॉब को 3 साल से कर रहा था।

जब जीवन में ऐसा लगने लगा था कि बहुत अच्छा तो नहीं लेकिन ठीक-ठीक गुजर- बसर हो जाएगा। ऐसे में कोरोना का दौर आ गया। लॉकडाउन होते ही जिस संस्थान में मैं काम करता था उन्होंने हाथ जोड़ लिए। कहा कि जब ज़रूरत होगी बुला लेंगे। दो माह तक घर बैठा रहा, कोई काम नहीं। फिर से परेशानियां बढ़ने लगी। लॉकडाउन खुला तो सोचा कि कुछ होगा। संस्थान से संपर्क किया। उन्होंने मना कर दिया कि अभी कोई काम नहीं है। यानी मैं फिर से उसी स्थान पर खड़ा हो गया, जहां पहले था ।
मैंने पूछा अब क्या कर रहे हो? उसने कहा बड़ी मुश्किल से यही एक दुकान पर थोड़ा-बहुत काम मिला है। उसे ही करके गुज़ारा कर रहा हूं।

अब आप बताइए कि मेरे दु:ख किसी सुशांत सिंह राजपूत से कम है क्या? उसमें प्रतिभा थी अवसर नहीं मिल रहे थे। मैं भी पढ़ा -लिखा हूं, योग्य हूं ,मुझे भी अवसर नहीं मिल रहे हैं। भैया, दु:ख और दर्द तो सभी के एक जैसे होते हैं। कौन, कब इसके कारण अवसाद के घेरे में आ जाए कहा नहीं जा सकता।

मैंने उसका हौसला बढ़ाया और कई सारी सकारात्मक बातें उससे की। उसे यह विश्वास भी दिलाया कि अगर वह योग्य है तो एक दिन सफलता उसको ज़रूर मिलेगी।
उसने हंसते हुए कहा कि यह तो मुझे भी विश्वास है कि कभी न कभी सफलता मिलेगी ज़रूर। आप निश्चिंत रहिए , मैं सुशांत सिंह नहीं बनूंगा। यह कहते हुए वह चला गया। बहुत दूर तक जाते हुए उसे मैं देखता रहा और यह सोचता रहा कि इस संक्रमण काल ने भी कई युवाओं को अवसाद की तरफ अग्रसर किया है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, देशभर में पिछले दो साल में पच्चीस हजार से अधिक छात्रों ने आत्महत्या की, इनमें आठ हज़ार छात्रों ने आत्महत्या विभिन्न परीक्षा में फेल होने के डर से की थी। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट कहती है कि लगभग सतहत्तर प्रतिशत भारतीय कामगारों की नौकरी पर ख़तरा मंडरा रहा है। करीब दो करोड़ भारतीयों के बेरोजगारी के भंवर में फंसने का डर है। ऐसे में उस युवा की चिंता जायज है। इन सब बातों के बीच मैं उसका नाम नहीं पूछ सका। लेकिन मुझे इतना विश्वास ज़रूर हो गया कि वह सुशांत सिंह राजपूत नहीं साबित होगा।

🔲 आशीष दशोत्तर

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