चीन पर करो प्रहार, भारत की हो जीत, चीन की हो हार

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🔲 प्रो. अज़हर हाशमी
वैश्विक महामारी कोरोना वायरस संक्रमण के कारण दुनिया भर में किरकिरी होने के साथ ही ग्रुप सेवन में भारत को आमंत्रण और चीन को स्थान नहीं मिलने से हतोत्साहित चीन मनोवैज्ञानिक कार्रवाई करने पर उतारू हो गया है। इसी का नतीजा है कि एक बार फिर गलवान घाटी में मुक्केबाजी से शुरू हुआ हथकंडा भारतीय सैनिकों को शहादत तक पहुंच चुका है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मामले में चुप बैठने वाले नहीं हैं। उनकी कूटनीति, बुद्धि कौशल और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि के चलते चीन को करारा जवाब मिलेगा।

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इन मुद्दों के साथ अन्य मुद्दे भी चीन की बौखलाहट को उजागर करते हैं। चीन दशकों से कायराना हरकत करता आ रहा है। चाहे प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के दौरान पंचशील सिद्धांत की बात हो, तब 1954 में कोलंबो प्रस्ताव में ‘हिंदी चीनी भाई भाई’ का नारा दिया लेकिन चीन ने चाकू ही घोंपा है। तिब्बत के दलाई लामा ने भारत में जब शरण ली थी, तब भी बौखलाया था।

क्या है गलवान घाटी

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चीन के सिंघियांग क्षेत्र से लेकर भारत के लद्दाख तक गलवान घाटी फैली है। पाकिस्तान का क्षेत्र भी टकराता है। पाकिस्तान भी दुश्मन है। ऐसी स्थिति में चीन और पाकिस्तान दोनों ही अपनी हरकतों से बाज नहीं आते हैं।
गलवान घाटी में भारत चीन की सीमा मिलती है। गलवान को नाला या नदी भी कहते हैं। घाटी से बहुत अच्छा झरना गिरता है। एलएसी यानी कि वास्तविक नियंत्रण रेखा है। खास बात तो यह है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा का जो क्षेत्र है, वह पूर्वी क्षेत्र, मध्य क्षेत्र और पश्चिमी क्षेत्र कहलाता है। पूर्वी क्षेत्र में अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम, मध्य क्षेत्र में उत्तराखंड और हिमाचल तथा पश्चिमी क्षेत्र में लद्दाख आता है। गलवान वही स्थान है, जहां 1962 में भी युद्ध हुआ था।

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यह भी है दुख

खास बात यह है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा का 3488 किलोमीटर का क्षेत्र भारत के नियंत्रण में आता है, वही 2000 किलोमीटर का क्षेत्र चीन में आता है। चीन को यही दुख है कि 1488 किलोमीटर का ज्यादा क्षेत्र भारत में क्यों हैं। 7 मई 2020 बुद्ध पूर्णिमा के बाद से चीन ने भारत के साथ मुक्केबाजी शुरू की, जो कि अब जानलेवा साबित हो गई है। भारत के 20 जवान शहीद हुए हैं वहीं भारतीय सेना ने भी 43 से अधिक चीनी सैनिकों को धूल चटाई है। ऐसा चीन के ग्लोबल टाइम्स के संपादक ने जाहिर किया है।

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कई दर्द है चीन के

चीन का कोई एक दर्द नहीं है, वह अनेक दर्द से परेशान हैं। पहली बात तो यह कि ग्रुप सेवन में भारत को स्थान मिल रहा है। उसे कोई पूछ नहीं रहा है। ग्रुप में भारत को स्थान मिल रहा है तो फिर यूरोप अमेरिका, फ्रांस ब्रिटेन आदि देश भारत के साथ मजबूती से खड़े रहेंगे। वैसे भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की पकड़ काफी मजबूत है, वही ट्रंप और मोदी की दोस्ती आंखों में खटक रही है। इसके साथ ही चीनी वस्तुओं का बहिष्कार भी एक मुद्दा है। कोरोनावायरस के दौर में पूरी दुनिया चीन का विरोध कर रही है। ऐसे में खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे वाली कहावत चरितार्थ हो रही है।

तब भी चीन को हटाना पड़ा पीछे

2017 मे डोकलाम विवाद शुरू हुआ। यह विवाद 73 दिन तक चला है। अरुणाचल प्रदेश के पास से चीन ने सड़क बनाना शुरू कर दिया था, भारत ने पुरजोर तरीके से एतराज जताया। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय सुरक्षा समिति के मुख्य सलाहकार अजय डोभाल ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया और चीन को पीछे हटना पड़ा। 2018 में भी 16 हजार फीट की ऊंचाई पर डैमचौक में विवाद हुआ है। यह विवाद भी तकरीबन एक पखवाड़े तक चला। जहां पर भारतीयों ने चीनी को खदेड़ा। चीनी सेना को यहां पर भी पीछे हटना पड़ा।

राजनैतिक अपेंडिक्स हो चुका है चीन को

चीन के पेट में बार-बार मरोड़ उठ रहे हैं। डायरिया हो गया है। देखा जाए तो उसे राजनैतिक अपेंडिक्स हो चुका है। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सर्वाधिक हक भारत का होने के कारण चीन को खटक रहा है। इधर अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने भी कोरोनावायरस मामले में चीन से हर्जाना वसूलने के इरादे जताए हैं।

और झुलाया चीन ने मौत का झूला

पहले कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन के प्रधानमंत्री का भारत आगमन भारतीय संस्कार और संस्कृति के अनुरूप स्वागत सत्कार किया। मोदीजी ने उन्हें झूला झुलाया था, लेकिन आज वही चीनी प्रधानमंत्री सत्कार के सिले में भारतीय सैनिकों को मौत का झूला, झूला रहा है। यह कृत्य निंदनीय है। भारत हमेशा से ही आत्मीय व्यवहार का निर्वाह करता आया आया है लेकिन अवसरवादी चीन को यह रास नहीं आया। अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया। ऐसे दौर में जब पूरा विश्व कोरोना वायरस संक्रमण से जूझ रहा है।

भारत की हो जीत, चीन की हो हार

चीन द्वारा फैलाए गए कोरोना वायरस संक्रमण से अब ध्यान बंटाने के लिए चीन ओछी हरकतों पर उतारू हो गया है। कर्नल सहित 20 जवान भारत के शहीद हो गए हैं। अब दुष्ट के साथ दुष्टता पूर्ण रवैया अपनाना ही जरूरी है। नीति का तकाजा है। समय का तकाजा है। राजनीति का तकाजा है। कूटनीति का तकाजा है। चीन पर हो वार, करो प्रहार, भारत की हो जीत, चीन की हो हार।

🔲 जैसा कि प्रोफेसर अज़हर हाशमी ने हरमुद्दा के संपादक हेमंत भट्ट को बताया

(उल्लेखनीय है कि प्रोफेसर हाशमी राजनीति विज्ञान के विद्वान, चिंतक एवं साहित्यकार हैं। इन दिनों उनके हाथ में क्रेप बैंडेज लगा है, इस कारण वे लिख नहीं रहे हैं।)

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