परिचय पलाश का (पलाश-1) : नैनीताल से मंजुला पांडेय की रचनाएं
परिचय पलाश का (पलाश-1)
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फरवरी जब अप्रैल को सिमटता।
पलाश सुमन फूल के कुप्पा होता।।
पसरा समीप यदि कोई ताल-तलैय्या होता।
सिकुड़ कर वह छोटा सा गढ्ढा होता।।
सहोदर वृक्षों में जब फूटती नव कोपलें पतझड़ बाद।
पलाश पुष्प तब यौवन में होता कौमार्य बाद।।
लगने लगे जब जंगलों के भूखंड चटक सिंदूरी।
समझो पलाश कुसुम की यौवन साध हुई पूरी।।
पलाश वृक्ष अंग-अंग मानव हित में आता काम।
अठ्ठाइस औषधीय गुणों से पलाश प्रसुन जग में कमाता नाम।।
चूर्ण पलाश मुखमंडल में आभा लाता।
होली के रंग बन त्यौहारों में धूम मचाता।।
फलियां हैं कृमिनाशक इसकी।
बुढ़ापा विरोधी शक्ति जिसकी।।
पलाश कुसुम से स्नान ताजगी का एहसास कराए।
काष्ठ दंड यज्ञोपवीत में बड़ा काम आए।।
नारी के रूप रंग में निखार ला।
सौंदर्य प्रसाधन निर्माण में काम आए।।
छूल,पलाह,परसा,ढाक,पला-श।
किंसुक,केशू,टेसू जैसे नाम हैंं पाए।।
चटक लाल “जंगल की आग”ब्यूटिया मोनोस्पर्मा के।
नाम से विज्ञान में पलाश जाना जाए।।
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पलाश-सी जिंदगी(पलाश-2)
पलाश कुसुम-सी बदलती है जिंदगी सतरंगी रंग।
आते-जाते हैं बचपन,कौमार्य,
यौवन,परिपक्वता के सुनहरी रंग।।
किंसुक केशू के जीवनवृत -सी चलती है जिंदगी।
“जंगल की आग”-सी फैलती है जिंदगी।।
ढाक कोपलों सा शैशव कौमार्य की दहलीज पर होली के रंग -सी चेहरे पर खिलती है जिंदगी।
पूरे यौवन में आकर “जंगल की आग”-सी दहकती है जिंदगी।।
जीवन स्तर के उत्कर्ष क्षणों पर आता है बसंत।
तब जाकर ढाक कुसुम-सी खिलती है जिंदगी।।
यौवन की रौनकें पूर्णता के साथ सहजता पाकर।
टेसू पुष्प से नहाई -सी ताजगी लाती है जिंदगी।।
परिपक्वता के द्वार पर ठहर कर जीवन निर्वहन की सोच लिए।
चिंता में प्रयत्नशील-सी दौड़ती रहती है जिंदगी।।
कभी संघर्षों के सागर बीच पलाश के औषधिक गुणों-सी।
चौटिल ह्रदय पर मरहम रखती है जिंदगी।।
कभी अनुभवों से तप कर अन्तर्मन में उठते-गिरते कुत्सित भावों को।
कृमिनाशक बन किंसुक-केशू-सी हरती है जिंदगी।।
उम्र के ढलान पर शरद ऋतु के आगमन-सी।
ढाक के पतझड़ जैसी ढलती है जिंदगी।।
जीवन पतझड़ जाते ही कुछ पत्तियां बतौर निशानियां डालियों में रह जाती हैं।
उपस्थिति जिनका हर क्षण ये स्मरण कराती हैं।।
फिर लौट कर आउंगी मैं ऋतु चक्र-सी ले नव रूप।
यही संदेश फैलाउंगी रंग बदलती पलाश सुमन-सी है जिंदगी।।
बढ़ते जीवन के हैं! अपने जीने के ढगं।
चाहे जीवन बदले! कितने भी रंग।।
मसलन आना-जाना है जिंदगी।
पलाश-सी आकर्षक है जिंदगी।।
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करम बनाए रख
जब भी ठोकरों से गिरकर उठता हूँ मैं।
फिर नये जोश से ऊँची उड़ान भरता हूँ मैं ।।
रंजिशों की रवायतों में सबको खटकता हूंँ मैं।
अपनों के बीच बंजारा-सा भटकता हूँ मैं।।
वाकिफ हूं खूब रियाकारों की अब जहाँ में इंतहां हो गई।
कदम-कदम पर पसरा है दर्द देख उसे अब हँसता हूँ मैं।।
बड़ी जद्दोजेहद से जो पाई है मैंने कामरान।
रहे वो सलामत इसलिए शब-ए-सारा जागता हूँ मैं।।
आसां नहीं है जमाना-ए-जदीद में अहम् मुकाम पाना।
इसलिए जमाने की तीखी नजरों से बचता हूँ मैं।।
मिली मुझको मेरी मंजिल बामुश्किल जबसे जहाँ में।
देखने वाले मारते हैं ताना अब हर रोज महकता हूँ मैं।।
जिंदगी के मेले में बिखरते देखे हैं कई लोग मैनें।
बिखरों को सहारा दे अब कुछ देर चहकता हूँ मैं।।
जीतने की जिद में खो गया था कहीं बचपन मेरा।
पाकर मुकाम अब कुछ देर बच्चों-सा मचलता हूँ मैं।।
करम् बना रहे रहमतें हों खुदा तेरी मंजुल पर इतनी।
मुफलिसों की कुछ ख्वाहिशों में अब रंग भरता हूँ में।
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तुम फिर याद आओगे
चिलचिलाती धूप-से तपे जीवन संघर्षों के बीच
तपती धरती पर गिरे नीर-से
भीगी । उठती सौंधी मिट्टी की
खुशबू मानिन्द मेरे प्यासे दिल को तुम फिर याद आओगे।।
अतीत के पन्नो-से यादों के झरोखों को जब भी खोलूंगी।
मधु-सी मिठास रीते से मन में
तुम घोल जाओगे।।
मखमली सब्ज घास में चलते नर्म मुलायम।
स्पर्श-से तुम मेरे ह्रदय को महकाओगे।।
तेरा घुटनों पर चलना,चल कर वो गिरना।
गिरकर फिर उठना,अपने आप में संवरना।।
कोशिशें कामयाब न होने पर प्यारा-सा सुबकना।
सच् तुम्हारे जाने के बाद,फिर तुम याद आओगे।।
नन्हे हाथों से दरो-दीवार पकड़ मटक कर सटकर।
नन्हीं नजरों में जीत का भाव भर कर चलना।।
अतीत के पृष्ठों में बंद तस्वीर -से ठहरकर।
मेरी प्रीत का ताउम्र सबब बन जाओगे।।
जहां भी जाओगे गुल-ए-चमन बन कर।
दिलों में करोगे राज सबको महकाओगे।।
रहोगे जहां भी मेरे जीवन का अनमोल उपहार बन।
अपनो के बीच मेरे सबब-ए-गुरूर माने जाओगे।।
गुजारिश कहो या इबादत फकत मेरी है इतनी।
तुम्हारे सपनो की ख्वाहिशें,पंखों की परवाज रहे न अधूरी।।
गुरूर तुमको छु भी न पाए हर आरजू तुम्हारी हो पूरी।
तुम कदमों में अपने अर्स को झुका एक नया आयाम पाओगे।।
भुला न देना तालीम को मेरी दौर-ए-हलचल में।
करो इकरार तासफर-ए-जिस्त न मुश्किल से घबराओगे।।
मुकाम देना परवरिश को मेरी मुकाबले की दुनिया में।
तुम मसलसल अमालों से अपने नेक बंदे का नाम कमाओगे।
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अक्सर
अक्सर जो अजीमो-अजीज
होने का दम् भरते हैं।
सीने में नहीं पीठ पर
आपकी खंजर भौंकते हैं।
ताउम्र साथ निभाने की
कसमें जो खाया करते हैं।
अक्सर वहीं हालात-ए-मुस्किल में
खरा उतरने से गुरेज़ करते हैं।
सुलगते रहते हैं हजारों शोले
इनके सीने पर
जरा सा रूख हवा का बदलने पर
आतिश-ए-आग में दहकते हैं।
अंदाज-ए-आगाज दोस्ती है इनका
अंदाज-ए-अंजाम खुला रकीब रखते हैं।
तारीके शब में मुहब्बत में जान देने का जो दम् भरते हैं।
उजालों में वही हमकदम
होने से भी परहेज़ करते हैं।
तन्हाई में जो दामन थाम कर
चाँद-सितारों से भरने की बात करते हैं।
विसाल -ए-मजलिस में नजरों के दो चार होने से भी सहमते हैं।
कहानी नहीं हकीकत है ये जनाब!
दुनिया को पढ़ने का हुनर कुछ तो हम भी रखते हैं।
दोहरे अंदाज में जीते हैं जो लोग
अक्सर वही रिश्तों को तारतार करते हैं।