ज़िन्दगी अब- 21 : घर से काम : आशीष दशोत्तर
घर से काम
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🔲 आशीष दशोत्तर
देश के बहुत व्यस्त और बड़े शहर में उसकी नौकरी है। पिछले वर्ष के अंत में उसका विवाह हुआ। विवाह के लिए उसने अपनी कंपनी में अवकाश का आवेदन दिया। कंपनी ने उसे अवकाश देने में असमर्थता व्यक्त की। कंपनी के लिहाज से विवाह के लिए तीन दिन का अवकाश काफी था जबकि उसे एक माह का अवकाश चाहिए था।
वह माता-पिता की इकलौती पुत्री है। माता-पिता के साथ कुछ समय रहकर उसी को विवाह की सारी तैयारियां करना थीं, इसलिए अवकाश ज़रूरी था। उसने कंपनी में एक माह के अवकाश का आवेदन दिया, जिसे कंपनी ने अस्वीकृत कर दिया। उसके लिए विवाह महत्वपूर्ण था। पूर्व में भी उसने दो कंपनियों में नौकरी करने के बाद इस तीसरी कंपनी में नौकरी शुरू की थी। उसके मुताबिक “प्राइवेट जॉब में इस तरह के जंप लेना पड़ता हैं।” उसने भी जंप लिए। उस वक्त वह तीसरी कंपनी में काम कर रही थी। कंपनी ने उसे अवकाश नहीं दिया तो उसने इस यकीन के साथ उस कंपनी से त्यागपत्र दे दिया कि उसे विवाह के बाद कहीं न कहीं तो नौकरी मिल ही जाएगी।
उसके पिता सेवानिवृत्त हैं। पिता की भी प्राइवेट नौकरी रही, इसलिए पेंशन का कोई विशेष सहारा नहीं। परिवार के लिए एकमात्र वही सहारा बनी थी । विवाह के लिए नौकरी छोड़ कर आ गई। विवाह हुआ। विवाह के बाद वह पति के साथ पुनः उसी नगर में पहुंची। चूंकि पति भी उसी शहर की एक निजी कंपनी में कार्यरत है, इसलिए उसे वहां जाना ही था। वहाँ जाने के बाद उसने अपनी नौकरी की कोशिश की। दो माह की कोशिश के बाद उसे मार्च माह में एक कंपनी में नौकरी मिल गई। इसे उसकी तक़दीर कहें या समय का फेर , नौकरी ज्वाइन करने के दो दिन बाद ही लॉकडाउन शुरू हो गया। लॉकडाउन में सब कुछ बंद।
कंपनी ने घर ही रहने को कहा। लाकडाऊन बढ़ा तब कंपनी ने कह दिया अभी कुछ काम नहीं होना है। आप चाहें तो अपने गृह नगर में जा सकते हैं। संक्रमण की स्थिति में आपके साथ कुछ अनहोनी होने पर कंपनी का कोई दायित्व नहीं रहेगा। वहाँ संक्रमण बढ़ रहा था। दोनों के परिवार उन्हें बार -बार बुला रहे थे। बड़ी मुश्किल से पति-पत्नी दोनों वापस अपने गृह नगर लौटे। कंपनी ने पति को आधी तनख्वाह पर घर से ही काम करने के लिए कहा, जिसे स्वीकार करना उसकी मजबूरी थी। पत्नी, जिसकी नौकरी लगे अभी दो ही दिन हुए थे, उसे कंपनी ने स्पष्ट कर दिया कि नई परिस्थितियों में अभी आपकी नौकरी के संबंध में कुछ नहीं कहा जा सकता है। आप “वर्क फ्रॉम होम” कीजिए। भविष्य में जब पूरी तरह काम प्रारंभ होगा, तब आपकी सैलरी डिसाइड की जाएगी।
“वर्क फ्रॉम होम” कब तक करना है , इस पर कंपनी ने कहा कि नवंबर तक तो यही स्थिति रहेगी। उसके बाद परिस्थितियों के अनुसार देखते हैं।
अभी “वर्क फ्रॉम होम” चल रहा है, लेकिन होम का वर्क गड़बड़ा गया है। पुत्री की आय एकमात्र घर का सहारा थी, जो अभी बंद है । कहने को नौकरी है भी और नहीं भी। उसके पति जो स्वयं आधी तनख्वाह पर “वर्क फ्रॉम होम” कर रहे हैं वे अपने माता-पिता को संभाल रहे हैं। यानी दोनों के परिवार योग्य बच्चों के होते हुए ऐसे संकट से गुज़र रहे हैं, जिसे कहा भी नहीं जा सकता और सहना भी मुश्किल है।
ऐसे कई युवा हैं जो इस स्थिति का सामना कर रहे हैं। अपने छोटे से शहर के ही कई युगल अभी अपने घर बैठे हुए हैं। कहने को यहीं से “वर्क फ्रॉम होम” चल रहा है लेकिन यह उनका दिल ही जानता है कि यह वर्क फ्रॉम होम उनके भविष्य के लिए कितना ख़तरनाक है।
विश्लेषण कहते हैं कि पहले लॉकडाउन के दौरान, भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रतिदिन लगभग बत्तीस हज़ार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।अगर ‘वर्क फ्रॉम होम’ को बढ़ावा मिलता है, तो अर्थव्यवस्था को भविष्य में भी नुकसान उठाना पड़ सकता है। बड़े उद्योगों और उनसे जुड़े छोटे उद्योगों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ सकता है।” वर्क फ्रॉम होम’ लोगों की व्यवहारिक क्षमताओं पर भी प्रभाव डाल सकता है। “वर्क फ्रॉम होम’ एक ऐसा उपाय है जिसने संक्रमणकाल के दौरान कॉर्पोरेट्स, उद्योगों व अर्थव्यवस्था की गति को कुछ सीमा तक बनाए रखने में सहायता की है लेकिन शायद यह कॉर्पोरेट्स व उद्योगों में काम करने का ‘न्यू नार्मल’ नहीं बन सकता है। कंपनियों के लिए भले ही यह लाभ का सौदा हो सकता है और इससे कंपनियों का स्थापना व्यय और अन्य सारी जिम्मेदारियां अवश्य कम होगी लेकिन ऐसे युवा जो बड़ी कंपनियों के पैकेज सिस्टम के भरोसे अपने घरों को छोड़कर बड़े शहरों में जा बसे थे और वहां स्वयं को स्थापित करने का प्रयास कर रहे थे, ऐसे युवाओं के सामने इस नई व्यवस्था ने कई सारे संकट खड़े कर दिए हैं।
🔲आशीष दशोतर