बैलेंस शीट

🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲

🔲 आशीष दशोत्तर

वह अर्थशास्त्र की विद्यार्थी रही। उसे सबसे अधिक रुचि बैलेंस शीट बनाने, कैश बुक लिखने जैसे विषयों में रही। उसके ख्वाब तो काफी थे और वो चाहती कि आगे पढ़ाई कर चार्टर्ड अकाउंटेंट या इसी तरह कि किसी ओहदे को हासिल करें, मगर “कभी किसी को मुक़म्मल जहाँ नहीं मिलता।” सारे अरमान अगर पूरे हो गए तो ज़िन्दगी ही क्या?

1591157474801
हालात कुछ इस तरह बने कि उसका विवाह एक साधारण परिवार में हुआ। जिस परिवार में विवाह हुआ वहां बहुत कुछ तो नहीं था मगर सुकून अवश्य था। उसने इसी को अपना मुक़द्दर मानकर संतोष कर लिया। पति इलेक्ट्रिशियन का काम किया करते थे। ससुर की पेंशन से घर चला करता था। यानी जीवन ठीक-ठाक कुछ समय चलता रहा। उसके बाद ससुर का देहांत हो गया। पति की आय से घर चलने लगा। जब उसे ज़रूरत महसूस हुई तो उसने प्राइवेट स्कूल में नौकरी शुरू की। इसमें भी गुज़र नहीं हुई तो मकान के ऊपरी हिस्से को किराए पर दे दिया। अब कुछ आय के स्त्रोत बढ़े।

उसने अपनी रूचि के अनुसार अपनी गृहस्थी की बैलेंस शीट को मेंटेन रखने का कार्य शुरू किया। हर माह होने वाली आय और व्यय को वह लिखने लगी। उसकी गृहस्थी की बैलेंस शीट पर नज़र डालें तो कुछ इस तरह लिखा मिलता है,- मासिक आय- पति की तीन हज़ार रुपए, स्वयं की आय तीन हज़ार पांच सौ रुपए। मकान का किराया दो हज़ार पांच सौ रुपए। कुल आय नौ हज़ार रुपए। प्रति माह व्यय- घर खर्च छह हज़ार रुपए, एक हजार रुपए आकस्मिक व्यय, दो हज़ार रुपए बच्चों की फीस एवं अन्य व्यय। यानी आय और व्यय का हिसाब बराबर। जितना महीने में कमाया जाता उतना पूरा खर्च होता। यानी जिंदगी ठीक-ठाक चल रही थी। बैलेंस शीट से ज़ाहिर था कि बचत के नाम पर उसके पास कुछ भी नहीं बच रहा है। यदा-कदा मासिक खर्च में कुछ कटौती होती तो वह उससे बचत कर लिया करती। अभी तक की कुल बचत बहुत ही मामूली थी।

इस वर्ष फरवरी माह तक उसकी यह बैलेंस शीट बराबर चलती रही। मार्च माह से यह बैलेंस शीट अनबैलेंस होने लगी। यानी इसमें आय वाला कॉलम गड़बड़ाने लगा। पति की आमदनी लॉकडाउन के कारण बंद हो गई। खुद की आय मार्च माह से बंद हो गयी। स्कूल से कह दिया गया कि जब स्कूल प्रारंभ होंगे तब आपको बुला लिया जाएगा। अब बची किराएदार से प्राप्त होने वाली आय। किरायेदार स्वयं भी इस लाकडाउन का शिकार था। उसने मार्च माह में दो हज़ार रुपये ही किराए के दिए। अप्रैल और मई माह में किराए के नाम पर कुछ भी नहीं दिया, यह कहते हुए कि अभी कुछ आय ही नहीं हो रही है तो किराया कैसे दिया जाए। हालांकि उसकी नीयत में खोट नहीं थी। उसने कहा आवक होते ही मैं पूरा किराया दूंगा। मगर ज़रूरत बैलेंस शीट को व्यवस्थित रखने की थी, जो पूरी तरह ध्वस्त होती नज़र आ रही थी।

इस माह उसने वह बैलेंस शीट उठाकर एक तरफ रख दी। कहने लगी, अब बैलेंस शीट का क्या करें। आवक नहीं हो रही है। खर्च वही के वही हैं, सिर्फ बच्चों के स्कूल का खर्च नहीं हो रहा है। कैसे जीवन में संतुलन स्थापित करें।

एक मध्यमवर्गीय परिवार जो अपनी ज़रूरत के हिसाब से कमाकर ज़िंदगी बसर कर रहा था, उसको संक्रमण काल ने पूरी तरह ध्वस्त कर दिया । पति को मिलने वाला काम बहुत कम हो चुका है। लोग अभी किसी बाहरी कारीगर को बुलाने से परहेज कर रहे हैं। उसकी स्कूल की आय बंद हो चुकी है, जो कम से कम अगस्त माह तक तो बंद ही रहेगी। उसके बाद भी कुछ कहा नहीं जा सकता।

किरायादार भी इन्हीं परिस्थितियों का शिकार है, इसलिए वह कब किराया दे, यह भी कहना मुश्किल है। ऐसी स्थिति में वह अपनी बचत,अपनों के सहयोग और छुटपुट काम कर अपने जीवन में किसी तरह संतुलन बिठाने की कोशिश कर रही है। कहने को परिवार ठीक-ठाक है, उसे ग़रीब की श्रेणी में भी नहीं माना जा सकता, इसलिए यह परिवार चाह कर भी किसी से कोई सहायता नहीं मांग सकता। ऐसे हालात में यह परिवार क्या करे ?

यह एक परिवार की दास्तान नहीं है। आप अपने आसपास के आठ-दस मकानों तक देखने की कोशिश करेंगे तो आपको वहां भी ऐसे कुछ परिवार मिल जाएंगे। ऐसे परिवारों के जीवन की बैलेंस शीट वापस कब मेंटेन होना शुरू होगी कहा नहीं जा सकता।

🔲 आशीष दशोत्तर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *