ज़िन्दगी अब -31: दूध के धुले : आशीष दशोत्तर
दूध के धुले
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🔲 आशीष दशोत्तर
” आप तो हर बात ऐसे करते हैं जैसे आप खुद दूध के धुले हों। ” यह कहते हुए उसने मुझ पर सवालिया निशान लगा दिया, या कहिए एक झटके में सारी हेकड़ी उतार दी। वह समझदार है। पढ़ा- लिखा है। हर बात को ठीक तरह समझता है, इसलिए उसकी इस बात को मैंने नज़रअंदाज़ नहीं किया। उसकी बात को आगे बढ़ाते हुए पूछा, तुम्हारा क्या मतलब है?
वह कहने लगा, अभी आप अख़बार पढ़ते हुए कह रहे थे कि हज़ारों लोगों की नौकरी इस संक्रमण काल ने छीन ली। सरकार कुछ कर ही नहीं रही। मैंने कहा, हां! यही अख़बार कह रहा है। इसमें लिखा भी है। कितने लोग नौकरी से निकाल दिए गए। कितनों ने अपने घर की ओर रुख कर लिया। कितने ही ऐसे हैं जिन्हें अब तक कोई काम नहीं मिला। इसमें क्या ग़लत क्या है?
वह कहने लगा कि इसमें आप अपने आप को कितना गुनाहगार मानते हैं? यह और उलझन भरा सवाल था। मैं एकदम कुछ न कह सका। सोचने के लिए इधर-उधर देखने लगा। वह एक हेयर कटिंग की दुकान थी और मैं जिस से बात कर रहा था वह उस दुकान का संचालक था। पढ़ा-लिखा था और अपने पुश्तैनी काम को आगे बढ़ाने के लिए हेयर कटिंग के व्यवसाय को कर रहा था। लगभग हर माह उसके यहां बाल कटवाने के लिए जाना होता रहता है, इसलिए कुछ बातें इधर-उधर की भी हो ही जाती है। इस बार चार महीने में उसके यहाँ आना हुआ। मुद्दा संक्रमण काल का ही था, इसलिए यह बात चल पड़ी।
मुझे चुप देख वह कहने लगा, क्या हुआ आप तो ख़ामोश हो गए। मैंने कहा, मुझे तुम्हारी बात समझ नहीं आई। इस हाल के लिए तुमने मुझे भी गुनाहगार बताया है। मैं वही सोच रहा हूं कि मैं इसका क्या जवाब दूं । वह कहने लगा आप इसका जवाब नहीं दे पाएंगे । आपने खुद को कभी वहां रख कर देखा ही नहीं। मैं आपको आपकी स्थिति बताता हूं।
उसकी यह शैली मुझे आश्चर्यजनक भी लगी और चुनौतीपूर्ण भी। उसके यहां लगे आईनों में हर कोण से चेहरा देखने की सुविधा थी, मगर जिस कोण से वह मेरा चेहरा मुझको बता रहा था वह उन सब कोणों से जुदा था। मैंने कहा, चलो आज तुम्हारे आईने में ही अपनी तस्वीर देख लेते हैं। वह कहने लगा, आप कह रहे हैं कि इतने हजार लोग बेरोज़गार हो गए। इतने हज़ारों को काम नहीं मिला। आपको यह जानकर हैरत होगी कि आपने भी कितने ही लोगों का रोज़गार छीना है।
यह मेरे लिए और आश्चर्यजनक बात थी। भला मैं किसी को रोज़गार दे ही नहीं सकता हूं तो किसी का रोज़गार छीनने वाला मैं कौन? मैंने कहा ,तुम्हारा यह आकलन मुझे ग़लत लग रहा है। मैं भला किसी का रोज़गार कैसे छीन सकता हूं। वह कहने लगा, आप मेरी दुकान में कितने समय बाद आए हैं। मैंने कहा, लगभग पांच महीने होने आए ।चार तो पूरे हो ही गए हैं। उसने पूछा, पहले कब आते थे? मैंने कहा हर माह। उसने मुझे सीधी सी गणित समझाई।
आपने मेरे पेट पर लात मार कर मुझसे चार सौ रुपए छीन लिए। आप इन चार माह में अगर मुझसे कटिंग बनवाते तो मेरी चार सौ रुपए की कमाई होती। चलिए ठीक है, आज आपके साथ आपके बच्चों को नहीं लाए? मैं अक्सर कटिंग के लिए अपने बच्चों को भी उसके यहाँ अपने साथ ही ले जाया करता हूं ।मैंने कहा हां अभी बच्चों को सैलून में लाकर कटिंग करवाना ठीक नहीं है, इसलिए जब तक हालात ठीक न हो जाएं, उनकी कटिंग तो घर पर मैं ही कर दिया करूंगा। उसने फिर कहा, यह मेरा दो हज़ार रुपए का और नुक़सान हुआ। यानी आपने मेरा रोज़गार मुझसे छीना। आपके जैसे कितने ही ग्राहक हैं, सब मेरे गुनाहगार हैं।
अच्छा यह बताएं, आपके यहां कामवाली बाई तो आती होगी। मैंने कहा, हां आती तो थी। लेकिन जब से कोरोना का आक्रमण हुआ तब से हमने उसे बंद कर दिया है। उसने पूछा, आपने उस कामवाली बाई का भी रोज़गार छीना। पिछले चार माह से वह भी आपके कारण बेरोज़गार है। फिर वह कहने लगा, सोचिए तो सही ,ऐसे कितने ही लोगों के रोज़गार आपने छीन लिए हैं। तो क्या आप स्वयं इस स्थिति के लिए दोषी नहीं है ?आपके जैसा हर व्यक्ति किसी न किसी का रोज़गार छीन कर बैठा है। ऐसे में हर बात के लिए सरकार को दोष देकर बैठ जाना क्या उचित है? आपने अगर किसी का रोज़गार छीना है तो आप भी दोषी हैं ।आप ने उसे रोज़गार अभी तक नहीं दिया है तो आप और अधिक दोषी हैं। इसलिए भाई साहब, आप भी दूध के धुले नहीं हैं।।उसकी बातें सीधे मुझे मेरा असली चेहरा दिखा रही थी। उसकी दुकान में रखे आईनों में मुझे मेरा ही चेहरा अजीब सा नज़र आ रहा था।
🔲 आशीष दशोत्तर