मांग संवारा करो

उगते सूरज की लाली से
मांग सुबह की सजाया करो
ओस में भीगे गुलाबों से
फ़िज़ा का आँचल महकाया करो
जब भी चांदनी का प्यारा सा चेहरा

झलके चाँद के आईने में
घटाओं की सियाही से
नज़र का टीका लगाया करो

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साज के मधुर सुरों से
गीत चाहत के सजाया करो
सागर की मचलती लहरों में
साहिल बन मिल जाया करो
जब भी संग चलो तुम
खूबसूरत ख्वाबों की तलाश में
बस होंठों पर मुस्कान बन
सुर्ख गुलाबों सा खिल जाया करो

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🔲 रंजना फतेपुरकर, इंदौर

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