ज़िन्दगी – 45 : एक नम्बर : आशीष दशोत्तर
एक नम्बर
🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲
🔲 आशीष दशोत्तर
यह उसका तकिया कलाम है। हर बात के बाद वह इसे शान से कहता है। जो भी कहता है उसके साथ में यह भी जोड़ता है। जैसे लगे कि उसके पास जो भी चीज है वह एक नंबर ही है। यहां तक कि नोट भी वापस करता है तो यह कहते हुए कि नोट एक नंबर है यानी उसके लिए हर चीज़ एक नंबर ही होती है।
उसका एक नंबर कहना मुझे इसलिए भी अच्छा लगता है क्योंकि यह उसके सकारात्मक रुख को बताता है। ऐसे दौर में जब कि सब चीजें नंबरों से परे हो गई है ऐसे में हर चीज को नंबर एक कहना यह किसी बड़े दिलवाले का ही काम है।
कहने को तो वह गली गली में घूम कर सब्जी बेचता है, लेकिन अंदाज़ से ऐसा लगता नहीं। उस दिन शाम होते-होते वह जामुन लेकर गुज़रा और मुझे देखते ही ठहर गया। कहने लगा कि यह एक किलो जामुन आपको लेना ही पड़ेंगे। मैंने कहा भाई इतने जामुन लेकर क्या करूंगा । वह बोला, नहीं यह आपके लिए ही है। यह कहते हुए उसने एक किलो जामुन मुझे थमा दिए। मैंने पूछा ठीक तो है? इस पर वह कहने लगा, एक नंबर।
मैंने उसे सौ रुपए दिए। उसने बचे हुए 50 रुपए वापस किए।। मैं नोट को देखने लगा तो कहने लगा ,रख लो बाबूजी। नोट एक नंबर है। मैंने उससे सहज ही पूछ लिया, तुम्हारी इन दिनों गुजर-बसर कैसी हो रही है ? मुझे उम्मीद थी कि वह आदत के मुताबिक कहेगा एक नंबर, मगर उसने ऐसा नहीं कहा। कहने लगा, बस यही एक नंबर नहीं है। पूछा तो बोला, पिछले तीन-चार महीनों से सब कुछ बिगड़ चुका है। जो पूंजी हाथ में थी वह भी चली गई। अब रोज बेचना, रोज कमाना। बेचने में भी लोगों के दस सवाल और जुड़ गए। ऐसे में क्या बेचें और क्या कमाएं। वह कह रहा था कि पिछले दिनों लोगों ने उससे सब्ज़ी खरीदना कम कर दिया, तो उसने फल भेजना शुरू किया। फल लेने में भी लोगों रुचि कम दिखी तो पिछले कुछ दिन से जामुन और भुट्टे लेकर घूम रहा हूं।
आज सुबह से घूमते -घूमते यह जामुन अभी तक बचे हुए हैं, इसलिए आपको जबरन एक किलो जामुन दे दिए।
उसके दिए जामुन की थैली अभी मेरे हाथ में ही थी। परिस्थिति को देख मैंने कहा, ठीक किया। जामुन मुझे लेना भी थे और फिर जामुन दिख भी अच्छे रहे हैं। वह कहने लगा, यह देसी जामुन है बाबूजी। सुबह से सबको कहता फिर रहा हूँ कि गांव के देसी जामुन ले लो, लेकिन लोग देसी जामुन पता नहीं क्यों नहीं लेते ? कहने को तो बड़ी-बड़ी बातें करते हैं कि देश में बनी चीजों का इस्तेमाल करो। विदेशी चीजों को जलाते हैं और यहां मैं देसी जामुन लेकर घूम रहा हूं तो कोई खरीदने को तैयार नहीं।
वह इतना कुछ कहकर वहां से आगे बढ़ गया, लेकिन काफी सारे सवाल भी छोड़ गया। हमारी व्यवस्था पता नहीं उसके सवालों को कब सुनेगी और उन्हें कब एक नम्बर कहेगी।
🔲 आशीष दशोत्तर