ज़िंदगी अब-51 : मेहनत-क़िस्मत : आशीष दशोत्तर
मेहनत-क़िस्मत
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🔲 आशीष दशोत्तर
काफी दिनों के बाद वह बाज़ार में दिखाई दिया। देखते ही उससे पूछा, आजकल कहां रहते हो? दिखाई नहीं देते।
वह कहने लगा, पहले ग्राहक मुझे ढूंढते हुए चले आते थे, अब मैं ग्राहकों को ढूंढता फिरता हूं । उसका यह कहना बहुत आश्चर्यजनक नहीं था मगर उसको इस तरह घूम-घूम कर अपनी चीज़ें बेचते हुए पहले कभी नहीं देखा ,इसलिए थोड़ा अचरज ज़रूर हुआ।
अपनी ठेला गाड़ी पर तरह-तरह के बिस्किट सजा वह शहर के एक महत्वपूर्ण मार्ग पर खड़ा रहता था और सुबह से शाम तक वहीं दिखाई देता था । उसकी उसी स्थान पर इतनी ग्राहकी हो जाया करती थी जिससे उसका और उसके परिवार का गुजारा अच्छी तरह हो रहा था।
संक्रमण का दौर शुरू हुआ उसके पहले तक वह उसी स्थान पर दिखाई दे रहा था। संक्रमण काल के बाद जब फिर से बाज़ार खुला तो उसे उस स्थान पर कभी नहीं देखा। और आज इतने दिनों के बाद वह बाज़ार में नज़र आया।
पूछा तो कहने लगा , अभी बड़ी मुश्किल चल रही है। पिछले दिन कैसे गुज़रे यह आप मत पूछिए। अगर पूछेंगे तो भी मैं बता नहीं पाऊंगा । अभी हाल यह है कि घूम-घूम कर अपने ग्राहकों को ढूंढता हूं ।जो मेरे पास खुद चल कर आया करते थे , आज जैसे आप मिले वैसे ही कहीं कोई टकरा जाता है ।उन्हें अपना सामान देने की कोशिश करता हूं।
अब तो हालत इतनी ख़राब हो चुकी है कि वे सब लोग जो मुझे बरसों से जानते हैं और मुझसे ही सामान ख़रीदा करते थे अब वे भी सामान खरीदने से भी कतरा रहे हैं। कहते हैं अभी बाज़ार का सामान लेना बिल्कुल बंद कर रखा है। बहुत ज़रूरी होता है वही लेते हैं, इसलिए अभी तुमसे कोई सामान नहीं ले सकते।
उनका कहना अपनी जगह ठीक हो सकता है, क्योंकि यह समय सावधानी बरतने का ही है। मगर सभी लोग इस तरह का जवाब देंगे तो हम जैसों का गुज़ारा कैसे होगा। जितनी कमाई पहले एक स्थान पर खड़े होकर हो जाया करती थी अब दिनभर शहर में भटकने के बाद भी उसकी आधी कमाई नहीं हो पाती है। यह मान कर चलिए जो कुछ मिल रहा है वह किस्मत से ही मिल रहा है। मेहनत तो कर -कर के हम हार गए।
उसकी बातें ऐसी लग रही थी जैसे किसी व्यक्ति का मन ही बदल गया हो। पहले मेहनत पर विश्वास रखने वाला व्यक्ति अब किस्मत पर भरोसा कर रहा हो तो यकीनन स्थिति बहुत ख़राब है और हालात मेहनत और किस्मत में कलह करवा रहे हैं।
🔲 आशीष दशोत्तर