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कृषि-कानून : कांग्रेस का शीर्षासन : डॉ. वेदप्रताप वैदिक

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🔲 डॉ. वेदप्रताप वैदिक

संसद द्वारा पारित कृषि-कानूनों के बारे में कांग्रेस पार्टी ने अपने आप को एक मज़ाक बना लिया है। इस मुद्दे पर कांग्रेस शीर्षासन की मुद्रा में आ गई है, क्योंकि उसने अपने 2019 के चुनाव घोषणा-पत्र में खेती और किसानों के बारे में जो कुछ वायदे किए थे, वह आज उनसे एकदम उल्टी बात कह रही है।

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सोनिया गांधी कांग्रेसी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से कह रही हैं कि वे केंद्र सरकार के कानून की अनदेखी करें और मंडी व्यवस्था को पहले से अधिक मजबूत करें। राहुल गांधी ने कहा है कि मोदी सरकार ने किसानों को यह मौत की सजा दी है। कांग्रेसी प्रांतों की सरकारें अपने किसानों को भड़काने में जी-जान से जुटी हैं। इस कानून के विरुद्ध वे सर्वोच्च न्यायालय में भी जाने वाली हैं।

यह मांग तो उचित हो सकती है कि किसानों की फसल के न्यूनतम मूल्य को कानूनी रुप दिया जाए ताकि उन्हें बड़ी-बड़ी निजी कंपनियां ठगने न पाएं लेकिन कांग्रेसी नेता अपने घोषणा-पत्र को जरा ध्यान से पढ़ें। उस के किसानों संबंधी वायदों में 11 वां और 12 वां वायदा वह है, जिसे सरकार लागू कर रही है। उन में साफ-साफ कहा गया है कि सत्तारुढ़ होने पर कांग्रेस ‘‘मंडी-व्यवस्था (एपीएमसी एक्ट) को खत्म करेगी और कृषि-वस्तुओं के निर्यात और अन्तरराज्यीय प्रतिबंधों को एकदम हटा देगी।’’

यह सरकार तो मंडी-व्यवस्था को कायम रखे हुए है और वह किसानों को न्यूनतम मूल्य भी देने का दृढ़ता से वायदा कर रही है। वह तो उन्हें सिर्फ खुले बाजार में अपना माल बेचने की छूट दे रही है ताकि वे ज्यादा पैसा कमा सकें।

कांग्रेस जिसे महा पाप कह रही है और जिसे करने का वायदा उस ने खुद किया था, वह तो यह सरकार नहीं कर रही है। फिर कांग्रेस इतनी चिल्लपों क्यों मचा रही है?
इसीलिए कि इस लकवाग्रस्त पार्टी को यह भ्रम हो गया है कि देश का किसान तो सीधा-सादा है। उसे गलतफहमी का शिकार बनाना आसान है।

किसानों से कहा जा रहा है कि देश के बड़े पूंजीपति उन्हें अपना नौकर बना लेंगे, उपज के पैसे कम देंगे और मंडियां वीरान हो जाएंगी। उन्हें यह नहीं बताया जा रहा है कि देश की कुल उपज का सिर्फ 6 प्रतिशत मंडियों में बिकता है, जिस पर आठ प्रतिशत तक टैक्स सरकार और आढ़तिए खा जाते हैं।

अब किसान यदि चाहे तो इस से मुक्त होगा। उस की उपज को दुगुना-चौगुना करने और आधुनिक बनाने के लिए उसे बाहरी साधन उपलब्ध रहेंगे।
इस के बावजूद यदि किसान की उपज कम होती है या उसे ठगा जाता है तो क्या हमारी संसद मुखपट्टी (मास्क) लगाए बैठी रहेगी?

तब इस सरकार को दुगुनी रफ्तार से दौड़ लगा कर किसान को बचाना होगा। वह बचाएगी ही, क्योंकि हजार-दो हजार कंपनियों के नोटों से नहीं, 50 करोड़ किसानों के वोटों से वह फिर सत्ता में आ पाएगी।

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