श्रीलंका में भी हिन्दी भाषा अत्यंत लोकप्रिय : दुल्कान्ति समरसिंह
🔲 नरेंद्र गौड़
भारत के अलावा और भी अनेक देश हैं जहां हिन्दी भाषा को न केवल पढ़ा और समझा जाता है वरन् इस भाषा में अनेक लेखक लेखिकाएं रचनात्मक कर्म से भी जुड़े हुए हैं। हमारे देश के अलावा चीन, जापान, श्रीलंका, मारिशस, बांग्लादेश जैसे अनेक देशों में हिन्दी भाषा में लिखने वाले रचनाकारों की कोई कमी नहीं है। ऐसा ही हमारा पड़ोसी मुल्क श्रीलंका भी है जहां कई रचनाकार हिन्दी भाषा में सृजन कार्य कर रहे हैं।
श्री लंका के दक्षिणी कलुतर निवासी दुल्कान्ति समरसिंह भी विगत अनेक वर्षों से साहित्य रचना में जुटी हुई है। इनका कहना है कि श्री लंका में हिन्दी भाषा अत्यंत लोकप्रिय है और यहां अनेक रचनाकार साहित्य सृजन कर रहे हैं।
संगीत की शिक्षिका
दुल्कान्ति संगीत शिक्षिका होने के साथ ही श्रेष्ठ रचनाकार भी हैं। हिन्दी में लिखी इनकी अनेक कविताएं श्री लंका के साथ ही भारत की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपती रही हैं। इनकी कविताओं में गहरी हताशा का स्वर है तो कहीं उसी के बीच से कोंधती उम्मीद की रोशनी भी है। यह रोशनी की एक बूंद को अपनी मुट्ठी में बंद कर लेने का खेल है तो यह प्रश्न भी कि आजाद चीजों को कैद करने का ऐसा खेल क्यों होता है। दुल्कान्ति कविताओं के अलावा कहानियां भी लिखती हैं। इनकी रचनाएं गुजरात, बड़ोदा से प्रकाशित ‘संगिनी’ मासिक पत्रिका, मेरठा से प्रकाशित दैनिक विजय दर्पण टाइम्स, सम्पदा न्यूज, प्रणाम पर्यटन, बरौह, साहित्य गुंजन इत्यादि में न केवल छप चुकी है वरन् पाठक समुदाय में खासी चर्चित भी रही हैं।
साहित्य सृजन को बनाया लक्ष्य
दुल्कान्ति को अपने शहर कलुतर में भी सम्मानित किया जा चुका है। इनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि की चर्चा करें तो परिवार में सात सदस्य हैं। इनके पिता प्राचार्य रह चुके हैं। वर्षों तक दुल्कान्ति संगीत शिक्षिका रही हैं। लेकिन इन दिनों इन्होंने सेवानिवृत्ति के पश्चात पूर्णकालिक साहित्य सृजन को अपना लक्ष्य बना लिया है।
दुल्कांति समरसिंह की कविताएं
धरती
जब पहाड़ियां समतल हो जाती हैं
बड़े पेड़ गिर पड़ते हैं
तब भी रखती है शांति
धरती….
तू भी हमारी मां की तरह ही है
गड़गड़ाहट बिजली की
गर्जन आसमान से
सहती रहती है चुपचाप
धरती…..
तू भी हमारी मां की तरह ही है
ज्वालामुखी पहाड़ियां
फूट जाते हैं
झटकते हैं तूफान
देखती रहती है तू
धरती…..
तू भी हमारी मां की तरह ही है
धूप से गर्म हो जाती
बारिश गीला करती है
लेकिन तू मौन ही रहती है
हे धरती…..
तू भी हमारी मां की तरह ही है
मलमूत्र लगाए और थूकना
अंधेरे बढ़ाए रोशनी आए
सभी एक ही तरह ही है
हे धरती….
तू भी हमारी मां की तरह ही है
भूकंप कभी- कभी जब गुस्सा आए तो
फिर भी पहले रूप हैं
धरती…..
तू भी हमारी मां की तरह ही है।
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आगे तुम मेरी मां हो जाओ
प्रिय, तुम मेरी मां हो जाओ
इस मौत के बाद मां हो जाओ
आगे जन्म में पत्नी ना हो तुम
मेरी प्यारी मां हो जाओ
इसलिए इस परिवार में सब
कष्ट सहते तुम थक गई अब
अगर तुम मेरी मां बनागे तो
चूम लूं मैं तेरे दो पांव तब
मैं तुम्हें अपना पूरा दिल दूंगा
तुम्हें सारी सहन भी मैं दूंगा
मेरी गलती पर तब क्षमा चाहिए
तेरे लिए मेरा मन खोल दूंगा।
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यदि मार्क जुकेरबर्ग नहीं तो
तू भी नहीं है
रात को सुंदर बनाने वाले
चांद की तरह है तू
खयालों, विचारों,अंगुली के व्दारा
भिजवाते तू
अंतरजाल के साथ रिश्ते
बना दिया है तू
मेरे प्यारे ’फेसबुक’दुनिया में
आश्चर्य है तू
राष्ट्रपति, अध्यक्ष व पंडित
शिक्षक और मजदूर
राष्ट्रपंडित,पुजारी,कृषक
महापौर एक है
पसंद टिप्पणी आशा है
भावनाएं आकर्षक हैं
हर इंसान की शादी है
यदि मार्क जुकेरबर्ग नहीं तो ’फेसबुक’
तू भी नहीं है आज।
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किताबें हमारी खास दोस्त है
कभी नहीं छोड़ने वाले हैं
ज्ञान व बुध्दि ले आते हैं
तेरे मेरे सपनों को सच करने की
पुस्तक हमारी खास मित्र है
सोना, चांदी चोर ले जाएगा
दिन, मन, प्यार दूसरा पाएगा
कपड़े, सम्मान पत्र जल जाएं पर
जो लिखा है, पढ़ा है, यह बच जाएगा
जीवन भर मिलेगा प्रतिफल
यदि जाते हैं तो यह है सफल
पुस्तकालय में जाना ही है
शुभ सफर जिंदगी में हर पल
अगर पढ़ना और सीखना शौक हो तो
शराब और ड्रग्स गायब हो जाते तो
चोरी और डकैती उबाऊ हो जाएं
सीखने से दुनिया सुंदर हो जाए तो।