🔲 नीलेश सोनी

रतलाम (मप्र), 13 अक्टूबर। कोरोना काल में भगवान नाम, मन्त्र जप, योग प्राणायाम बड़ा इम्युनिटी बूस्टर है। आप अपने घरों में भगवान के पावन चरित्र और लीलाओं का पठन, श्रवण करें इससे मानसिक तनाव दूर होगा और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी। इस पुनीत प्रेरक संकल्प के साथ अधिक मास में महामंडलेश्वर स्वामी श्री चिद्म्बरानंद सरस्वती जी महाराज के सान्निध्य में आयोजित “पुण्योत्सव” श्रीमद भागवत कथा की पूर्णाहुति हुई।

दयाल वाटिका में “पुण्योत्सव” श्रीमद भागवत कथा पूर्णाहुति सत्र में हरिहर सेवा समिति रतलाम समिति अध्यक्ष व आयोजक मोहनलाल भट्ट परिवार के साथ प्रभुप्रेमी संघ, भेरुलाल शर्मा, डॉ. राजेश शर्मा, धनपाल रावत, पुरुषोत्तम पालीवाल, रमेश शर्मा, अरविन्द बघेल आदी ने भागवतजी पोथी का पूजन किया।

हरिद्वार महाकुंभ में आने का दिया आमंत्रण स्वामी जी ने

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स्वामीजी ने आगामी वर्ष हरिद्वार में मार्च-अप्रैल में होने जा रहे महाकुम्भ में सभी को आमंत्रित करते हुए चिदध्यानम आश्रम कनखल प्रकल्प के बारे में जानकारी दी। यहां समिति अध्यक्ष मोहनलाल भट्ट, डॉ.राजेश शर्मा, सुनील भट्ट व कैलाश व्यास ने आश्रम सिंहावलोकन का विमोचन किया।

हर साल होगी कथाएं

स्वामीजी ने बताया रतलाम ने वर्ष 2012 से प्रारम्भ हुआ प्रतिवर्ष कथा का क्रम आगामी वर्ष भी जारी रहेगा। परमात्मा की कृपा से अधिक मास में कथा आयोजन की परम्परा को इस वर्ष महामारी भी नहीं रोक पाई। कोरोना काल में भी आवश्यक सावधानी के साथ कथा का सफल आयोजन हमारी धर्म के प्रति निष्ठा को दर्शाता है। इस वर्ष दिसम्बर और अगले साल मई में रतलाम में श्रीमद् भागवत कथा होने जा रही है।

कथाएं और सत्संग ही परमार्थ के कार्यों के मूल प्रेरणा स्रोत

स्वामीजी ने कहा कि मुझे इस बात पर बड़ा आश्चर्य होता है कि घर में दूध, मलाई के मंहगे साबुन और क्रीम का उपयोग करने वाले शिवलिंग पर दूध अभिषेक पर आपत्ति दर्ज करवाते है। कथा ने कभी यह संदेश नहीं दिया कि आप किसी गरीब के मुंह से निवाला छीनो। बल्कि परमार्थ के कार्यों का मूल प्रेरणा स्रोत कथाएं और सत्संग रहते है। हमारी उपासना पद्धति को टारगेट करके कतिपय लोग आस्था के साथ खिलवाड़ कर रहे है। हमे ऐसे लोगो से सतर्क रहकर धर्म, संस्कृति की रक्षा करते हुए मुखर होना पड़ेगा।

देश, धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए दिखाएं आक्रोश

घर परिवार में छोटी छोटी बातों पर अनावश्यक बखेड़ा खड़ा करके गुस्सा करने वाले यह आक्रोश देश, धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए दिखाएं। अक्सर होता यह है कि घर में शेर बनने वाले बाहर जाकर गीदड़ बन जाते है जबकि यह प्रवति अनुचित है। परिवार में अनुशासन के लिए आक्रोश अपनी जगह ठीक है लेकिन आक्रोश को अपशब्दों से अभिव्यक्ति देना कोई बुद्धिमता का परिचायक नहीं है। बात जब हमारे धर्म, संतों और संस्कृति पर आये तो सभी को एकजुट होकर मुखर होना चाहिए। कथाएं समाज को एकजुट, सामाजिक तानेबाने को सदृढ़ करने का कार्य करती है। भगवान श्री कृष्ण ने भी अपनी लीलाओं से समाज को यही सन्देश दिया है।

रिश्ते की ऐसी पवित्रता और प्रगाढ़ता और किसी संस्कृति में नहीं

हमारी संस्कृति ने विश्व को समाजिक सम्बन्धों की पवित्रता और सम्मान देना सिखाया है। एकमात्र सनातन संस्कृति में ही विवाह को एक संस्कार का रूप दिया गया है। पाणीग्रहण संस्कार के साथ पति-पत्नी सात जन्मों तक साथ निभाने का वचन देते है। हमारे यहां विवाह को अनुबंध अथवा दो लोगों के बीच कोई समझौता नहीं है बल्कि यह तो जन्मों का पवित्र सम्बन्ध होकर दो आत्माओं का मिलन कहा जाता है। रिश्ते की ऐसी पवित्रता और प्रगाढ़ता और किसी संस्कृति में देखने को नहीं मिलती है। इस संस्कृति में तो पत्नी द्वारा अपने मृत पति के प्राणों को यमराज से वापस लेकर आने के महान दर्शन होते है।

मीडिया हाउस बजे इस प्रवृत्ति से

मीडिया पर आज के समय में बड़ी जिम्मेदारी है, उसे सकारात्मक पक्ष को प्रमुखता देना चाहिए। उसका लक्ष्य सनसनी फैलाना अथवा टीआरपी बढ़ाना नहीं होना चाहिए। मीडिया अच्छाई को प्रचारित करें तो बुराई को छपने के लिए स्थान ही नहीं मिलेगा। अक्सर होता यह है कि किसी कथा में हजारों लोगों के जीवन को धर्म, संस्कृति, राष्ट्र, समाजसेवा और परोपकार के कार्यों से जोड़ने का कार्य किया जाता है, वह कार्य हेडलाईन नहीं बन पाता है। अच्छा कार्य को दिखाने के लिए शुल्क चुकाना पड़ता है जबकि समाज की मानसकिता को दूषित करने वाले कार्यो को बढ़ा चढ़ाकर टॉप स्टोरी बनाया जाता है। मीडिया हॉउस को इस प्रवृत्ति से बचना होगा।

हरि के द्वार पर सौगात

डॉ.राजेश शर्मा ने कहा कि हरिद्वार में नया आश्रम भक्तो के लिए एक अद्भुत सौगात बनने जा रही है। हरि के द्वार पर आने वाले को माँ गंगा में डुबकी लगाकर स्वामीजी का सत्संग सुनकर अपना जीवन धन्य करने का अवसर मिलेगा। उन्होंने बताया हमारी छोटी-छोटी लापरवाहियों से ही कोविड का संक्रमण लगातार बढ़ता जा रहा है। महामारी से बचने के लिए आवश्यक नियमों का पालन करें। आपने कहा कि बीमारी से बचाव में रोग प्रतिरोधक क्षमता महत्वपूर्ण होती है, इस दिशा में तनाव को दूर करने और स्वयं को उर्जा से भरपूर रखना आवश्यक है। इसके लिए सोशल डिस्टेंस रखते हुए योग, आसन, प्राणायाम नियमित करें।

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