🔲 भारती वर्मा

ये संज्ञान तुम्हारा था
अच्छे दिन आने वाले हैं
परिवर्तन की बात करें क्या
दो रोटी के लाले है।
प्रलोभन का नारा देकर
तुम सत्ता में आए हो
कितनी सौगंध भारत माँ की
लालकिले से खाए हो।

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जो दुनिया का जगद्गुरु था
उसमें राज तुम्हारा है
आज उसी भारत को तुमने
आतंकों से मारा है।
शरणागति इसी भारत ने
दुनिया भर को दे डाली
आज उसी भारत की तुमने
सारी भुजा कटा डाली।
आग बबूला होते हो जब
पुतले फूंके जाते हैँ
नहीँ बोलते हो तब तुम
पुतले नेता बन जाते हैं।
काले धंधों का चिट्ठा अब
और कहाँ तक खोलूं मैं ।
राजनीति के प्रपंचो को
और कहाँ तक झेलूँ मैं।
रोको काले धंधों को अब
युवा वर्ग अनजान नहीँ।
वरना ऐसे नेताओं की
दुनिया में पहचान नहीँ

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जब राजा सारे बहरे हों, जब पग पग गड्ढे गहरे हों

जब सच्चाई पर पहरे हों

जब घाव धरा के गहरे हों
जब राजा सारे बहरे हों
जब पग पग गड्ढे गहरे हों

जब नागफनी सिंहासन हो
जब अन्ध-बधिर का शासन हो
जब सारा भ्रष्ट प्रशासन हो
जब विचलित सत्ता का आसन हो

जब मारा जाए पत्रकार
जब बंधा हुआ हो कलमकार
जब विक्रय हो जाए कलाकार
जब कलुषित हों मन के विचार

जब आत्महत्या कर लें किसान
जब भूखों से पट जाए मसान
जब सरहद पर मारें जाएं जवान
जब नेत्र मूंद लें अपने प्रधान

तब निज भुज दंड तुम प्रबल करो
भारत को फिर से धवल करो
अपनी शक्ति का दो परिचय
तब होगी लोकतंत्र की जय
तब होगी लोकतंत्र की जय
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थका नहीं हूँ वार कर

रुका नहीं हूँ हार कर
थका नहीं हूँ वार कर
तू युद्ध ना विराम कर
वार कर, वार कर,

ये दौर प्रतिकूल है
सब तेरे अनुकूल है
अब आंधियां कुबूल हैं
ना और इंतज़ार कर
वार कर, वार कर

प्रचण्ड अग्नि मन में है
अब दामिनी गगन में है
ज्वालामुखी नयन में है
तू बाण का संधान कर
वार कर, वार कर

तू पर्वतों को पार कर
तूफानों को पछाड़कर
शिखर पर झंडा गाड़ कर
चमन में फिर बहार कर
वार कर, वार कर

हैं होंसले बुलंद, जितना चाहे वार कर
हैं होंसले बुलंद, जितना चाहे वार कर

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🔲 भारती वर्मा

 

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