वेब पोर्टल हरमुद्दा डॉट कॉम में समाचार भेजने के लिए हमें harmudda@gmail.com पर ईमेल करे कोरोना काल का बड़ा मुद्दा आशीष दशोत्तर नजर से : अपरिहार्य कारणों से.. -

🔲 आशीष दशोत्तर

दस दिन पहले जब वे विवाह का निमंत्रण ले कर घर आए थे तो कितनी मनुहार की थी। बार-बार कहते रहे, आपको ज़रूर आना है। भाभीजी और बच्चों को भी लाना है। घर से बाहर आते-आते चार बार कह चुके थे कि कोई बहाना नहीं चलेगा, आपको आना ही होगा। उस समय अपन ने उन्हें अग्रिम शुभकामनाएं देना चाहा तो उन्होंने उसे यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया था कि शुभकामनाएं उसी दिन ली जाएगी। इतनी मनुहार के बाद अपन ही क्या श्रीमती जी और बच्चे भी अपना मानस बना चुके थे कि यहां तो शादी में जाना ही है।

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महीनों के बाद घर में आई इस पत्रिका को पढ़ने के लिए सभी लालायित थे। छोटू ने प्रीतिभोज का दिनांक देखा और कैलेण्डर में उस दिन की दूरियां गिनने लगा। बड़ू ने विवाह स्थल का नाम देख वहां जाने का रूटचार्ट बनाना शुरू कर दिया। बच्चों से छूटकर दो दिन बाद पत्रिका श्रीमती जी के हाथों में पहुंची तो उसने ऐसी हसरत भरी निगाह से उसे देखा जैसे पीहर से आए किसी बर्तन को अब भी निहारा करती है। दो दिन तो श्रीमतीजी उसका आवरण और आकार ही देखती रही। काफी वक़्त बाद हाथों में आई पत्रिका को वह आराम से पढ़ना चाहती थी। पांचवें दिन उसने पत्रिका को खोला और देखा उसमें चार पन्ने थे जिन्हें ‘लीफ‘ कहना वह सीख चुकी थी। बरबस उसके मुंह से निकला ‘कितनी सुंदर पत्रिका है।‘ पत्रिका आए नौ दिन हो चुके थे मगर अपने हाथ तक वह पहुंची नहीं थी। आज श्रीमतीजी पत्रिका पढ़ने ही वाली थी कि अलसुबह उसी मित्र का संदेश आ गया, ‘ अपरिहार्य कारणों से विवाह समारोह में आयोजित प्रीतिभोज निरस्त किया गया है। वर्तमान परिस्थितियों में आप सोश्यल माध्यम से ही वर-वधू को अपनी शुभकामनाएं दीजिएगा।‘

यह संदेश सुन घरभर पर ऐसा वज्रपात हुआ जिसे आप महसूस नहीं कर सकते। अभी तो पत्रिका के सफर को ‘स्नेही स्वजन‘ से प्रारंभ कर ‘बाल मनुहार-मेरे चाचा की छादी में जलुल-जलुल आना‘ तक पहुंचना था। श्रीमतीजी और बच्चों की टेढ़ी नज़रें अपन को ऐसे घूर रही थी जैसे ‘अपरिहार्य कारण‘ के लिए अपन ही दोषी हों। जबकि अपने जीवन में इस ‘अपरिहार्य कारण‘ ने ही ऐसे घमासान करवाए हैं। जब पढ़ते थे जो जिस साल पास होते अपना रिजल्ट ‘अपरिहार्य कारण‘ से रोक लिया जाता। नौकरी के लिए इंटरव्यू का काॅल आया मगर वह ‘अपरिहार्य कारण‘ से निरस्त हो गया। मुश्किल से नौकरी लगी तो प्रमोशन का अवसर जब आया ‘अपरिहार्य कारण‘ से डीपीसी नहीं हो पाई। एक बार पांच साल तक परिवार को कहीं घुमाने नहीं ले गए, इस संकल्प के साथ कि, जब चलेंगे ‘बाय एयर‘ ही चलेंगे। छठे साल प्लान बनाया। एयर टिकट बुक हो गए। एयरपोर्ट पर भी पहुंच गए। वहां जा कर पता चला कि फ्लाइट ‘अपरिहार्य कारण‘ से निरस्त हो गई है।

मगर इस बार मुद्दा बड़ा था। प्रीतिभोज के मेनू की लिस्ट घर में तैयार हो चुकी थी उसका क्या होगा। बच्चों ने चायना के विरोध के बावजूद ‘चायनीज़ स्टाल्स‘ पर टूट पड़ने की प्लानिंग कर ली थी वह अधूरी रह जाएगी। श्रीमतीजी ने महीनों बाद पीहर से मिली साड़ी पहन पड़ौसनों को ‘प्लीजेंट सरप्राईस‘ देने की योजना बना ली थी, वह कैसे पूरी होगी। फिर ‘अपरिहार्य कारण‘ ने अपन को इन सबके निशाने पर ला दिया।

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