IMG-20201208-WA0000

🔲 जवाहर भाई मेरे शाजापुर को रेल दे दो और स्वीकृत हो गई रेल लाईन

🔲 यशवंत गोरे

शुजालपुर से मात्र 10 किलोमीटर दूर ग्राम भ्याना में जन्मे बालक ने साहित्य एवं राजनीतिक जगत में ख्याति प्राप्त की। बताया जाता है कि 8 दिसंबर 1897 को ग्राम भ्याना में एक ही दिन तीन बालकों जन्म लिया था। एक हरिजन परिवार में, दूसरा एक मुस्लिम परिवार में और तीसरा एक ब्राह्मण परिवार जमनालाल शर्मा के यहाँ। यही बालक आगे चलकर देश का एक स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, साहित्यकार एवं राजनीतिज्ञ बना। हरिजन बालक के बारे में तो कोई जानकारी नहीं है, परंतु मुस्लिम बालक बातून खाँ 90 वर्ष से अधिक वर्ष बालकृष्ण शर्मा को याद करते हुए जीवित रहे। नवीन जी का मकान जब बिकने को हुआ तो उन्होंने ही उसे ख़रीदा था। बालकृष्ण शर्मा की प्राथमिक शिक्षा ग्राम भ्याना में व्यवस्था न होने के कारण शाजापुर में हुई। फिर मेट्रिक की शिक्षा उज्जैन करने के बाद इंटर करने कानपुर चले गए।

पत्रकारिता करने लगे और हो गए बालकृष्ण शर्मा “नवीन “

1916 में लखनऊ में कांग्रेस के अधिवेशन में शामिल होने गए तो वहाँ आपकी भेंट गणेश शंकर विद्यार्थी के माध्यम से माखनलाल चतुर्वेदी और मैथिलीशरण गुप्त से हुई। 1917 में इंटर करने कानपुर गए तो गणेश शंकर विद्यार्थी के आश्रम में रह कर पढ़ने लगे। बी. ए. अंतिम वर्ष में थे, तभी गांधी जी के आह्वान पर कालेज छोड़कर राजनीति में आ गए। असहयोग आंदोलन के बाद नमक सत्याग्रह, फिर व्यक्तिगत सत्याग्रह और अन्त में 1942 का ऐतिहासिक भारत छोड़ो आंदोलन। इस प्रकार कुल छः जेल यात्राओं में जिन्दगी के नौ साल नवीनजी ने जेल में बिताए। पत्रकारिता करने लगे और बालकृष्ण शर्मा “नवीन ” हो गए।

मंत्रिमंडल में शामिल होने का प्रस्ताव कर दिया अस्वीकार

बाद में कभी बालकृष्ण शर्मा नवीन अपने जन्म स्थान आए हो इसकी जानकारी नहीं मिलती। परंतु 1952 में राज्यसभा सदस्य नियुक्त हुए, तब उन्होंने जवाहरलाल नेहरु से यह कहकर कि ” जवाहर भाई मेरे शाजापुर को रेल दे दो ” और रेल लाईन स्वीकृत हो गई। हिंदी की सेवा के लिए आपने नेहरु जी के मंत्रिमंडल में शामिल होने का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया था। 1955 में राजभाषा आयोग के सदस्य के रूप में आपका कार्यकाल महत्वपूर्ण रहा।

ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ किया प्रचार

भारतीय संविधान परिषद के रूप में हिंदी को निर्मात्री राजभाषा में रूप में स्वीकार करने में आपका महत्वपूर्ण योगदान रहा। 1921 से 1923 तक हिंदी की राष्ट्रीय काव्यधारा को आगे बढ़ाने वाली पत्रिका “प्रभा ” का सम्पादन किया। आपकी सम्पादकीय टिप्पणियाँ, निर्भिकता खरेपन और कठोर शैली के लिए जानी जाती थी। शर्माजी के साहित्यिक जीवन की पहली रचना ‘सन्तू’ नामक एक कहानी थी। इसे उन्होंने छपने के लिए सरस्वती में भेजा था। इसके बाद वे कविता की तरफ मुड़े। ‘जीव ईश्वर वार्तालाप’ शीर्षक की कविता से हिन्दी जगत इन्हें पहचानने लगा। वे एक अच्छे एवं ओजस्वी वक़्ता भी थे। उनकी मित्रता गणेश शंकर विद्यार्थी से थी जो हिंदी के पत्रकार थे एवं भारतीय स्वतंत्रता के सिपाही एवं सुधारवादी नेता थे। माखनलाल चतुर्वेदी जिनका जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में हुआ था ख्याति प्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे. “प्रभा” और “कर्मवीर” जैसे प्रतिष्ठित पत्रिका के सम्पादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ प्रचार किया। नवीन जी ने दोनों मित्रों का कंधे से कंधे मिलाकर स्वतंत्रता आंदोलन में पूरा साथ दिया। श्री माखनलाल चतुर्वेदी के नाम पर भोपाल में पत्रकारिता विश्वविद्यालय स्थापित है।

मगर मूर्त रूप नहीं ले सकी घोषणा

IMG_20201208_081338

भ्याना ग्राम उनका जन्म स्थान होने के कारण महत्वपूर्ण तो था ही परंतु उसका महत्व तब और बढ़ गया, जब 3 जनवरी 1973 को तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी के मुख्य अतिथि में तथा प्रसिद्ध कवि शिव मंगल सिंह सुमन के उपस्थिति में नवीन जी के स्मृति में बनाए गए स्तम्भ का अनावरण किया था। श्री सेठी ने घोषणा की थी कि उनके जन्म स्थान वाले घर को राष्ट्रीय स्मारक एवं गाँव का नाम उनके नाम पर ” नवीन नगर” दिया जाएगा। यह घोषणा मूर्त रूप नहीं ले सकीं। उनके जन्म शताब्दी वर्ष 1997 में उनकी स्मृति में भारत सरकार द्वारा एक डाक टिकट अवश्य जारी किया गया।

1960 में पदम भूषण से भी सम्मानित 

बालकृष्ण शर्मा नवीन को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान की वजह से 1960 में पदम भूषण से भी सम्मानित किया गया था। उनके जन्म दिवस पर मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी, भोपाल की ओर से उनकी याद में उनकी जन्म तिथि पर प्रत्येक वर्ष साहित्यिक कार्यक्रमों का आयोजन ग्राम भ्याना में किया जाता है।

जैसा देखते थे वैसा ही लिखते थे नवीन जी

उनके साहित्य में मानव मुक्ति का काव्य सृजन एवं स्वतंत्रता संग्राम का दर्पण प्रतीत होता है। किसानों, मज़दूरों की आवाज़ होती थी. उनके बारे में कहा जाता है नवीन जी जैसा देखते थे वैसा ही लिखते थे। आपकी प्रसिद्ध कृतियाँ कुमकुम, रश्मिरेखा, अपलक, क्वासि, उर्मिला, विनोबा स्तवन,प्राणार्पण, हम विषपायी जन्म के आदि रचनाएं है। बालकृष्ण शर्मा नवीन का निधन 29 अप्रैल 1960 को हुआ।

🔲 यशवंत गोरे

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *