कोविड रिस्पॉन्स टीम का अभिनव आयोजन : प्रकृति का अनादर किया तो इस विपदा का कहर हम पर टूट पड़ा

 डॉ. रत्नदीप निगम

हम जीतेंगे – पॉजिटिविटी अनलिमिटेड के ध्येय वाक्य के साथ कोविड रिस्पॉन्स टीम द्वारा आयोजित व्याख्यानमाला है। आज के व्याख्यानमाला में प्रथम वक्ता के रूप में संबोधित किया पूज्य महंत संत ज्ञानदेव सिंह जी एवं पूज्य दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा जी ने। महंत संत ज्ञानदेव सिंह जी ने कहा ऋषि मुनियों की महान विरासत से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ो और महान परम्पराओ का पालन करते चलो, आप अपने गंतव्य तक अवश्य पहुँचेंगे, यह विश्वास सदैव बनाए रखिए।।पूज्य दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा ने कहा मनुष्य के साहस, संकल्प और शक्ति के सामने बड़े बड़े पर्वत कैसे झुक जाते हैं

पूज्य संत ज्ञानदेव सिंह जी

यह विश्वास रखें हम अवश्य हो जाएंगे स्वस्थ

पूज्य संत ज्ञानदेव सिंह जी ने अपने सारगर्भित उदबोधन में कहा कि हम सभी प्रकृति से निर्मित है। अतः हम सभी को प्राकृतिक नियमों का पालन करना चाहिए। आज जब हमने प्रकृति का अनादर किया तो इस विपदा का कहर हम पर टूट पड़ा है। यदि हम प्रकृति से प्रेम करें , उसके अनुरूप जीवन जियें तो इस विपदा से अप्रभावित रह सकते हैं। हमारे शास्त्रों ने कहा है वयम अमृतस्य पुत्रः अर्थात हम अमृत के पुत्र है, इसलिए यह विषाणु हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता, यह विश्वास रखें हम अवश्य स्वस्थ हो जाएंगे। हमें आध्यात्मिक दृष्टिकोण बनाये रखना चाहिए। यह शरीर अमर नहीं है लेकिन आत्मा अविनाशी है। प्रकृति ने जो भी हमें दिया है उसका सदुपयोग करना चाहिए । शरीर और मन स्वस्थ हैं तो धर्म , अर्थ और परमात्मा को पा सकते हैं इसलिए उठो, जागो और अपने स्वरूप को पहचानो, अपने भीतर के परमात्मा से साक्षात्कार करो । ऋषि मुनियों की महान विरासत से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ो और महान परम्पराओ का पालन करते चलो, आप अपने गंतव्य तक अवश्य पहुँचेंगे, यह विश्वास सदैव बनाये रखिये। अपनी गौमाता , अपने माता पिता, गुरुजनों का आदर करके इनके आशीर्वाद से अपनी भीतरी शक्ति को जागृत कीजिए और निराशा के इस तिमिर को मिटा दीजिए।

पूज्य दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा जी

विपरीत परिस्थितियों में होती है अपने धैर्य की परीक्षा

व्याख्यान में अपनी चिरपरिचित ओजस्वी वाणी में पूज्य साध्वी ऋतम्भरा जी ने आह्वान किया कि अपनी आंतरिक शक्ति को जागृत कीजिए। विपरीत परिस्थितियों में अपने धैर्य की परीक्षा होती है । इस देश ने देखा है कि विपत्ति में तपकर कैसे स्वर्ण के समान निखरा जाता है। हमने देखा है कि मनुष्य के साहस, संकल्प और शक्ति के सामने बड़े बड़े पर्वत कैसे झुक जाते हैं। पूज्य दीदी माँ ने महाभारत का एक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि – कुरुक्षेत्र के भीषण युद्ध में एक टिटहरी भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के रथ का चक्कर लगा रही थी, वो विलाप कर रही थी, भगवान श्रीकृष्ण ने उसके करुण क्रन्दन को सुना और पूछा इस विलाप का कारण क्या है, तो उस टिटहरी ने कहा प्रभु ये युद्ध की दुनिया तो बहुत बड़ी है लेकिन मेरी दुनिया तो बहुत छोटी है, इस महायुद्ध में मेरे अंडो का क्या होगा, तो श्रीकृष्ण ने अर्जुन को निर्देश दिया कि अर्जुन उस हाथी के गले मे जो घण्टा है उसको लक्ष्य कर बाण चलाओ। अर्जुन ने आदेश का पालन किया और उस घण्टे ने जमीन पर गिरकर टिटहरी और उसके अंडों को ढँक लिया। जब 18 दिन पश्चात युद्ध समाप्त हुआ तो श्रीकृष्ण अर्जुन के साथ उस स्थान पर पहुँचे और अर्जुन को वह घण्टा हटाने को कहा। जब वह आवरण हटा तो उसके नीचे से टिटहरी के 4 बच्चे चहचहाते हुए निकले। इसलिए आज युद्ध की इस विभीषिका में भी हमें परमात्मा के आवरण को ओढ़ लेना चाहिए जिससे विपत्ति के समाप्त होने पर हम टिटहरी के बच्चों की तरह सुरक्षित निकल जाएँगे। यह समय एक दूसरे की आलोचना का नहीं है , यह उचित नहीं है। केवल राज्य के भरोसे हम नहीं रह सकते अपितु एक राष्ट्र के रूप में उठ खड़े होना है । राष्ट्र हमारी सामूहिक शक्ति है , इस चेतना को जागृत करना है । हम इंसान हैं अतः हमें कर्म करना है  अपनी उर्जा को कर्म करने में निवेश करनी है। परिस्थितियों की चोंट से अपने आपको बिखरने नहीं देना है अपितु निखरना हैं । हमारे विरूद्ध हो रहे अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्रों को पहचानने की आवश्यकता है और दृढ़ संकल्प लेकर विफल करना है। यह एक आध्यात्मिक राष्ट्र है, व्याकुलता इसका आभूषण नहीं बल्कि संयम और शौर्य इसके आभूषण और बल है। आपने अपने उदबोधन के अंत मे कहा कि जिसने जीत लिया मन उसने जीता जग सारा अतः कुछ दिनों के लिए कछुए के भाँति अपने मन को समेट लीजिए  ।

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