मुद्दे की बात : देश फंसा मूल्य वृद्धि के चक्रव्युह में : – जनसाधारण के लिए जीवन यापन हो रहा प्रतिदिन कठिन, महंगाई के साथ नहीं बढ़ती आय
प्रो. डीके शर्मा
पिछले दो वर्षों से हमारे देश के जनसाधारण के लिए जीवन यापन प्रतिदिन कठिन होता जा रहा है। एक नहीं अनेक कठिनाइयां मध्यमवर्ग और निम्न वर्ग के सामने आ गई हैं। जीवन जीने के लिए आवश्यक वस्तुएं जुटाना प्रतिदिन कठिन होता जा रहा हैें। सभी आवश्यक वस्तुओं की कीमतें प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। देश के 80 प्रतिशत निवासी मध्यम और निम्नवर्ग के हैं। इनकी आय स्थिर है। यह महंगाई के साथ बढ़ती नहीं। कोरोना काल में समस्या अधिक कठिन होती जा रही है। कई लोगो की नौकरियां चली गई और मजदूरों को मजदूरी नहीं मिल रही। गत वर्श लॉक डाउन लगते समय मजदूरों की जो भगदड़ मची थी, वह हमें अभी भी अच्छी तरह याद हैं।
मुद्दे की बात यह है कि इस आलेख का उद्देश्य आकंडो का विश्लेषण करना नहीं। वास्तविक धरातल पर आमजन के जीवन में उपस्थित कठिनाईयों की बात करना है। बढ़ती कीमतों का विश्लेषण हम कई तरह से कर सकते हैं। थोक मूल्य और खुदरा मूल्य, सरकार के दृष्टिकोण से और नागरिको के दृष्टिकोण से। पहले थोक मूल्य की बात करे। थोक मूल्य सरकार और अर्थ शास्त्र के विद्वानों का करिश्मा हैं। यह एक आर्थिक जंजाल है जिसे आम नागरिकों के लिए समझना लगभग असंभव हैं।
आकड़ों की जादूगरी से मूर्ख बनाने का प्रयास सभी करती है सरकारें
यह आंकड़ों का ऐसा खेल है जिसे समझना आम नागरिकों के बस की बात नहीं है। हम ऐसा मानते है कि जनसाधारण को आकड़ों की जादूगरी से मूर्ख बनाने का प्रयास सभी सरकारे करती हैं। जब आम नागरिक बढ़ती कीमत से त्रस्त हो जाते हैं तो सरकार और आंकडो के जादूगर अर्थशास्त्री कहते है। चिल्लाओ मत थोक मूल्य अधिक नहीं बढ़े हैं। किन्तु हमें यह ध्यान रखना चाहिए की थोक मूल्य कुछ सिंद्धात और नियम के आधार पर बनाए जाते है जबकि खुदरा मूल्य बाज़ार की वास्तविक स्थित को दिखातें हैं। खुदरा मूल्य मध्यम और निम्न वर्ग को होने वाली आर्थिक चुभन का परिणाम हैं। थोक मूल्य सरकार और अर्थशास्त्रियों के संतोष के लिए, जबकि खुदरा मूल्य आम आदमी की जेब खाली करने के लिए हैं। सरकार और अर्थशास्त्रियों को थोक मूल्य और खुदरा मूल्य के अंतर पर ध्यान देना चाहिए।
बढ़ता जा रहा है आक्रोश सरकार के प्रति
हम सभी जानते है वर्तमान में मूल्य वृद्धि का प्रमुख कारण डिज़ल और पेट्रोल की तेज़ गति से बढ़ती कीमते है, परन्तु हमारे देश में अधिक से अधिक लाभ कमाने की प्रवत्ति भी इसके मूल में हैं। कम समय में अधिक धन अर्जित करना सब चाहते हैं। वैसे हमारे देश में किसी च़ीज की कमी नहीं हैं। फिर भी मूल्य वृद्धि तेज़ी से हो रहीं है। मध्यम और निम्न वर्ग आर्थिक संकट से कराह रहे हैं। परन्तु सरकार कीमतो के चक्रव्युह को बढ़ने से रोकने के लिए कुुछ नहीं कर रही हैं। इससे आमजन का आक्रोश सरकार के प्रति बढ़ता जा रहा है।
लोगों की तकलीफों से होना चाहिए सरकार को सजग
ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रो में भी लोगो में तीव्र प्रतिक्रिया हो रहीं हैं। कुछ दिन पूर्व दो आदिवासी बन्धु हमारे यहां आए। बातचीत के दौरान उन्होने बढ़ती कीमतो के प्रति सख्त नाराज़ी बताई और कहा कि अगले चुनाव में वर्तमान सरकार को वोट नहीं देंगें। हमने गांव में तय कर लिया है। इस तरह की लोगो की तकलीफों से सरकार को सजग हो जाना चाहिए और कीमतों के चक्रव्यूह से देश को बाहर निकालना चाहिए। यह सरकार के भले के लिए भी हैं।
प्रो. डीके शर्मा, रतलाम
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