साहित्यकार डॉ. प्रकाश उपाध्याय की नजर में “रिश्ते”
डॉ. प्रकाश उपाध्याय
किसी शाख़ की
कोंपल की मानिंद
उगते हैं
फलते-फूलते हैं
नित-नये सम्बन्ध !
फिर-
एक दिन, यकबयक
झर जाते हैं
सूखे – पीले पत्तों
की शक्ल में !
मगर-
सूख कर भी
जुड़े रहते हैं कुछ रिश्ते
शाख़ और पत्ते के बीच !
आख़िर-
शाख़ का क्या ?
हज़ारों रिश्तों पर
हक है , उसका तो !
लेकिन-
सूखे पत्ते के पास
चारा ही क्या
झर कर धूल में
मिलने के सिवाय ?
पर-
पत्ते के लिये
टूट कर धूल में
मिल जाने के दर्द से
सूख कर जुड़े होने
की कसक, शायद
कमतर व तसल्ली बख्श
हुआ करती है….!!
डॉ. प्रकाश उपाध्याय