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अंतिम व्यक्ति की प्रथम पंक्ति

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 अंतिम पायदान से प्रथम पर पहुंचने का आनंद भा रहा था मन को

 आशीष दशोत्तर

अंतिम व्यक्ति को लाया गया। ससम्मान प्रथम पंक्ति में बिठाया गया। वह कुछ सकुचाया, कुछ शरमाया। फिर मन ही मन इठलाया । पंक्तियों का क्रम बदल गया था।  पंक्तियां, पंक्तियां नहीं रहीं।व्यक्ति, व्यक्ति नहीं रहे। कोई , कहीं भी बैठ सकता था। अपनी पदोन्नति पर ऐंठ सकता था। अंतिम पायदान से प्रथम पर पहुंचने का आनंद मन को भा रहा था। बिनाका गीतमाला का उतार-चढ़ाव उसे अब समझ आ रहा था। पहली पंक्ति में बैठने का नया- नया एहसास उसके मन में बहुत सी आशाएं जगाने लगा। वह कुछ सोचने लगा, कुछ उसकी सोच में स्वत: आने लगा। जब पंक्ति प्रथम मिल ही गई है तो सब कुछ प्रथम जैसा ही होगा। भूल जाएं अब तक भोगा, प्रभु कृपा से जो होगा अच्छा ही होगा।

प्रथम पंक्ति में अब तक बैठते रह लोगों के लटके-झटक, हाव -भाव, तौर-तरीकों को वह याद करने लगा। कुछ मु झे भी सिखा दे, प्रभु से फरियाद करने लगा।  जब प्रथम पंक्ति में बैठना ही है तो सब कुछ वैसा ही करना होगा। उठना -बैठना , हिलना-डुलना, मिलना-जुलना, हंसना, ख़ामोश रहना, किस तरफ कितनी बार देखना, किस पर नज़रें डालना,किस से नज़रें चुराना, प्रथम पंक्ति के सभी आदाब सीखना होगा। 

नसीबों से मिली ये पंक्ति खो न जाए। जाने -अनजाने  कहीं कोई ग़लती यहां हो न जाए। मन कह रहा था, जो जब मिले उसे स्वीकारिए, खुद को उसके अनुरूप ढालिए । इस पंक्ति का रुतबा है, रौनक है, शान है । इस पंक्ति से ही मनुष्य होने की पहचान है । यहीं से सब कुछ चलता है। जो भी होता है यहीं से होता है और वही सबकी तक़दीर बदलता है। यह पंक्ति, पंक्ति नहीं प्राण है। इस पंक्ति में जिसे स्थान नहीं मिला वह ज़िंदा होकर निष्प्राण है। प्रारब्ध में लिखी थी तो मिली है ये पंक्ति। प्रभु तनिक हौंसला दे, कुछ शक्ति।

प्रसन्नता पसरित मुदित मन के बावजूद कुर्सी पर सिमट कर बैठे अंतिम व्यक्ति को किसी ने हिलाया तो वह वर्तमान में पुनः लौट आया। आने वाले व्यक्ति ने एहसास दिलाया , आराम से बैठो, अब डरो नहीं ,और भी बहुत कुछ समझाया । धीरे-धीरे  प्रथम पंक्ति में बैठने का वह अभ्यस्त हो रहा था। अपने बढ़ते कद को देख मस्त हो रहा था।

तनिक हलचल सी हुई और खुसपुसाहट होने लगी।  किसी के आने की सुगबुगाहट होने लगी ।उसे भी लगा कोई आने वाला है। उसे प्रथम पंक्ति में बिठाने का उत्सव शुरू होने वाला है। हलचल और बढी तो आयोजकों की त्यौरियां चढ़ीं। अब तक न आने की सूचना देते रहे अतिथि अचानक आने को तैयार हो चुके थे। आयोजक उनके स्वागत की तैयारियों में खो चुके थे। उनके आगमन की सूचना से व्यवस्था में थोड़ा परिवर्तन होने लगा। प्रथम पंक्ति में बैठा अंतिम व्यक्ति मन ही मन भयभीत होने लगा।  उसकी पंक्ति के आगे कुछ और पंक्तियां लगाई जाने लगी। उन पंक्तियों पर श्वेत चादर बिछाई जाने लगी। सफेदी की चकाचौंध से उसकी आंखें चौंधिया रही थीं। धवलता फिर उसकी दूरियां बढ़ा रही थी। उसे कुछ धुंधला सा नज़र आने लगा। मंच उसकी दृष्टि परास से कुछ दूर जाने लगा । आगे की बढ़ती पंक्तियों को देख वह कुछ घबराया। घबराहट में उसने अपना चेहरा पीछे की तरफ घुमाया। उसकी पंक्ति यथावत थी मगर पीछे कोई पंक्ति न थी। अंतिम हो कर भी उसके लिए वही प्रथम पंक्ति थी।

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