शोषण का संघीय तरीका

 संजय भट्ट

कढ़ी अगर बासी हो जाए तो उसकी खटास तो बढ़ ही जाती है, उसको गरम करो तो उबाल भी खूब आता है। ऐसी ही स्थिति बन गई उनके साथ। बेचारे यूँ ही बूढ़े तो हो ही चुके थे, ऊपर से उनको नए तरीके से ढालने का सरकारी फरमान आ गया था। परेशानी वही कढ़ी वाली जम कर उबाल आया और इतना आया कि उन्‍हें स्‍वैच्छिक सेवानिवृत्ति की ओर मुड़ना  पड़ा। यहां भी परेशानियां कम होने का नाम नहीं ले रही थी। उन्‍होंने जैसे ही 42 साल की नौकरी से हटने का मन बनाया, उनके अन्‍दर का शैतान जागृत हो गया। सोंचा क्‍यों मैं अपनी 42 साल की नौकरी में कमाई इज्‍जत को यूँ सरेआम नीलामी के बाजार में खड़ा कर दूँ, कोई जुगत काम आ सकती है।

इसी सोंच विचार में रात की नींद उड़ गई, लेकिन वो न कमजोर थे और न ही हार मान जाना उनकी फितरत में शामिल था। उन्‍होंने एक बंदा तलाश किया जो जानकार तो था, लेकिन नौकरी नहीं मिल रही थी। वह भी सभी तरह से हाथ-पैर मार चुका था। कहीं किसी कारण से कहीं तो दूसरे कारण से नौकरी पाने से वंचित रह जाता। उस बंदे को अपने सहायक के रूप में पा कर तो जैसे उनके किस्‍मत की चाबी ही मिल गई थी। वह उनके सारे काम करता और नाम उनका चमकने लगा था।

कहते हैं रोशनी में थोड़ी सी चमकदार वस्‍तु भी जगमग चमकने लगती है। बस उनके साथ भी ऐसा होने लगा। चारों ओर से वाह वाही बटोर रहे थे, लेकिन मन ही मन उन्‍हें पता था कि इस  वाह-वाही और चमक ज्‍यादा हकदार कौन था। डरते भी थे कि कहीं ऐसा कोई मौका नहीं आ जाए जिसमें कि उनको उनकी काबिलियत साबित करना पड़े। वे यह सोंच कर खुश थे कि आज खाया वह मीठा कल किसने देखा है। जो होगा देखा जाएगा। हम जैसा सोंचते है, करते हैं, वैसी ही परिस्थिति भी निर्मित होने लगती है। उनके साथ भी यही हुआ।

जैसा कि सभी सरकारी कामों का होता है। कार्यों और लक्ष्‍यों की आपूर्ति को लेकर समीक्षा बैठक बुलाई गई। जैसे ही समीक्षा बैठक का नाम सुना वो फूले नहीं समा रहे थे, उनको पता था कि उन्‍होंने ही लक्ष्‍य को पूर्ण कर लिया है तथा शेष लोग उनसे कौसों दूर खड़े हैं। उनको अपनी सफलता के आगे तनिक भी इस बात का एहसास नहीं रहा कि समीक्षा बैठक में उनका राज खुल सकता है। उनकों अपनी काबिलियत का भरोसा भी था और सफलता पर गर्व भी था।

बैठक की शुरुआत हुई और अधिकारी ने पोर्टल के आंकड़ों को सार्वजनिक किया। सभी के बीच उनका सम्‍मान किया गया और अधिकारी ने शाबासी देते हुए तुरंत एक जिम्‍मेदारी और उनके कांधे पर डाल दी। उनको दस लोगों पर नोडल अधिकारी के सम्‍मान से नवाजा गया। बड़े खुश होकर बैठक से लौट आए, लेकिन रात की नींद भी फिर गायब हो गई। अभी उनका ही काम सम्‍हालना था,लेकिन अब दस और साथ लेकर चलना था। लेकिन उन्‍हें इस बात का एहसास था कि जब तक वह बंदा उनके साथ है, उनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता है। घबराहट के बीच नींद कब आ गई पता नहीं चला।

अलसुबह जैसे ही आदत के मुताबिक  नींद खुली, तुरंत अपने दैनिक कामों से निवृत्‍त होकर समय से पहले कार्यालय में दस्‍तक दे दी। सभी को उनका इंतजार था कि कोई टिप्‍स मिलेगी कि काम कैसे किया जाए, कैसे टारगेट को हांसिल किया जाए, कैसे आगे निकला जाए, कैसे अपने को दौड़ में खरगोश साबित किया जाए, इतने सारे सवालों के बीच वे अकेले खड़े थे, लेकिन हारना उनकी सूची में नहीं था। उन्‍होंने सभी से कहा सब अपने कामों की जिम्‍मेदारी मुझे दे दो,लेकिन जानते हो कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है। सभी ने एक स्‍वर में उनका साथ दिया। काम सभी को करवाना था। उन्‍होंने फिर उस बंदे से संपर्क किया, काम का बोझ बताया और पोर्टल की चाल भी। आज के समय का अंदाजा भी उनको बखूबी था। जानते थे कि उसके जैसे कई काम के मारे भटक रहे हैं, एक टीम तो जुड़ ही जाएगी उनकी मदद के लिए। उनके अंडर के सभी दस लोगों ने टारगेट पाने के‍ लिए अपने वेतन से कुछ खोने का फैसला ले लिया।

आनन-फानन में काम के मारों की एक टीम जुड़ी और काम में वह रफ्तार आई जो आज तक नहीं आ पाई थी। ऊपर के अधिकारी भी आश्‍चर्यचकित कि अचानक यह काम इतनी गति से कैसे हो गया। अब उनकी पूछ परख बढ़ गई, जगह-जगह उनके चर्चे होने लगे, लेकिन अब उन्‍हें एहसास हो चुका था कि राज खुलने वाला है। अब वे इसके लिए तैयार भी थे, क्‍योंकि शोषण करने वालों का एक संघ बन चुका था। अब वे अकेले नहीं थे, जो किसी काम के मारे का शोषण कर अपनी वाह-वाही करवा रहे थे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *