शुक्र है भगवान का
संजय भट्ट
शाम को जैसे ही लूटा पीटा लौट घर की डोर बैल बजाई, काफी देर तक कोई रिस्पांस नहीं आया। नीचे झुक कर देखा तो कुंडी में ताला लगा था। “शुक्र है भगवान” का थोड़ी देर में श्रीमती का आगमन हो गया। ‘अरे आप कब आए’ ”आपको मैसेज किया था, बाजार जाना है, थोड़ी देर हो जाएगी। लेकिन आप इतनी जल्दी कैसे आ गए।” मैंने भारी मन से सारी घटना का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया।
आज सुबह-सुबह घर से निकला ही था कि बिल्ली ने रास्ता काट लिया। थोड़ी दूर पहॅुचा तो पता चला बॉस ऑफिस नहीं आएंगे। तभी वाट्सएप्प पर मैसेज देखा कि ऑफिस के चतुर्थ श्रेणी अधिकारी ने लिखा था, थोड़ा काम है, देर से पहॅुच पाऊँगा। बस शगुन तो घर से ही खराब हो गया था। अब मन ने मानना शुरू कर दिया कि दिन खराब है। बस मन का मानना था कि दिन ने खराब होना शुरू कर दिया। हर कहीं कुछ-न-कुछ समस्या सामने आ रही थी। वैसे तो मैं ज्यादा विश्वास करता नहीं लेकिन फिर भी बॉस नहीं थे तो लंच टाइम में अखबार के पन्ने पलटते हुए राशिफल पर नज़र रूक गई। उसने भी मेरे दिन के खराब होने की पुष्टि ही कर रखी थी। अब विश्वास बढ़ गया कि दिन खराब क्यों हो रहा है। कहीं से भी कोई सहयोग क्यों नहीं मिल रहा है। जहां तहां खराबी से ही क्यों मुकाबला हो रहा है।
जैसे जैसे दिन बीतता जा रहा था वैसे-वैसे नई नई मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा था। अब रात होने का इंतजार भी हर दिन से ज्यादा बड़ा लग रहा था। थोड़ी ही देर में बिटिया ने याद दिलाया आज उसके स्कूल में पालकों की बैठक थी और उसकी मॉं तो कभी गई नहीं मैं भी भूल गया। इस कारण फाइन भरना है। ये एक और नई मुसीबत आ गई थी। भगवान को याद कर सोने की कोशिश कर रहा था, लेकिन करवट बदलते हुए भी दिनभर का घटनाक्रम किसी बुरे सपने की तरह घूम रहा था। पत्नी ने परेशान देख पूछ लिया क्या हुआ, आज ऑफिस में कोई काम नहीं था तो थकान भी नहीं हुई और इसी कारण नींद भी नहीं आ रही है। बस यही सुनना बाकी रह गया था, लेकिन विचार आया अपने मन की बात पत्नी को नहीं बताऊँगा तो ठीक नहीं होगा। फिर जुबान से इतना भर निकल पाया ”शुक्र है भगवान का आज का दिन कट गया”।
मैं नहीं जानता था मेरे मॅुह से निकला यह वाक्य मेरी सुरक्षा के लिए ब्रह्म वाक्य सिद्ध होगा तथा आने वाले दिनों में मेरे ही लिए मुसीबत का कारण बन सकता है। दूसरे दिन से मैं जिधर से भी गुजरता एक ही वाक्य सुनने को मिलता- ”भाई साहब सब ठीक तो है ना”। कई फोन आए मेरे ससुराल से, मेरे दोस्तों से, मेरे जान पहचान वालों से सब के मुँह पर एक ही वाक्य था- ”सब ठीक तो है”।
मैं समझ ही नहीं पा रहा था कि क्या हो रहा है। क्या मैं इतना इंपार्टेंट परसन हो गया कि हर कोई मेरा हाल चाल पूछेगा। एक मित्र से मैंने जानना चाहा-”क्या हुआ जो सब यही सवाल कर रहे हैं।” उसने कहा भाई मुझे तो पता नहीं लेकिन मेरी पत्नी ने बताया था कि कल तेरा कुछ ठीक नहीं रहा, तुमने भाभी को बोला कि ”शुक्र है भगवान का सकुशल घर लौट आया।” अब मैं ठहाका लगा कर हँस पड़ा मेरी समझ में आ गया था कि मैं नहीं मेरे बारे में फैलाई गई अफवाहों की अहमियत मुझसे कहीं ज्यादा है।